जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट तकरीबन चार साल बाद सुनवाई करने जा रहा है। लेकिन ये बात कश्मीरी पंडितों को ठीक नहीं लग रही है। कश्मीरी पंडितों ने सुप्रीम कोर्ट में Intervention Application (IA) दाखिल करके मांग की है कि केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली सारी याचिकाओं को खारिज कर दीजिए। केंद्र ने कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाकर एक सही फैसला लिया है।
कश्मीरी पंडितों ने अपने वकील सिद्धार्थ प्रवीन आचार्य के मार्फत याचिका दाखिल की है। इसमें कहा गया है कि आर्टिकल 370 और 35 ए की वजह से कश्मीर सारे देश से अलग हो गया। कहने को तो सूबे को इनके जरिये स्पेशल स्टेटस दिया गया था। लेकिन अलगाववादियों ने इसे अपने माफिक बनाकर देश के खिलाफ साजिश करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। उनका कहना है कि इसकी वजह से कश्मीर के लोग एक नहीं हो सके।
कश्मीरी पंडित बोले- इसकी वजह से उनकी नागरिकता खतरे में आ रही थी
एक तरफ मुस्लिम समुदाय को इससे फायदा मिल रहा था, वहीं कश्मीरी पंडितों पर जमकर अत्याचार हुए पर तत्कालीन केंद्र व राज्य सरकारें चुप बैठी रहीं। उनका कहना है कि आर्टिकल 370 से कश्मीरी पंडितों के संवैधानिक अधिकारों पर भी कुठाराघात किया गया है। अगर वो सूबे के बाहर शादी करते हैं तो उनकी नागरिकता खत्म हो जाती है।
याचिका में ये भी कहा गया है कि रनबीर पैनल कोड (RPC) आइपीसी से बिलकुल अलग है। जम्मू कश्मीर में ये ही लागू होता है। इसी की वजह से आइपीसी की धारा 377 पर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को जम्मू कश्मीर में लागू नहीं किया जा सका था।
आर्टिकल 370 को खत्म करने के मसले पर एक संवैधानिक बेंच 2 अगस्त से सुनवाई करने जा रही है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में पांच जजों की बेंच इस मसले पर विचार करेगी। हालांकि केंद्र की तरफ से पेश हलफनामे में कहा गया है कि 370 हटने के बाद से जम्मू कश्मीर शांत है। पत्थरबाजी अब पुरानी बात हो चुकी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इससे संवैधानिक सवाल तो खत्म नहीं हो जाता है।