उत्तर प्रदेश के वृंदावन के साथ काशी में मनाई जाने वाली होली विश्व प्रसिद्ध है। होली के पर्व से पहले काशी में होने वाली होली के पारंपरिक आयोजन की तैयारी बेहद ही जोरो शोर से की जा रही है। रंगभरी एकादशी पर बाबा श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में होने वाली होली के एक दिन बाद होने वाली महाश्मशान की होली यानी मसाने की होली पर विवाद खड़ा हो गया है।
विगत कुछ सालों में धधकती चिताओं के बीच खेले जाने वाली मसाने की होली को लेकर काशी के संतों और विद्वानों ने इसे शास्त्र सम्मत नहीं बताया है। वहीं दूसरी ओर महाश्मशान पर जलती हुई चिताओं के बीच खेले जाने वाली होली के दौरान महिलाओं को महाश्मशान से दूर रहने की अपील की गई। महाश्मशान पर होने वाली होली के दौरान नशा कर हुड़दंग करने वालों को भी कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी गई है।
मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर होती है शुरुआत
काशी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर रंगभरी एकादशी के दिन से होली का आयोजन शुरू हो जाता है। चिताओं के भस्म से होली खेले जाने के पीछे महाश्मशान पर होली का आयोजन करवाने वाले आयोजक गुलशन कपूर ने बताया कि मणिकर्णिका घाट पर बाबा मशाननाथ पर गुलाल और चिताओं के भस्म चढ़कर काशी के लोग भगवान शिव के गण के रूप में भस्म से होली खेलते है।
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दुनिया में काशी एकमात्र ऐसा शहर है जहां मृत्यु के बाद धधकती चिता और राख से होली खेली जाती है। इसे ही मसान की होली कहते है। इस वर्ष 11 मार्च दिन मंगलवार को चिता भस्म की होली होनी है। दरअसल काशी में चिता के भस्म की होली रंगभरी एकादशी के दिन मनाई जाती है। इसी तिथि को बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का विवाह के बाद गौना कराकर अपने धाम काशी लाते हैं। इसी उत्सव पर काशी में चिता भस्म होली खेली जाती है।