वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े आधा दर्जन मुकदमे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित हैं। उच्च न्यायालय इनमें से चार मुकदमों में सुनवाई पूरी होने के बाद करीब चौदह महीने पहले ही अपना फैसला सुरक्षित रख चुका है। दो मामलों में सुनवाई चल रही है। उच्च न्यायालय को मुख्य रूप से सिर्फ यही तय करना है कि वाराणसी की अदालत में वर्ष 1991 में दाखिल किए गए मुकदमे की सुनवाई हो सकती है या नहीं।

उच्च न्यायालय ने वाराणसी की अदालत में दाखिल दीवानी (सिविल) याचिका की सुनवाई पर रोक लगा रखी है। इसमें अदालत से मांग की गई थी कि उस जगह हिंदुओं को सौंपकर उन्हें वहां पूजा-पाठ की इजाजत दी जाए। इस विवाद से जुड़े मुकदमों की सुनवाई दस मई को होगी। अदालत के सामने यह भी चुनौती हो सकती है कि कानूनी पेचीदगियों में उलझे इस मामले में भावनाएं हावी होने लगी हैं।

कैसे हुई विवाद की शुरुआत

वर्ष 1984 में देशभर के पांच सौ से ज्यादा संत दिल्ली में जुटे। धर्म संसद की शुरुआत भी यहीं से हुई। इस धर्म संसद में कहा गया कि हिंदू पक्ष अयोध्या, काशी और मथुरा में अपने धर्मस्थलों पर दावा करना शुरू कर दे। वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी है ज्ञानवापी मस्जिद। यहां अभी मुस्लिम समुदाय रोजाना पांचों वक्त नमाज पढ़ता है। मस्जिद का संचालन अंजुमन-ए-इंतजामिया कमेटी करती है।

वाराणसी की अदालत में स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर भगवान की तरफ से दाखिल अर्जी में कहा गया है कि जिस जगह ज्ञानवापी मस्जिद है, वहां पहले भगवान विश्वेश्वर का मंदिर हुआ करता था और श्रृंगार गौरी की पूजा होती थी। मुगल शासकों ने इस मंदिर को तोड़कर इस पर कब्जा कर लिया था और मस्जिद बनवा दी। अंजुमन-ए-इंतजामिया कमेटी ने साल 1998 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की अर्जी का विरोध किया।

मस्जिद कमेटी की तरफ से अदालत में दलील दी गई कि साल 1991 में बने ‘सेंट्रल रिलिजियस वर्शिप एक्ट 1991’ के तहत यह याचिका विचारणीय नहीं है। इस कानून में यह साफ तौर पर कहा गया है कि अयोध्या के विवादित परिसर को छोड़कर देश के बाकी धार्मिक स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 को थी, उसी स्थिति को बरकरार रखा जाएगा।

दूसरी अर्जी में कौन से तर्क

स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की तरफ से वाराणसी की अदालत में अन्य एक अर्जी दाखिल की गई, जिसमें यह कहा गया कि उच्चतम न्यायालय के निर्देश के तहत किसी भी मामले में जब छह महीने से ज्यादा स्टे यानी स्थगन आदेश आगे नहीं बढ़ाया जाता है तो वह खुद ही निष्प्रभावी यानी खत्म हो जाता है। निचली अदालत में सुनवाई पर रोक के मामले में कोई स्थगन आदेश लंबे समय से पारित नहीं किया है, इसलिए यह स्टे खत्म हो गया है और सिविल जज सीनियर डिवीजन को इस मामले में फिर से सुनवाई शुरू कर देनी चाहिए।

वाराणसी की अदालत ने इस अर्जी को मंजूर कर लिया और फिर से सुनवाई शुरू किये जाने का फैसला सुनाया। दोनों मुसलिम पक्षकारों ने इसके खिलाफ भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल की थी। उच्च न्यायालय ने इस अर्जी को पहले से चल रहे मुकदमे से जोड़ दिया और एक साथ सुनवाई की। इसके बाद उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

कितनी जमीन का है विवाद

इस मामले में उच्च न्यायालय को मुख्य तौर पर यही तय करना है कि क्या वाराणसी की जिला अदालत में इकतीस बरस पहले साल 1991 में दाखिल किये गए मुकदमे की सुनवाई हो सकती है या नहीं। एक बीघा नौ बिस्वा और छह धुर जमीन के इस विवाद में जहां हिंदू पक्षकार विवादित जगह हिंदुओं को देकर वहां पूजा करने की इजाजत दिए जाने की मांग कर रहे हैं तो वहीं मुसलिम पक्ष 1991 के कानून का हवाला देकर मुकदमे को खारिज करने की अर्जी दे चुके हैं।

इस मामले में ज्ञानवापी मस्जिद का काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट से किसी तरह का कोई विवाद नहीं है। मंदिर का ट्रस्ट इस पूरे मामले में कहीं भी पक्षकार नहीं है और ना ही उसने कहीं कोई याचिका दाखिल कर रखी है। ऐसे में अगर हिंदू पक्ष की अर्जी मंजूर होती है तो जमीन किसे सौंपी जाएगी, यह सवाल उठेगा।

अदालत में चल रही सुनवाई के दौरान यह तथ्य भी सामने आए कि काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट और इंतजामिया कमेटी के भी बीच रिश्ते काफी बेहतर हैं। मस्जिद कमेटी ने विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट से एक जमीन की अदला बदली भी की है। यह अदला बदली आपसी सहमति के आधार पर की गई है। इस कवायद में लगने वाले स्टैंप ड्यूटी का खर्च भी मंदिर की कमेटी के ट्रस्ट ने ही उठाया है।

कब-कब क्या हुआ

1991 : स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से वाराणसी कोर्ट में पहली याचिका दायर की गई। याचिकाकर्ता ने ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने की अनुमति मांगी।
1998 : ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमान इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया। कमेटी ने कहा कि इस मामले में सिविल कोर्ट कोई फैसला नहीं ले सकती। हाईकोर्ट के आदेश पर सिविल कोर्ट में सुनवाई पर रोक लगी। 22 साल तक इस केस पर सुनवाई नहीं हुई।

2019 : स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से वाराणसी जिला अदालत में याचिका दायर की गई। इस याचिका में ज्ञानवापी परिसर का सर्वे आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया की ओर से कराने की मांग की गई।

2020 : अंजुमान इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने ज्ञानवापी परिसर का एएसआइ से सर्वे कराने की मांग वाली याचिका का विरोध किया। इसी साल हिंदू पक्ष ने निचली अदालत का रुख भी किया, जिसमें मामले की सुनवाई फिर से शुरू करने की मांग की।

क्या कहते हैं जानकार

यह मामला अब कानूनी कम और भावनात्मक ज्यादा होता जा रहा है, ऐसे में अगर तथ्यों को नियमों की कसौटी पर परखने के बजाय आपसी सहमति से कोई हल निकालने की कोशिश की जाए तो ज्यादा बेहतर होगा।

  • सैयद फरमान नकवी, इंतजामिया कमेटी के वकील

ज्ञानवापी परिसर का यह दूसरी बार सर्वे हो रहा है। पहली बार 1996 में हुआ था। तब भी सर्वे पूरा नहीं हो पाया था। पिछले सर्वे में जो प्रतीक चिह्न मिले थे, वे अब खत्म किए जा रहे हैं। मैं यह बात दावे से कह सकता हूं।

  • हरिशंकर जैन, ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के मुख्य पैरोकार