कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में दिग्गज नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की जीत तकरीबन तय मानी जा रही है। लेकिन उनकी जीत की सबसे ज्यादा जरूरत कर्नाटक कांग्रेस को है। सूबे के नेताओं को लगता है कि खड़गे की जीत धड़ों में बंटी कांग्रेस को एक करने के साथ पिछड़े वोट बैंक को पार्टी की तरफ खींच सकती है। खासकर हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र में। इसे कल्याणा कर्नाटक के नाम से भी जाना जाता है। इस क्षेत्र में सात जिले शुमार किए जाते हैं।
खड़के कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में गांधी परिवार की तरफ से मैदान में उतरे हैं। उनका मुकाबला शशि थरूर से है। उनकी जीत लगभग तय है। खड़गे कर्नाटक कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार किए जाते हैं। हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र से वो नौ दफा विधायक रह चुके हैं। लोकल नेता मानते हैं कि खड़गे की जीत से कर्नाटक को फायदा हो सकता है। पिछड़े व दलित वोट जो पार्टीसे दूर होते दिख रहे हैं वो खड़गे का कद बढ़ने के बाद फिर से कांग्रेस से जुड़ सकते हैं। फिलहाल कांग्रेस के लिए ये चीज संजीवनी हो सकती है।
हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र को संविधान के आर्टिकल 371 के जरिए यूपीए सरकार ने स्पेशल स्टेटस का दर्जा दिया था। 2012 में ये फैसला तब हुआ जब मनमोहन सिंह की सरकार थी और खड़गे एक कद्दावर केंद्रीय मंत्री। माना जाता है कि सरकार के इस फैसले में उनकी अहम भूमिका थी। 371 के जरिए सूबे के गवर्नर को ऐसी शक्ति मिलती है जिससे वो इस क्षेत्र के सात जिलों गुलबर्गा, बिदर, रायचूर, कोप्पल, यदगिर और अविभाजित बेल्लारी शामिल हैं।
इलाके में कर्नाटक की 39 असेंबली सीटें आती हैं। 2018 के चुनाव में बीजेपी से लड़ाई में कांग्रेस ने यहां 19 सीटों पर कब्जा किया था। भगवा दल के हाथ 16 सीटें लगी थीं। जबकि जद (एस) चार सीटों पर जीत का परचम लहराने में कामयाब रहा था। बाद में हुए उपचुनावों में बीजेपी ने कांग्रेस से दो सीटें छीन ली थीं।
मैसूर विवि के पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट के प्रो. मुजफ्फर एच असादी कहते हैं कि वैसे खड़गे कर्नाटक में अब उतने प्रभावी नहीं हैं। लेकिन वो कांग्रेस अध्यक्ष बने तो असर पड़ना लाजिमी है। फिहलाल कांग्रेस डीके शिवकुमार और पूर्व सीएम सिद्धरमैया के बीच फंसती दिख रही है। उनके जीतने के बाद दोनों पर उनका पूरा असर रहेगा। दलित समुदाय की तादाद सूबे में तकरीबन 23 फीसदी है। उन पर खड़गे की जीत का असर पड़ेगा।