कारगिल युद्ध को 20 साल हो चुके हैं, लेकिन भारतीय सुरक्षाबलों के अदम्य साहस और वीरता के चलते आज तक देशवासियों की स्मृति में इसकी यादें ताजा हैं। कारगिल युद्ध इसलिए भी खास है कि दुश्मन पहाड़ियों की ऊंचाई पर बैठा था और युद्ध के हालात के अनुरुप उसकी स्थिति काफी मजबूत थी। इसके बावजूद भारतीय सुरक्षाबलों ने जिस वीरता और सूझबूझ के साथ इस युद्ध को ना सिर्फ लड़ा, बल्कि जीता भी, उसने भारतीय सेना की साख को कई गुना बढ़ाया। ऊंचाई पर मौजूद दुश्मन कैंप को तबाह करने के लिए भारतीय वायुसेना ने उच्च तकनीकी कौशल दिखाया। जिसमें भारतीय वायुसेना को इजरायल की भी काफी मदद मिली। दरअसल भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों में इजरायल के लाइटेनिंग लेजर डेजिगनेटर पॉड लगे थे। इन पॉड की मदद से भारतीय वायुसेना को दुश्मन कैंपों पर सटीक निशाने लगाने में बड़ी मदद मिली।

कारगिल युद्ध के दौरान 24 जून, 1999 को विंग कमांडर रघुनाथ नांबियार के नेतृत्व में वायुसेना के लड़ाकू विमानों मिराज-2000 ने इजरायल के लाइटेनिंग पॉड की मदद से टाइगर हिल पर मौजूद दुश्मन के ठिकानों को पहली बार निशाना बनाया था। सोमवार को टाइगर हिल स्ट्राइक की 20वीं वर्षगांठ थी। इस दौरान वायुसेना ने अपने इस ऑपरेशन की जानकारी साझा की। रघुनाथ नांबियार, जो कि अब वायुसेना की अहम पश्चिमी एयर कमांड के एयर मार्शल हैं, उन्होंने बताया कि विमानों को लाइटेनिंग पॉड और 1000 पाउंड के लेजर गाइडेड बमों से लैस करने की प्रक्रिया 12 दिनों में पूरी हुई थी।

अमेरिका ने लगा दिया था प्रतिबंधः एनडीटीवी की एक खबर के अनुसार, कारगिल युद्ध से 2 साल पहले यानि कि 1997 में भारत ने इजरायल के साथ लाइटेनिंग पॉड का सौदा किया था। इस सौदे के तहत 15 लाइटेनिंग पॉड जगुआर लड़ाकू विमानों और 5 पॉड मिराज-2000 विमानों में लगाए जाने थे। ये लाइटेनिंग पॉड, अमेरिका के पेववे लेजर गाइडेड बम किट की मदद से इस्तेमाल किए जाने थे, लेकिन साल 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगा दिए, जिसके चलते भारत को अमेरिका से यह पेववे लेजर गाइडेड बम किट कभी नहीं मिल सकी। इसके साथ ही एक समस्या यह भी थी कि वायुसेना के मिराज-2000 लड़ाकू विमान काफी पुराने थे और 1985 में फ्रांस में बनाए जाने के बाद से इनके सॉफ्टवेयर को अपग्रेड भी नहीं किया गया था।

इजरायल ने की मददः चूंकि अमेरिका ने भारत को पेववे लेजर गाइडेड बम किट नहीं दी थी, ऐसे में इजरायल से मिले लाइटेनिंग पॉड भारत इस्तेमाल नहीं कर पा रहा था। इस पर भारत ने इजरायल से मदद मांगी और इसके बाद इजरायल के तकनीकी विशेषज्ञों और भारतीय वायुसेना की एयरक्राफ्ट एंड सिस्टम टेस्टिंग इस्टेब्लिशमेंट (ASTE) ने मिलकर लाइटेनिंग पॉड और पेववे लेजर गाइडेड किट में संपर्क बनाया। हालांकि भारतीय वायुसेना की परेशानी यहीं खत्म नहीं हुई क्योंकि वायुसेना के मिग-27 और मिग-21 जैसे विमान कारगिल की ऊंची चोटियों पर सटीक निशाना लगाने में समर्थ नहीं थे। इसकी वजह ये थी कि ये विमान अपने लक्ष्य को भेदने के लिए थोड़ा नीचे उड़ान भरते हैं। ऐसे में पाकिस्तानी सेना अपनी एयर मिसाइलों से इन विमानों को निशाना बना सकती थी। गौरतलब है कि पाकिस्तानी सेना इससे पहले भारत के एक मिग-21 फाइटर जेट और एक एमआई-17 हेलीकॉप्टर को इसी तरह से निशाना बना चुकी थी। जिसमें वायुसेना के 5 जवान शहीद हुए थे।

यही वजह थी कि मिराज-2000 विमानों को इस लाइटेनिंग पॉड से लैस किया गया। पहले यह काम बेंगलुरु में और फिर ग्वालियर में पूरा किया गया। 24 जून, 1999 के दिन सुबह 6.30 बजे भारतीय वायुसेना के मिराज-2000 लड़ाकू विमानों ने पंजाब के आदमपुर एयरबेस से उड़ान भरी। टाइगर हिल के ऊपर 50 किलोमीटर पहुंचने पर लाइटेनिंग पॉड की मदद से लेजर गाइडेड बम दागे गए। इन बमों ने 30 सेकेंड में सफलतापूर्वक अपने लक्ष्यों को भेद दिया।