सौरभ कालिया की पहली पोस्टिंग करगिल सेक्टर में हुई थी। 12 दिसंबर 1998 को वे जाट रेजिमेंट की 4 जाट यूनिट का हिस्सा बन गए थे। एक ऐसी यूनिट जिसके बहादुरी के किस्से इतिहास के पन्नों में गढ़े हुए हैं, जिसका शौर्य देख दुश्मन के आज भी पसीने छूटते हैं। सौरभ कालिया बतौर लेफ्टिनेंट जाट रेजिमेंट के साथ जुड़े थे। पहली सैलरी तक नहीं आई थी, सेना में ढलने की कोशिश में लगे थे। माहौल बिल्कुल अलग था, लेकिन देश सेवा का एक जुनून भी साथ चल रहा था।

पहला और आखिरी टास्क, फिर कभी नहीं लौटे सौरभ

ज्वाइनिंग के ठीक चार महीने बाद सौरभ कालिया को उनका पहला मिशन सौंपा गया था। कहने को सेना के लिए वो एक रुटीन काम था, लेकिन सौरभ नहीं जानते थे कि उनकी तकदीर उन्हें कहां लेकर जाने वाली थी। सौरभ को उनकी रेजिमेंट ने कहा था कि उन्हें करगिल के ककसर लांगपा चोटी पर जाना होगा। वहां पर क्योंकि काफी बर्फबारी रहती है, ऐसे में बर्फ के पिघलने का इंतजार रहता है। जब बर्फ पिघल जाती है तो फिर उस क्षेत्र में पैट्रोलिंग शुरू की जाती है। यह एक ऐसी डील है जो पाकिस्तान और भारत दोनों के बीच रही है। इसी वजह से सौरभ कालिया तो एक रुटीन काम के लिए जा रहे थे। उन्हें चेक करना था कि बर्फ पिघली या नहीं।

सौरभ हुए नापाक साजिश का शिकार

अब सौरभ को उस टास्क के लिए अकेला नहीं भेजा गया था। उनके साथ पांच और जवानों को भेजा गया था। काबिलियत ऐसी थी कि सौरभ को उस मिशन पर जाने से पहले ही प्रमोशन दिया गया, उन्हें लेफ्टिनेंट से कैप्टन बना दिया गया। बात बड़ी थी क्योंकि अनुभव इतना था नहीं, सर्विस में सिर्फ कुछ महीने बीते थे। लेकिन काम इतना शानदार रहा कि सौरभ कालिया को चार महीने में ही कैप्टन बना दिया गया। अब अपने पांच जवानों के साथ कैप्टन सौरभ करगिल की उस ऊंची चोटी के लिए निकल गए। कई दिनों बाद खराब मौसम के बीच में वे अपनी टीम के साथ ककसर लांगपा पहुंच गए। वहां जाते ही उन्होंने देखा पाकिस्तान के सैनिक पहले ही वहां खड़े हैं। ऊंची चोटी पर उन्होंने खुद को इकट्ठा कर लिया है।

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पाक सेना से मुकाबला, गोलियां हो गईं खत्म

अब यह स्थिति एकदम पैनिक वाली थी। अचानक से पाकिस्तान की इस नापाक साजिश का सामने आना हैरान कर गया था। तुरंत ही वहां पर फायरिंग शुरू हो गई। पाकिस्तान के सैनिकों ने भारत पर की और हिंदुस्तान के जवानों ने उन पर। काफी देर तक ऐसे ही गोलियों की तड़तड़ाहट से वो चोटी गूंजरी रही। लेकिन फिर कैप्टन सौरभ कालिया और उनके साथियों की गोलियां खत्म होने लगीं। हथियार कम पड़ गए, दूसरी तरफ पाकिस्तान के सैनिक पहले ही पूरी तैयारी के साथ वहां बैठे थे। कैप्टन सौरभ ने अपने बेस में यह इनपुट दे दिया था कि उन्हें तुरंत सपोर्ट की जरूरत है, लेकिन काफी देर हो चुकी थी।

अटल विश्वास टूटा, करगिल में युद्ध शुरू

पाकिस्तान के सैनिकों ने कैप्टन सौरभ और उनके साथियों को अपने कब्जे में ले लिया। यह 15 मई, 1999 की बात है। अभी तक करगिल का युद्ध कोई शुरू नहीं हुआ था। लेकिन कुछ बुरा होने की आशंका मिल चुकी थी। इसी वजह से जब कैप्टन सौरभ वापस नहीं लौटे, दूसरी टीम तुरंत उन्हें देखने के लिए रवाना कर दी गई। लेकिन बजरंग पोस्ट पर पहुंचते ही उन्हें कोई नहीं दिखा, कई दिनों तक सर्च ऑपरेशन चला, लेकिन कोई सबूत नहीं, कोई सुराग नहीं। अब जब वो दूसरी टीम सौरभ और उनकी टीम को खोज रही थी, उन्होंने पाक सेना की बढ़ती उपस्थिति को नोटिस कर लिया था। जो भारत के इलाके थे, वहां पर पाक सैनिक हथियारों के साथ खड़े थे। समझ आ चुका था बड़ी साजिश हुई है, अटल बिहारी वाजपेयी को मिले आश्वासन को पाकिस्तान द्वारा तार-तार किया गया है।

लोहे से भी मजबूत जिगरा, टॉर्चर झेलता रहा सौरभ

दूसरी तरफ पाकिस्तान के रेडियो Skardu ने ऐलान कर दिया कि कैप्टन सौरभ कालिया और उनके साथी जवान पाक सेना के कब्जे में है। अब भारत को दो अहम इनपुट मिल गए थे। पहला यह कि कैप्टन सौरभ जिंदा है और दूसरा यह कि पाकिस्तान उन्हें अपने कब्जे में लिया है। अब किसी भी सैनिक का दुश्मन देश के कब्जे में चले जाना अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता। कहीं देश के बड़े राज दुश्मन के सामने ना खुल जाएं, इस बात का डर सताता रहता है। लेकिन 22 साल कैप्टन सौरभ कालिया अलग मिट्टी के बने थे। उम्र कम थी, लेकिन अनुभव ना के समान, लेकिन जिगरा लोहे से भी मजबूत।

22 दिन की हैवानियत, कोई अंग नहीं छोड़ा

पाकिस्तान ने अपनी तरफ से सौरभ कालिया को खूब टॉर्चर किया। मारते रहे, हैवानियत की हदें पार कर दीं, लेकिन उन कायरों को कहा पता था कि इस बार पंगा भारत के एक सैनिक से था, वो सैनिक जिसकी रगों में खून नहीं राष्ट्रभक्ति की धारा प्रवाह होती है। 22 दिन तक इस पाक सेना ने वो सब किया जिससे सौरभ टूट जाते, भारत के राज खोल देते। लेकिन कोई हथकंडा, कोई हथियार, कोई टॉर्चर काम नहीं आया, सीना चौड़ा और आंखों में देख कर सौरभ कालिया ने बता दिया था वे डरने वाली पार्टी नहीं है, वे झुकने वाले नहीं है। इसी वजह पाकिस्तानी बौखला गए और अपने टॉर्चर को और ज्यादा बढ़ा दिया। यातनाएं इतनी दी गईं कि जिसका कोई हिसाब नहीं।

कायरों की पोल सौरभ के शव ने खोली

15 मई से तारीख बढ़कर 7 जून आ गई और भारत को कुल पांच शव पाकिस्तान से मिले। सारे वही सैनिक थे जो 15 मई को नापाक साजिश का पता लगाने गए थे। सभी के नाम के पीछे शहीद लग चुका था। लेकिन वो शहादत दर्दनाक थी। पता भी इसलिए चल पाया क्योंकि किसी के भी शव को पहचाना भी मुश्किल हो रहा था। इस वजह से पोस्टमार्टम हुआ और पाकिस्तान की कायरता की पूरी कहानी बयां हो गई। आंखों में पंक्चर, कान में गर्म आयरन रोड से छेद किया गया, ज्यादातर हड्डियों में फ्रैक्चर और टूटे हुए दात। प्राइवेट पार्ट तक इन दरिंदों ने बख्शे नहीं थे, वहां भी गहरी चोटें रिपोर्ट में आई थीं।

25 साल, आज भी कालिया परिवार मांग रहा न्याय

अब इतनी चोटों के बीच भी सौरभ कालिया को एक ऐसा सम्मान मिला था, जिसके लिए उन्होंने इस सेना में जाने का सोचा था। माना शहीद हुए, लेकिन देश के तिरंगे में लिपट कर आए थे। माना उन्हें कोई अलग से सम्मान नहीं मिला, लेकिन देश के तिरंगे के लिए कुर्बान होने का सौभाग्य उनके पास आया। अब सौरभ कालिया इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उनके पिता एक लड़ाई पिछले 25 साल से लड़ रहे हैं। वे अपने बेटे को शहीद मानते हैं, लेकिन उसके साथ हुई क्रूरता को अंतरराष्ट्रीय नियमों की अनदेखी के रूप में देखते हैं। आज भी पाकिस्तान किसी भी तरह के टॉर्चर से नकार रहा है, लेकिन भारत के लिए सौरभ कालिया ना सिर्फ एक महान सपूत हैं बल्कि सच्चे देशभक्त हैं जिन्होंने देश हित के लिए महा बलिदान देने का काम किया।