कांची शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती और आठ अन्य को शुक्रवार को एक अदालत ने 2002 के आडिटर राधाकृष्णन हमला मामले में हत्या की कोशिश के आरोप सहित सभी आरोपों से बरी कर दिया। प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पी. राजामणिकम ने अपने संक्षिप्त आदेश में सभी आरोपियों को बरी कर दिया।
अदालत कक्ष खचाखच भरा हुआ था जहां उनके समक्ष आरोपी पेश हुए थे। न्यायाधीश ने कहा, ‘मैं आप सभी को बरी करता हूं। आप जा सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि गवाही से मुकरे वायदामाफ गवाह रवि सुब्रमण्यम पर अलग से मुकदमा चलाया जाएगा। जयेंद्र सरस्वती (80), जो प्रमुख आरोपी थे, कांची मठ के प्रबंधक सुदारेसा अय्यर और कनिष्ठ शंकराचार्य विजयेंद्र सरस्वती के भाई रघु पर आपराधिक साजिश रचने का मुख्य आरोप तथा हत्या की कोशिश और उकसावे के आरोप थे।
अभियोजन पक्ष के अनुसार आरोपी द्वारा साजिश रचे जाने के बाद मठ के पूर्व आडिटर एस. राधाकृष्णन पर एक गिरोह ने यहां उनके घर में 20 सितंबर, 2002 को हमला किया था। आरोपी ने यह सोच कर साजिश रची कि राधाकृष्णन शंकर मठ में कथित ‘अनियमितताओं’ को रेखांकित कर सोमशेखर गणपाडिगाल के छद्म नाम से पत्र लिख रहे हैं।
हमला जयेंद्र सरस्वती द्वारा इस तरह के पत्रों पर कथित रूप से निराशा जताए जाने का परिणाम था और उन्होंने युदारेसा अय्यर तथा रघु से इस बारे में कुछ करने को कहा था। पुलिस ने जयेंद्र सरस्वती सहित 12 व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था और हत्या की कोशिश तथा आपराधिक साजिश सहित अपराधों में 2006 में आरोपपत्र दायर किया था।
दो आरोपियों की मौत मामले के लंबित रहने के दौरान हो गई। सीआरपीसी की धारा 313 के तहत सवालों का जवाब देने के लिए 28 मार्च को न्यायाधीश के समक्ष पेश हुए शंकराचार्य ने कहा था कि अभियोजन द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए आरोप झूठे हैं। वर्ष 2013 में शंकराचार्य और उनके कनिष्ठ को पुडुचेरी की अदालत ने सितंबर 2004 में हुई कांचीपुरम वरदराजा मंदिर के प्रबंधक शंकररमन की हत्या से संबंधित मामले में बरी कर दिया था। शंकराचार्य पर शंकररमन को रास्ते से हटाने के लिए साजिश रचने का आरोप लगा था क्योंकि उन्होंने मठ में कथित अनियमितताओं का ‘खुलासा’ किया था, लेकिन अदालत ने उन्हें तथा अन्य को बरी कर दिया।