Madhya Pradesh Government Political Crisis: ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। इसके साथ ही कांग्रेस के 22 विधायकों ने भी विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। जिसके चलते मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार के गिरने की आशंका पैदा हो गई है। गौरतलब है कि साल 1967 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने मध्य प्रदेश की डीपी मिश्रा की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभायी थी।

जिसके बाद ही मध्य प्रदेश में पहली गैर-कांग्रेस सरकार का गठन हुआ था। 1967 में कांग्रेस की सरकार को बहुमत मिला था और डीपी मिश्रा सीएम चुने गए थे। लेकिन बाद में पार्टी के 36 विधायकों ने विजयाराजे सिंधिया के प्रति अपनी निष्ठा दिखाते हुए विपक्ष का दामन थाम लिया था। जिसके बाद डीपी मिश्रा की सरकार गिर गई थी।

राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने अपना पहला चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीता था, लेकिन बाद में वह जनसंघ के साथ जुड़ गईं और पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शुमार रहीं। साल 1980 के चुनाव में विजयाराजे सिंधिया को रायबरेली में इंदिरा गांधी के सामने हार का सामना करना पड़ा था। सिंधिया की रिश्तेदार यशोधरा राजे सिंधिया और वसुंधरा राजे सिंधिया भी भाजपा की सदस्य हैं।

ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया भी पहली बार साल 1971 में जनसंघ के टिकट पर ही संसद में पहुंचे थे। हालांकि राजीव गांधी के साथ निकटता होने के चलते माधवराव सिंधिया ने बाद में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली थी।

पीवी नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी थी और अपनी खुद की पार्टी मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस का गठन कर लिया था। हालांकि बाद में वह फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

मध्य प्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा में दो सीटें फिलहाल रिक्त हैं। ऐसे में 228 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास मामूली बहुमत है। अगर 22 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार कर लिये जाते हैं तो विधानसभा में सदस्यों की प्रभावी संख्या महज 206 रह जाएगी। उस स्थिति में बहुमत के लिये जादुई आंकड़ा सिर्फ 104 का रह जाएगा।

कांग्रेस के पास सिर्फ 92 विधायक रह जाएंगे, जबकि भाजपा के 107 विधायक हैं। कांग्रेस को चार निर्दलीयों, बसपा के दो और सपा के एक विधायक का समर्थन हासिल है। उनके समर्थन के बावजूद कांग्रेस बहुमत के आंकड़े से दूर हो जाएगी।