भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नाम की सिफारिश की है। जस्टिस चंद्रचूड़ देश के 50वें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया होंगे। चीफ जस्टिस यूयू ललित 8 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल दो सालों का होगा और वह 10 नवंबर 2024 को रिटायर होंगे।

जब बेटे ने पलटा था पिता का फैसला

दरअसल 1985 में तत्कालीन सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ ने जस्टिस आरएस पाठक और जस्टिस एएन सेन के साथ आइपीसी की धारा-497 की वैधता को बरकरार रखा था। सोमित्रि विष्णु मामले में जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में लिखा था कि सामान्य तौर पर यह स्वीकार किया गया है कि संबंध बनाने के लिए फुसलाने वाला आदमी ही है न कि महिला है।

33 साल बाद अगस्त 2018 में फैसले को पलटते हुए जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के बेटे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक ऐसे ही मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हमें ऐसे फैसले सुनाने चाहिए जो वर्तमान में प्रासंगिक हों। उन्होंने कहा था कि ऐसी महिलाएं हैं जो अपने ऐसे पतियों से पिटती भी हैं जो कुछ कमाते भी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वह तलाक लेना चाहती है, लेकिन ऐसे मामले वर्षों तक अदालतों में लटके रहते हैं।

एक और फैसला पलटा

वहीं 1976 में एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने इस दलील को खारिज कर दिया था कि निजता जीवन के अधिकार के तहत मौलिक अधिकार है। इस पीठ में प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एएन राय, जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़, जस्टिस पीएन भगवती, जस्टिस एमएच बेग और जस्टिस एचआर खन्ना शामिल थे। ये एसडीएम जबलपुर मामला था। हालांकि जस्टिस एचआर खन्ना का मत अलग था और उन्होंने अलग फैसला लिखा था।

2017 में एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने लिखा कि एडीएम जबलपुर मामले में बहुमत के फैसले में गंभीर खामियां थीं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने लिखा कि जस्टिस खन्ना पूरी तरह सही थे। उन्होंने लिखा कि संविधान को स्वीकार करके भारत के लोगों ने अपना जीवन और निजी आजादी सरकार के सामने आत्मसमर्पित नहीं की है।