CJI BR Gavai on Other Supreme Court Judges: देश की सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर.गवई ने मगंलवार को सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों को के लेकर अहम बयान दिया। उन्होंने कहा कि सीजेआई, सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों से वरिष्ठ या श्रेष्ठ नहीं हैं। उन्होंने यह टिप्पणी उस समय की, जब उनकी अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ईडी के द्वारा रितु छाबड़िया बनाम भारत संघ एव अन्य मामले में कोर्ट के 26 अप्रैल 2023 के फैसले को वापस लेने के आवेदन पर विचार कर रही थी।

ईडी से जुड़े इस मामले में सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ में जस्टिस विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया भी शामिल थे। बता दें कि रिटायर्ड जस्टिस कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार की दो सदस्यीय बेंच ने अपने 2023 के फैसले में जांच एजेंसियों द्वारा जांच पूरी होने से पहले ही अदालत में आरोपपत्र दाखिल करने की “प्रथा” की निंदा की थी, ताकि आरोपियों को डिफ़ॉल्ट जमानत से वंचित किया जा सके।

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जमानत के अधिकार की कही थी बात

सुप्रीम कोर्ट की 2023 की उस बेंच ने कहा था कि ऐसे मामलों में भी आरोपियों के डिफ़ॉल्ट जमानत के अधिकार को समाप्त नहीं किया जाएगा। कानून के अनुसार निचली अदालतों में विचाराधीन मामलों में अभियुक्त की गिरफ्तारी की तारीख से 60 दिनों के भीतर और सत्र न्यायालय में 90 दिनों के भीतर आरोपपत्र दाखिल करना होता है। इस अवधि के भीतर आरोपपत्र दाखिल न करने पर अभियुक्त को डिफ़ॉल्ट ज़मानत का अधिकार मिल जाता है।

एजेंसी ने किया था सुप्रीम कोर्ट का रुख

26 अप्रैल के फैसले के कुछ दिनों बाद ईडी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने रितु छाबड़िया मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर उसके द्वारा जांचे गए एक मामले में आरोपी को जमानत दे दी है। एजेंसी ने बताया कि इस फैसले के देशव्यापी नतीजे होंगे।

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सीजेआई गवई ने क्यों जताई नाराजगी

इस मामले में मुख्य न्यायाधीश गवई ने एक न्यायाधीश वाली बेंच पर अपनी नाराजगी व्यक्त की, भले ही वह मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली बेंच ही क्यों न हो, जो सर्वोच्च न्यायालय की किसी अन्य पीठ के निर्णयों के खिलाफ अपील की सुनवाई करती है। सीजेआई गवई ने पूछा, “जब इस न्यायालय के दो विद्वान न्यायाधीशों की पीठ कोई राहत प्रदान करती है, तो क्या कोई अन्य पीठ, केवल इसलिए कि वह समान संख्या वाली अदालत संख्या 1 में बैठती है, उस निर्णय पर अपील कर सकती है।”

सीजेआई गवई ने कहा, “हम न्यायिक मर्यादा और न्यायिक अनुशासन के पालन में विश्वास करते हैं। अगर हम इसकी अनुमति देते रहेंगे, तो एक पीठ, सिर्फ़ इसलिए कि उसे कोई आदेश पसंद नहीं है, दूसरी पीठ के आदेशों में हस्तक्षेप करती रहेगी।” मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “भारत के मुख्य न्यायाधीश अन्य न्यायाधीशों से श्रेष्ठ नहीं हैं। वह अन्य न्यायाधीशों में प्रथम हैं। मुख्य न्यायाधीश इस न्यायालय के अन्य सभी न्यायाधीशों के समान ही न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करते हैं।”

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ईडी की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने क्या कहा?

ईडी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तीन न्यायाधीशों की पीठ को बताया कि जिस मामले में 26 अप्रैल को फैसला सुनाया गया था, उसमें याचिकाकर्ता ने अदालत के अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग किया था। उन्होंने कहा कि शुरुआत में एक महिला ने याचिका दायर कर कहा था कि उसका पति जेल में है और उसने अपने पति को घर का बना खाना भेजने की अनुमति मांगी थी। इसके बाद याचिकाकर्ता (26 अप्रैल के मामले में) ने भी ऐसी ही एक याचिका दायर की कि ‘मेरे पति भी जेल में हैं, इसलिए मुझे उन्हें घर का बना खाना परोसने की अनुमति दी जाए।”

याचिकाकर्ता ने आगे बताया कि एक ऐसी ही याचिका एक विशेष पीठ के समक्ष लंबित है। दोनों मामले एक साथ सूचीबद्ध हैं। ऐसे में पहली महत्वहीन हो जाती है। इसके बाद दूसरी याचिका में एक इंटरलोक्यूटरी एप्लिकेशन (IA) दायर की जाती है, जिसमें मुख्य प्रार्थना घर का बना खाना भेजने की है। इसमें कहा गया है कि चार्जशीट CrPC की धारा 173(8) के तहत दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि आगे की जाँच जारी है अभी भी चल रही है।

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कई बेंचों के विपरीत बताया फैसला

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच का मानना है कि एक बार जब आप धारा 173(8) के तहत चार्जशीट दाखिल कर देते हैं, तो आपको डिफ़ॉल्ट ज़मानत मिल जाएगी क्योंकि यह एक अधूरी चार्जशीट होती है। उन्होंने आगे कहा कि यह कई बड़ी बेंचों के फैसलों के विपरीत है। उन्होंने आगे कहा कि इसके बाद पूरे भारत में, लोगों ने चार्जशीट (धारा 173(8) के तहत) दाखिल होते ही डिफ़ॉल्ट ज़मानत याचिकाएँ दायर करना शुरू कर दिया।

प्रतिवादियों के वकील ने यह स्पष्ट करने की मांग की कि घर का बना खाना देने की अनुमति देने संबंधी रिट याचिका में डिफ़ॉल्ट ज़मानत के लिए आवेदन मामले की पहली सुनवाई से पहले ही दायर कर दिया गया था। पहली सुनवाई में ही आवेदन स्वीकार कर लिया गया और रिट याचिका में नोटिस जारी कर दिया गया। एसजी ने कहा कि यदि न्यायालय रिकॉल अनुरोध पर विचार नहीं करना चाहता है, तो वह अभी भी दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर ईडी की एसएलपी पर विचार कर सकता है और कानून का निपटारा कर सकता है।

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