अनिल बंसल
बसपा की मुखिया सफेद झूठ बोल रही हैं कि उन्हें अपनी पार्टी में परिवारवाद स्वीकार नहीं है। अपनी पार्टी के सांसद जुगल किशोर के बारे में मायावती ने यही आरोप लगाया था कि अपने बेटे को विधानसभा का टिकट नहीं मिलने के कारण वे बागी हुए हैं पर बसपा में परिवारवाद तो शुरू से ही चलता आ रहा है। रामवीर उपाध्याय और जयवीर सिंह जैसे नेता इसके प्रमाण हैं। दूसरे कई नेताओं के बेटे-बेटियों को भी मायावती ने अतीत में टिकट दिए हैं।
मायावती की हर सरकार में मलाईदार महकमे के मंत्री रहे रामवीर उपाध्याय के भाई मुकुल उपाध्याय विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं। उनकी पत्नी सीमा उपाध्याय 2009 में फतेहपुर सीकरी से लोकसभा के लिए बसपा टिकट पर ही चुनी गई थीं। पिछले लोकसभा चुनाव में वे हार गर्इं। इसी तरह मुकुल उपाध्याय को भी गाजियाबाद से लोकसभा टिकट मिला था। हालांकि मोदी लहर में वे तो क्या जीत पाते, बसपा का सारे देश में ही कहीं खाता नहीं खुल पाया।
मुकुल उपाध्याय जैसी ही मायावती की विशेष कृपा अलीगढ़ के ठाकुर जयवीर सिंह पर भी रही है। वे भी मायावती के चहेते मंत्री रहे। 2007 का विधानसभा चुनाव हार गए तो मायावती ने उन्हें विधान परिषद का सदस्य बना दिया। इतना ही नहीं उनकी पत्नी राजकुमारी को अलीगढ़ से लोकसभा का टिकट दे दिया। वे जीत भी गर्इं। उन पर तो मायावती इस कदर मेहरबान रही हैं कि 2012 के विधानसभा चुनाव में उनके बेटे अरविंद सिंह को भी टिकट थमा दिया। यह बात अलग है कि वे अलीगढ़ में हार गए। जयवीर सिंह के पास अकूत दौलत बताई जाती है। नोएडा में नोएडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी भी उन्हीं की है।
पैसे लेकर टिकट बेचने का मायावती पर आरोप भी अकेले जुगल किशोर ने नहीं लगाया है। अतीत में भी बसपा सुप्रीमो पर ऐसे आरोप खूब लगे हैं। मसलन पिछले लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश दास ने उन पर राज्यसभा सीट बेचने का आरोप लगा कर बगावत की थी। इससे पहले नरेश अग्रवाल भी बागी होकर सपा में वापस चले गए थे। एक और विधायक बालाप्रसाद अवस्थी ने भी जुगल किशोर के सुर में सुर मिलाया है।
उन्होंने आरोप लगाया है कि वरिष्ठता के बावजूद मायावती ने अपनी सरकार में उन्हें महज इस वजह से मंत्री नहीं बनाया था क्योंकि उनके पास देने के लिए करोड़ों रुपए नहीं थे।
दरअसल, मायावती ने दलित की बेटी होने का जम कर सियासी फायदा उठाया है। उन्हें दलित की जगह दौलत की बेटी सबसे पहले दलित नेता रामविलास पासवान ने ही बताया था। इसके बाद उदितराज ने भी यही आरोप दोहराया था। जुगल किशोर और दारा सिंह चौहान जैसे नेताओं की बगावत के निहितार्थ अलग हैं। ये दोनों न केवल दलित हैं बल्कि बसपा काडर के रहे हैं। जुगल किशोर को मायावती ने पहले एमएलसी बनाया था और फिर राज्यसभा में भेज दिया। इसी तरह दारा सिंह चौहान को भी उन्होंने लगातार दो बार राज्यसभा का सदस्य बनाया था।
मायावती की हिमायत में जुगल किशोर के अतीत की परतें उघाड़ने वाले स्वामीप्रसाद मौर्य के परिवार पर भी मायावती की खास कृपा रही है। मौर्य यह क्यों भूल जाते हैं कि बसपा शासन में भ्रष्ट तरीकों से मालामाल होने वाले जुगल किशोर अकेले नहीं है। भ्रष्टाचार के आरोपों में तो खुद मायावती ही घिरी हैं। सीबीआइ और आयकर जांच उनके खिलाफ कभी खत्म ही नहीं हुई। उनके भाई आनंद की छत्रछाया में नोएडा को लूटने वाले इंजीनियर यादव सिंह की कलई तो अभी खुली है। इससे पहले बाबू सिंह कुशवाहा का भंडाफोड़ हुआ ही था।
जिन दलितों को एकजुट कर मायावती ने सत्ता के शिखर को हासिल किया, उनकी भलाई के लिए उन्होंने शायद ही कभी सोचा हो। पार्टी में किसी दलित नेता को उभरने ही नहीं दिया। यही वजह है कि अब दलितों में भी उनके तौर-तरीकों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। दलित होने की दुहाई देकर वे किस कदर दौलतमंद होती गर्इं, किससे छिपा है। अपने जन्मदिन तक पर उगाही के लिए उनके चर्चे होते रहे हैं। अपने जीवन में वे दलितों के लिए आंदोलन करते एक बार भी जेल नहीं गई।
दलितों को बसपा से जोड़ने का असली काम कांशीराम ने किया था। उनका सपना बसपा को राष्ट्रीय पार्टी बनाने का था। अपने मिशन में वे एक हद तक सफल भी हुए थे। पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश में भी बसपा ने लोकसभा सीटें जीत क र राष्ट्रीय स्तर की मान्यता प्राप्त पार्टी का दर्जा हासिल किया था। यहां तक कि 1996 में मध्य प्रदेश के कद्दावर कांगे्रसी अर्जुन सिंह को बसपा के ही एक उम्मीदवार ने हरा दिया था।
लेकिन कांशीराम के बाद उत्तर प्रदेश से बाहर बसपा का जनाधार लगातार छीजता गया। कभी दिल्ली की सत्ता का ख्वाब देखने वाली मायावती अब तो उत्तर प्रदेश तक में अपने अस्तित्व के लिए बेचैन हैं। उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांशीराम के बाद बसपा के गिनती के विधायक चुने तो जरूर जाते रहे पर मायावती को ठेंगा दिखा कर वे सत्ताधारी दल में जा मिले।