व्‍यापमं में गलत तरीके से दाखिला लेने के आरोपी 634 मेडिकल स्‍टूडेंट्स के किस्‍मत का फैसला करने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की राय बंट गई है। इन आरोपियों के एडमिशन कैंसल करने के मुद्दे पर दोनों एक दूसरे से इत्‍तेफाक नहीं रखते।

गुरुवार को अपने फैसले में जस्‍ट‍िस जे चेलेश्‍वर ने कहा कि इन स्‍टूडेंट्स के एडमिशन कैंसल करके इन्‍हें ‘यूजलेस’ बना देना सही नहीं होगा। जज ने कहा, बड़े लोकहित में उनको डॉक्‍टर बन जाने के बाद देश की पांच साल तक सेवा करने की जरूरत है। अच्‍छा हो कि आर्मी में।

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वहीं, बेंच के अन्‍य जज जस्‍ट‍िस अभय एम सप्रे ने माना कि इन 634 स्‍टूडेंट्स को उनकी एजुकेशन पूरी करने देने का मतलब है कि मेधावी छात्रों की कीमत पर गलत तौर तरीके अपनाने में शामिल लोगों को सहूलियत देना। जजों में एकराय न होने की वजह से अब यह मामला चीफ जस्‍ट‍िस के सामने रखा जाएगा ताकि वे बड़ी बेंच बनाकर कैंडिडेट्स की किस्‍मत का फैसला कर सकें।

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बता दें कि सीबीआई सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर व्‍यापमं घोटाले की जांच कर रही है। पिछले साल जुलाई महीने में कोर्ट ने राज्‍य पुलिस को यह मामला सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया था। कोर्ट ने मध्‍य प्रदेश में हुए एडमिशन टेस्‍ट से जुड़ी गड़बडि़यों और मामले से जुड़े दो दर्जन से ज्‍यादा लोगों की मौत के मामलों में जांच के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने उस वक्‍त कहा था कि वे मरने वालों की तादाद और ज्‍यादा बढ़ने नहीं देंगे। वहीं, मध्‍य प्रदेश सरकार ने सीबीआई जांच के खिलाफ दायर पीआईएल का विरोध नहीं किया। मामले की चार्जशीट में बहुत सारे स्‍टूडेंट्स का नाम भी आया।