सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने इस बात पर जोर दिया कि जजों को फैसला देने के बाद गायब हो जाना चाहिए और फैसले को खुद बोलने देना चाहिए। पीएस नरसिम्हा ने कहा कि रिटायरमेंट के बाद जजों को बोलने में संयम बरतना चाहिए, विशेषकर सोशल मीडिया के इस युग में, जहां हर शब्द की रिपोर्ट की जाती है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस नरसिम्हा न्यायमूर्ति चंदुरकर के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की नागपुर बेंच की तरफ से आयोजित किए गए कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया और ज्यादा बोलने की जरूरत के कारण हम (भाषण पर संयम से) दूर हो गए हैं। हर शब्द समाचारों में छपता है और वर्तमान न्यायाधीश भी इसकी चपेट में आ सकते हैं और इससे भी बुरी बात यह है कि रिटायरमेंट के बाद न्यायाधीश सोचते हैं कि ‘अब समय आ गया है कि मुझे बोलना चाहिए’, मुझे लगता है कि व्यवस्था को इस तरह से काम नहीं करना चाहिए।”
न्याय देने के लिए जज का गायब होना जरूरी है- जस्टिस पीएस नरसिम्हा
उन्होंने आगे कहा, “मेरा मानना है कि न्याय देने के लिए न्यायाधीश का गायब होना आवश्यक है। न्यायाधीश को दिखाई नहीं देना चाहिए, न्यायाधीश का इस प्रक्रिया में मौजूद रहने का कोई काम नहीं है, सिवाय इसके कि वह निर्णय ले। एक व्यक्ति के रूप में उसका व्यक्तित्व… यह सब अनावश्यक है। न्यायाधीश निर्णय लेने के अलावा और कुछ नहीं करता और वह गायब हो जाता है। वह (जस्टिस चंदुरकर) एक ऐसे न्यायाधीश हैं जो गायब हो गए हैं, लेकिन उनके निर्णय केवल बोलते हैं और वे बहुत कुछ कहते हैं।”
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सत्य खोजना है तो कम बोलना चाहिए- जस्टिस नरसिम्हा
अपने संबोधन में जस्टिस नरसिम्हा ने वकीलों को अपनी दलीलों में सटीकता बरतने और जजों को अपने फैसले में संक्षिप्तता अपनाने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “अगर सत्य को खोजना है, तो सिद्धांत यह है कि आपको कम बोलना होगा। एक न्यायाधीश के लिए यह अनिवार्य आवश्यकता है कि वह सत्य को व्यक्त करने के लिए बहुत कम बोले और यथासंभव कम लिखे। यह एक साधना है जिसे हमें अवश्य अपनाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि जस्टिस चंदुरकर ऐसे जज थे जिनके फैसले ही बोलते हैं और वे बहुत कुछ कहते हैं। जस्टिस चंदुरकर के स्वभाव की तारीफ करते हुए जस्टिस नरसिम्हा ने कहा, “वे केवल तभी बोलेंगे जब आवश्यक हो। अगर आप इस पर विचार करें, तो आपको एहसास होगा कि वे एक बहुत शक्तिशाली व्यक्ति हैं।”
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