ABVP Success Story: जेएनयू छात्रसंघ के चुनावों में आरएसएस की स्टूडेंट विंग एबीवीपा के प्रदर्शन में अच्छा सुधार देखने को मिला है, क्योंकि दो दशक के बाद एबीवीपी ने केंद्रीय पैनल का पद जीता है। जेएनयू में इसकी जीत में स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज में दो काउंसलर पद शामिल हैं, जो कि संस्थान में मार्क्सवाद का केंद्र जो लंबे समय से वामपंथी विचारधारा से जुड़ा हुआ है। एबीवीपी ने न केवल एसएसएस में पदार्पण किया, बल्कि उसने यूनाइटेड लेफ्ट की बराबरी भी की, जिसने दो काउंसलर पद जीते। पांचवीं सीट कलेक्टिव नामक एक हालिया संगठन को मिली, जिसे मोटे तौर पर वामपंथी माना जाता है।

जेएनयू में एबीवीपी की बढ़त की बात करें तो 1948 में गठित इस संगठन ने पिछले एक दशक में तेजी से विकास किया है। बीजेपी राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत हो रही है, ठीक उसी तरह ABVP देश का सबसे बड़ा छात्र संगठन बन गया है। 1996 में ABVP ने JNU में आखिरी बार जीत दर्ज की थी, जिसमें उसे चार में से तीन सेंट्रल पैनल सीटें मिली थीं। तब भी, उसे SSS में सिर्फ़ एक काउंसिलर सीट मिली थी। 2000 में फिर ABVP ने JNUSU अध्यक्ष पद पर पहली और आखिरी बार जीत हासिल की। इससमें संदीप महापात्रा ने एक वोट से जीत हासिल की, तो छात्र संगठन को SSS में सिर्फ़ एक काउंसिलर सीट मिली थी।

दस साल में तेजी से हुआ ABVP का विस्तार

रामपुर रजा लाइब्रेरी के निदेशक और बाद में बीजेपी के वरिष्ठ नेता बने पुष्कर मिश्रा 1999 में जेएनयूएसयू अध्यक्ष पद के लिए एबीवीपी के दावेदार थे और चार वोटों से हार गए थे। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि छात्र संघ चुनाव के नतीजे समाज में बड़े बदलाव को दर्शाते हैं। जेएनयू से समाजशास्त्र में पीएचडी करने वाले पुष्कर मिश्रा ने कहा, “सभ्यता चेतना की सामाजिक-ऐतिहासिक ताकतें देश के बाकी हिस्सों में भी दिखती है।’

उन्होंने कहा कि जेएनयू में 1996 में सभ्यता चेतना को व्यापक तरीके से मुखरित किया गया था। एबीवीपी का प्रदर्शन उस दिशा में एक छलांग है। दुनिया भर में सामाजिक विज्ञान के विमर्श में अव्यवस्था है और एसएसएस में सुधार एक दिशा की तलाश को दर्शाता है। राजधानी के दूसरे बड़े संस्थान दिल्ली विश्वविद्यालय में एबीवीपी ने करीब एक दशक तक छात्र राजनीति पर अपना दबदबा बनाए रखा है और कांग्रेस के एनएसयूआई को पीछे छोड़ दिया। इस साल अध्यक्ष और संयुक्त सचिव एनएसयूआई से हैं लेकिन दो अन्य पद एबीवीपी के पास हैं।

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असम, लद्दाख और बिहार में भी बढ़त

एबीवीपी के राष्ट्रीय संगठन सचिव आशीष चौहान ने पिछले कुछ सालों में संगठन के भौगोलिक “विस्तार” की ओर इशारा किया है। बीजेपी शासित असम में इसके विस्तार की बात करते हुए उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि चाहे पिछले 10 सालों से गुवाहाटी यूनिवर्सिटी हो या असम यूनिवर्सिटी, सिलचर, डिब्रूगढ़ यूनिवर्सिटी या कॉटन यूनिवर्सिटी, हमने सीटें जीतनी शुरू कर दी हैं। हमने वहां एक उचित असमिया छात्र नेतृत्व विकसित किया है।

असम विश्वविद्यालय में एबीवीपी ने 2015 से चार छात्र संघ चुनावों में हिस्सा लिया है। एबीवीपी के राष्ट्रीय मीडिया संयोजक हर्ष अत्री लद्दाख विश्वविद्यालय का उदाहरण देते हैं कि जहां एबीवीपी ने 2022 और 2023 दोनों में सभी सात पदों पर कब्जा कर लिया था। 2024 में उसे तीन पद मिले थे। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय में 2024 में ABVP ने 20 में से 19 पदों पर जीत हासिल की। ​​हरियाणा में 2018 में संगठन ने भिवानी, जींद और इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय, रेवाड़ी के कई कॉलेजों में जीत हासिल की।

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हर्ष अत्री ने कहा कि हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में 34 निर्वाचित विभागीय प्रतिनिधियों में से 29 ABVP के हैं, जबकि गोवा विश्वविद्यालय में भी पिछली बार ABVP ने सभी नौ सीटें जीती थीं। उत्तर प्रदेश के ज़्यादातर विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव नहीं होते, लेकिन पड़ोसी राज्य बिहार में ABVP का प्रदर्शन अच्छा रहा है। पटना विश्वविद्यालय में, ABVP की मैथिली मृणालिनी 2025 में अध्यक्ष चुनी गईं, जो 108 साल के इतिहास में छात्र संघ की अध्यक्ष बनने वाली पहली महिला बनीं। वर्ष 2012 से एबीवीपी लगातार विश्वविद्यालय में जीतती आ रही है, जिसमें उपाध्यक्ष, महासचिव और कोषाध्यक्ष के पद भी शामिल हैं।

दिल्ली में ABVP के कार्यक्रम में शामिल हुए थे मोहन भागवत

पिछले हफ़्ते दिल्ली में ABVP के नए दफ़्तर के उद्घाटन में संगठन की बढ़ती ताकत को दर्शाया गया, जिसमें RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत खुद शामिल हुए। इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों से ABVP के स्टार पूर्व छात्र भी मौजूद थे। इनमें केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और धर्मेंद्र प्रधान, कई राज्य मंत्री और सांसद, कई RSS प्रचारक और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े शामिल थे।

संयोग से ABVP से भाजपा तक का रास्ता NSUI से कांग्रेस तक जितना सीधा नहीं है, और अकसर इसे बड़े संघ परिवार से होकर गुजरना पड़ता है। ABVP के सदस्य कई RSS संगठनों जैसे वनवासी कल्याण आश्रम, भारतीय मजदूर संघ, विद्या भारती आदि से जुड़े हो सकते हैं और सभी प्रमुख भाजपा राजनेता नहीं बन सकते हैं।