जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी में आगामी 6 सितंबर को छात्रसंघ के चुनाव होने हैं। इस चुनाव में बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट एसोसिएशन (BAPSA) की ओर से जितेन्द्र सुना को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया गया है। जितेन्द्र सुना जेएनयू में पीएचडी के छात्र हैं। गौरतलब है कि जितेन्द्र सुना साल 2009 में मजदूरी और गैस कंपनी में हेल्पर का काम कर चुके हैं। ऐसे में उस स्तर से उठकर जेएनयू तक का सफर और फिर अब जेएनयू छात्रसंघ में अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनने तक की जितेन्द्र सुना की कहानी काफी प्रेरक है।

ओडिशा के कालाहांडी से है ताल्लुकः बता दें कि जितेन्द्र सुना का जन्म ओडिशा के पिछड़े जिले में शुमार कालाहांडी के पोरकेला गांव में हुआ था। अपनी जीवन के शुरुआती दौर में जितेन्द्र सुना ने एक मजदूर के तौर पर काम किया। जितेन्द्र की मां सब्जी बेचने का काम करती थीं, वहीं उनके पिता एक कृषि मजदूर थे। साल 1960 में हुए भूमि सुधार के बाद सुना के परिवार को एक एकड़ जमीन मिली, लेकिन अब वो भी बंधक है।

द इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में जितेन्द्र सुना ने बताया कि ‘जब मैं कक्षा 8 में था, तभी मेरी मां का देहांत हो गया। इसके बाद मैंने खेतों में बुवाई का काम शुरू कर दिया, जिसके लिए मुझे 30-40 रुपए प्रतिदिन मिलते थे। इसके बाद मैंने मनरेगा के तहत सड़कें और तालाब खुदाई का काम भी किया, जिससे मुझे 100-150 रुपए प्रतिदिन मिल जाते थे।’

जितेन्द्र सुना ने बताया कि स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वह पैसे कमाने के उद्देश्य से दिल्ली आ गए। दिल्ली में उनका एक भाई आईजीएल (इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड) में काम करता था, इसलिए जितेन्द्र ने भी आईजीएल के एक गैस स्टेशन पर काम करना शुरू कर दिया। सुना बताते हैं कि इसी दौरान उन्हें उनके साथ होने वाले जातिगत भेदभाव का एहसास हुआ। दरअसल उनके भाई से साथ काम करने वाले लोगों ने उनकी जाति पूछी, लेकिन भाई ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया।

ऐसे पहुंचे JNU: जितेन्द्र बताते हैं कि गैस स्टेशन पर काम करने के दौरान ही उन्हें स्नातक करने का ख्याल आया और उन्होंने स्नातक में दाखिला ले लिया। स्नातक पूरी करने के बाद जितेन्द्र के एक दोस्त ने उन्हें बताया कि नागपुर का एक संस्थान मुफ्त में यूपीएससी की कोचिंग मुहैया कराता है। इस पर जितेन्द्र नागपुर पहुंच गए। वहां पहुंचकर उन्हें पता चला कि नागपुर का संस्थान अंबेडकरवाद और बौद्धवाद पर 10 माह का कोर्स करा रहा था। जितेन्द्र ने इसमें एडमिशन ले लिया। जहां से उन्हें समाज में फैले भेदभाव और छुआछूत के बारे में पूरी जानकारी हुई।

कोर्स पूरा करने के बाद जितेन्द्र सुना ने दिल्ली आकर जेएनयू से साल 2013 में एमए इतिहास में एडमिशन ले लिया। इसके बाद एमफिल और फिलहाल जितेन्द्र जेएनयू से पीएचडी कर रहे हैं। पीएचडी में उनकी थीसिस का विषय History of Identities & Exclusion; Ambedkar and Marginalised है। जितेन्द्र सुना BAPSA के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और अब वह संगठन की तरफ से छात्रसंघ के चुनावों में उतरे हैं।