सरकार के दो महकमों की अदालती लड़ाई से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट इस कदर आजिज आ गया कि उसने अपनी तल्ख टिप्पणी में कहा कि पब्लिक के पैसे से इस तरह की धींगामुश्ती गलत है। सरकार के दो महकमे आपस में कोर्ट में आकर लड़ रहे हैं। कोर्ट का कहना था कि दोनों को ऑफिस मेमो के मुताबिक प्रशासकीय स्तर पर मामले को सुलझाना चाहिए। जनता के पैसे से सालोंसाल इस तरह से केस लड़ने का कोई औचित्य नहीं है। ये न केवल अदालत के समय की बर्बादी है बल्कि जो लोग अपनी गाढ़ी कमाई से टैक्स भरते हैं उस पैसे की भी सरासर बर्बादी है।

जस्टिस संजीव कुमार ने ये बात होटल कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के मामले में कही। कॉरपोरेशन ने एस्टेट ऑफिस के उस नोटिस को चुनौती दी थी जिसमें टर्मिनेशन ऑफ लीज की बात कही गई थी। कॉरपोरेशन ने अपीलेट अथॉरिटी के उस फैसले को भी चुनौती दी थी जिसमें उसे जगह खाली करने के लिए कहा गया था। कोर्ट ने कहा कि होटल कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया एक पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग है। ये उड्डयन मंत्रालय के तहत काम करती है।

हाईकोर्ट ने कहा कि एस्टेट ऑफिस जम्मी कश्मीर केंद्र शसित प्रदेश के तहत काम करता है। इसका जिम्मा उप राज्यपाल के पास है। वो भारत सरकार के गृह मंत्रालय की निगरानी में काम करते हैं। कोर्ट का कहना था कि इस तरह के मामले उनके पास नहीं लाए जाने चाहिए। आखिर सालों साल की लड़ाई से क्या हासिल होता है। जबकि सरकार चाहे तो दोनों का निपटारा करा सकती है। इसमें समय के साथ साथ जनता के पैसे की बर्बादी भी रुकेगी। जो पैसा कानूनी लड़ाई में खर्च हो रहा है वो विकास कार्यों पर लगेगा।

अदालत ने याचिका को बंद करते हुए भारत सरकार को आदेश दिया कि वो एक कमेटी बनाए, जिसमें सिविल एविएशन मिनिस्ट्री के सेक्रेट्री के साथ केंद्रीय गृह सचिव और जम्मू कश्मीर प्रशासन के कानूनी महकमे के सचिव शामिल हों। कोर्ट का कहना था कि अगर कमेटी के फैसले से दोनों पक्षों को एतराज हो तो वो कैबिनेट सेक्रेट्री के समक्ष अपील कर सकते हैं। उनका फैसला अंतिम माना जाएगा। कोर्ट ने कमेटी गठित करने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया। जस्टिस संजीव कुमार ने कहा कि आदेश की पालना हो।