अजय पांडेय
हरियाणा के जींद उपचुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज कर इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से यह सीट छीन ली है। भाजपा के प्रत्याशी कृष्णा मिड्ढा को करीब 13 हजार मतों के अंतर से जीत मिली। दूसरे स्थान पर नवगठित जननायक जनता पार्टी रही। रणदीप सुरजेवाला को चुनाव मैदान में उतारने का तगड़ा सियासी दांव चलने के बावजूद कांग्रेस अपनी अंतर्कलह के कारण तीसरे स्थान पर रही। बांगड़ की धरती पर हुए इस उपचुनाव में तीन कद्दावर जाट उम्मीदवार हारे और पंजाबी उम्मीदवार को जीत मिली। माना जा रहा है कि जाट व गैर जाट का जातीय समीकरण यहां हावी रहा। हरियाणा राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार जीत दर्ज करने वाले भाजपा प्रत्याशी कृष्णा मिड्ढा को 50566 वोट मिले जबकि दूसरे स्थान पर रहे जननायक जनता पार्टी उम्मीदवार दिग्विजय चौटाला को 37631 मत मिले। तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के सुरजेवाला को 22740 मत मिले। ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इनेलो में हुए बंटवारे का असर इन चुनावों में साफ दिखा। पार्टी उम्मीदवार उम्मेद सिंह रेडु 3454 वोट लेकर पांचवें स्थान पर पहुंचे और उनकी जमानत तक जब्त हो गई। भाजपा का सांसद होने के बावजूद अलग लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में अपने उम्मीदवार उतारने वाले राजकुमार सैनी के प्रत्याशी को 13582 वोट मिले। इस प्रकार भाजपा प्रत्याशी मिड्ढा ने 12935 मतों से जजपा प्रत्याशी दिग्विजय को मात दे दी। यह सीट इनेलो के टिकट पर चुनाव जीते हरिचंद मिड्ढा के निधन से खाली हुई थी।
भाजपा ने उनके ही बेटे को अपना उम्मीदवार बनाया था। इस चुनाव परिणाम को लेकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ने कहा कि यदि जीत की जिम्मेदारी सबकी है तो हार की जिम्मेदारी भी सामूहिक है। उन्होंने प्रदेश की भाजपा सरकार पर धन बल और सत्ता बल के भारी दुरुपयोग का आरोप लगाया। हालांकि पराजय झेलने वाले पार्टी प्रत्याशी सुरजेवाला ने विजयी उम्मीदवार मिड्ढा को बधाई दी और कहा कि वे जींद की जनता की सेवा में लगातार लगे रहेंगे। उधर जजपा ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर कहा कि बहुत कम समय में दूसरे नंबर पर आकर उसने शानदार चुनावी लड़ाई लड़ी और लोगों का दिल जीतने का काम किया। वह भाजपा का विकल्प बनकर उभरी है।
सूबे के कद्दावर नेताओं की अंतर्कलह इस चुनाव पर भारी पड़ी। देखने के लिए पार्टी भले एकजुट दिखी लेकिन भितरघात खूब हुए। बताते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा इस चुनाव में उम्मीदवार तय करने के लिए नियुक्त पर्यवेक्षक केसी वेणुगोपाल को सभी नेताओं ने सुरजेवाला को चुनाव लड़ाने का सुझाव दिया। सुरजेवाला पार्टी हाईकमान के आदेश पर चुनाव मैदान में तो कूद गए लेकिन मतदाताओं को इस सवाल का जवाब नहीं दे पाए कि जब वे पड़ोस के कैथल विधानसभा क्षेत्र से पहले ही विधायक हैं तो दोबारा विधायक बनने के लिए उम्मीदवार क्यों बने और यदि जीत गए तो कहां की सीट छोड़ेंगे। कहा यह भी जा रहा है कि प्रदेश में जाट आरक्षण आंदोलन के बाद जाट और गैर जाट की शुरू हुई सियासत का असर साफ दिख रहा है और इस नए समीकरण में भाजपा फायदे में है।