Jharkhand Chunav: झारखंड विधानसभा चुनाव को लकेर बीजेपी ने रविवार को अपना संकल्प पत्र जारी किया। पार्टी के दिग्गज नेता और गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में लॉन्च हुए उस घोषणापत्र में यूनिफॉर्म सिविल कोड का भी जिक्र है। पार्टी ने वादा किया है कि सरकार बनने पर राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया जाएगा। हालांकि यह स्पष्ट कहा गया है कि आदिवासियों को इस यूसीसी से बाहर रखा जाएगा।

रविवार को जब झारखंड में बीजेपी के घोषणापत्र में यूसीसी की बात उठी, तो केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक बार फिर कहा कि पार्टी यूनिफॉर्म सिविल कोड में आदिवासियों को शामिल नहीं करेगी। बीजेपी ने पारिवारिक कानूनों में एकरूपता की अपनी मांग को इस बात पर जोर देने के लिए परिभाषित किया है कि आदिवासी संस्कृतियों को अलग ही रखने की जरूरत है।

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लगातार UCC की मांग उठाती रही है BJP

पार्टी समान नागरिक संहिता की बात, जनसंघ के काल से ही करती रही है। बीजेपी लगातार धर्मनिरपेक्ष राज्य में मुस्लिम पर्सनल लॉ के अस्तित्व पर सवाल उठाती है लेकिन पिछले एक साल में, इसके साथ यह आश्वासन भी दिया गया है कि आदिवासियों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।

इसकी वजह यह है कि बीजेपी को अभी भी अपर कास्ट पार्टी के तौर पर देखा जाता रहा है, और पिछले कुछ साल में तेजी से दलित और आदिवासी भी उसके वोट बैंक में शामिल हुए हुए हैं लेकिन यूसीसी की बात से ये वोट बैंक नाराज होकर विधानसभा चुनाव में छिटक सकता है, जिसके चलते बीजेपी बार-बार यूसीसी में आदिवासियों को न शामिल करने का संदेश दे रही है।

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संसद की समिति ने भी कही थी यह बात

जुलाई 2023 में दिवंगत भाजपा नेता सुशील मोदी, उस समय कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष थे। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों की जनजातियों को समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। उन्होंने यह बात भारत में समान नागरिक संहिता के सवाल पर विधि आयोग द्वारा की जा रही चर्चा के संदर्भ में कही थी।

इसी महीने केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने अरुणाचल प्रदेश पर मीडिया से बात करते हुए कहा था कि हमें अरुणाचल और आदिवासी इलाकों में समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर चर्चा करने की ज़रूरत नहीं है। अगर आपने संविधान और नियमों का अध्ययन किया है या आपने प्रावधान देखे हैं, तो आपको पता होगा कि आदिवासी अनुसूचित क्षेत्रों में समान नागरिक संहिता लागू नहीं है।

अरुणाचल में भी यही था बीजेपी का रुख

उन्होंने कहा था कि जो भी कानून बनाए जा रहे हैं, वे देश की बेहतरी के लिए हैं। ये कानून संविधान के अनुसार बनाए गए हैं। संविधान में अगर अरुणाचल प्रदेश आदिवासी राज्य है, तो यह लागू नहीं होता क्योंकि संविधान में ऐसी कोई बात नहीं कही गई है। इसलिए, इस पर चर्चा करने के लिए कुछ भी नहीं है।

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पिछले साल जुलाई में बीजेपी के मंत्री एसपी बघेल ने कहा था कि सरकार आदिवासियों की पारंपरिक प्रथाओं में हस्तक्षेप नहीं करेगी, जबकि उन्होंने कहा कि तुष्टिकरण की राजनीति किसी भी कीमत पर यूसीसी को लागू होने से नहीं रोक पाएगी। उस दौरान मोदी सरकार के मंत्री ने कहा था कि संविधान की छठवीं अनुसूची के अनुसार, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के कुछ जनजातीय क्षेत्रों को विशेष प्रावधान प्रदान करती है, इन क्षेत्रों में तब तक कुछ लागू नहीं होगा, जब तक खुद उनकी राज्य सरकारें अपनी विधानसभा में केंद्र के आदेश का अनुमोदन नहीं करती है।

बीजेपी पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को निशाना बनाने के आरोप

बता दें कि उत्तराखंड यूसीसी मसौदे में भी आदिवासियों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि एकरूपता का मतलब आदिवासी प्रथाओं के साथ छेड़छाड़ करना नहीं है। बीजेपी के मेघालय उपाध्यक्ष बर्नार्ड मारक ने भी पिछले वर्ष कहा था कि राज्य के अनुसूचित क्षेत्र यूसीसी के दायरे से बाहर रहेंगे। यूसीसी को लेकर लगातार आदिवासियों को छूट देने की बात करने वाले बीजेपी को पर यह आरोप भी लगाए जा रहे हैं कि वह यूसीसी के जरिए केवल मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को निशाना बना रही है।