आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण नीति की समीक्षा करने के बारे में दिए गए सुझाव से राजनीतिक विवाद छिड़ गया है। भाजपा ने सुझाव का विरोध किया है और अपनी वैचारिक प्रेरणास्रोत संस्था के प्रमुख की इस टिप्पणी से स्वयं को अलग कर लिया है।

भाजपा ने लगभग वही रुख अपनाया है जो बिहार की पार्टियों का रहा है कि भारत में आरक्षण एक तय हो चुका मुद्दा है। राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने ट्वीट कर मोदी सरकार को आरक्षण समाप्त करने की चुनौती दी और कहा ‘अगर आपने अपनी माई का दूध पिया है तो आप इसे खत्म कर दीजिए, सबको अपनी ताकत का पता चल जाएगा।’

कांगे्रस की ओर से भागवत के सुझाव पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने एक ऐसा बयान दिया है जिससे पार्टी में त्योरियां चढ़ सकती है। तिवारी ने 21वीं शताब्दी में आरक्षण की प्रासंगिकता पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि यदि इसकी वाकई जरूरत है तो इसे आर्थिक आधार पर दिया जाना चाहिए न कि जाति के आधार पर।

भाजपा ने कहा कि वह अनुसूचित जाति, जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के आरक्षण अधिकार का 100 प्रतिशत सम्मान करती है क्योंकि यह उनके सामाजिक और आर्थिक विकास व अधिकार संपन्न बनाने के लिए अनिवार्य है।

पार्टी के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने दिल्ली में संवाददाताओं से कहा, जनसंघ के जमाने से ही भाजपा की यह दृढ़ प्रतिबद्धता रही है कि एससी, एसटी, पिछड़ी और अत्यंत पिछड़ी जातियों के सामजिक और आर्थिक विकास व अधिकार संपन्न बनाने के लिए आरक्षण अनिवार्य है।

इन समूहों को दिए जा रहे आरक्षण पर पुनर्विचार करने के पक्ष में भाजपा नहीं है। केंद्रीय संचार मंत्री प्रसाद ने कहा कि इस बात पर विचार-विमर्श स्वागत योग्य है कि ऐसे गरीबों और बाकी रह गई पिछडी जातियों के लिए आगे और क्या किया जा सकता है जो विकास का लाभ नहीं ले पाई हैं। साथ ही उन्होंने यह भी जोर दिया कि भाजपा मौजूदा लाभों को जारी रखने की भरपूर समर्थक है।