जीवन के विशाल अनुभवों के बिना महान पुस्तकों की रचना नहीं होती और यह बात केरल के एक जेसीबी चालक पर भी लागू होती है। जिसने जीवन की कड़वी हकीकत को पीछे छोड़कर एक प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार अपने नाम कर लिया।
हाल ही में जब केरल साहित्य अकादमी ने अपने प्रतिष्ठित वार्षिक पुरस्कार के विजेता की घोषणा की, तो 28 वर्षीय अखिल के संघर्ष के बीच आगे बढ़ने की कहानी पर भी रोशनी पड़ी। अखिल ने अपनी मेहनत से खुद को एक लेखक के रूप में तराशा। रचनात्मकता की यह उल्लेखनीय कहानी दक्षिणी राज्य केरल से आई है जिसकी सबसे अधिक साक्षरता दर को लेकर तारीफ की जाती है। अखिल को केरल साहित्य अकादमी का 2022 का प्रतिष्ठित ‘गीता हिरण्यन एंडोमेंट’ पुरस्कार दिया गया है।
12वीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ चुके अखिल को लघुकथाओं के संग्रह ‘नीलाचदयन’ से यह पहचान मिली है। उनकी यह पुस्तक 2020 में प्रकाशित हुई थी। अखिल ने कहा कि मुझे जो पहचान मिली है, उससे मैं खुशी महसूस करता हूं। यह अप्रत्याशित था। उन्होंने अपनी पहली साहित्यिक कृति के प्रकाशन को लेकर अपने संघर्ष की कहानी बताई। वैसे तो अखिल जेसीबी चालक के रूप में काम करके थक जाते हैं, लेकिन उसके बाद भी वे अपने विचारों को रात में लेखनीबद्ध करते हैं।
उन्हें परिवार का सहारा बनने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। लेकिन साहित्य के प्रति उनका अनुराग बना रहा। उनके परिवार में माता-पिता, भाई और दादी हैं। लेकिन एक दिहाड़ी मजदूर को यह प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार मिलने की उपलब्धि के पीछे एक कटु सच्चाई छिपी है जो उभरते लेखकों के सामने आती है और वह है प्रकाशन का मौका हासिल करना।
उन्होंने कहा कि चार वर्षों तक मैंने अपने लेखन कार्य के प्रकाशन के लिए कई प्रकाशकों एवं पत्रिकाओं से संपर्क किया था। उनमें से कुछ प्रकाशकों को मेरी कहानियां पसंद आर्इं, लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि उनके लिए बाजार ढूंढ़ना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि मैं इस क्षेत्र में जाना-पहचाना नाम नहीं था। ‘नीलाचदयन’ तब प्रकाशित हुआ है जब अखिल ने फेसबुक पर एक विज्ञापन देखा। उसमें कहा गया था कि यदि लेखक 20000 रुपए दे तो वह उसकी पुस्तक का प्रकाशन करेगा।
अखिल ने बताया कि मैंने करीब 10 हजार रुपए बचाकर रखे थे। दिहाड़ी मजदूरी करने वाली मेरी मां ने अतिरिक्त 10 हजार रुपए जुटाने में मेरी मदद की और हमने पहली पुस्तक के प्रकाशन के लिए पैसे दिए। यह केवल आनलाइन बिक्री के लिए थी। चूंकि यह पुस्तक दुकानों में नहीं थी इसलिए उसने कोई ऐसा प्रभाव नहीं पैदा किया।
अखिल ने बताया कि इस पुस्तक को तब पहचान मिली जब बिपिन चंद्रन ने फेसबुक पर उनके बारे में सकारात्मक बातें लिखीं। अखिल ने कहा कि बाद में लोग पुस्तक की दुकानों पर उसके बारे में पूछने लगे और प्रकाशन शुरू हो गया। अब तक आठ संस्करण प्रकाशित हुए हैं।