Pahalgam Terror Attack News: पहलगाम में पिछले महीने आतंकियों ने 26 निर्दोष लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके बाद भारत को ऑपरेशन सिंदूर के लिए उकसाया गया था। इसका देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ एक दिलचस्प संबंध है। मई 1964 में अपने निधन से महज 11 महीने पहले नेहरू ने जम्मू -कश्मीर की इस खूबसूरत जगह पर अपनी बेटी इंदिरा गांधी के साथ 10 दिन की छुट्टियां बिताई थीं। यह नेहरू की आखिरी छुट्टियां थीं।

पहलगाम उस वक्त टूरिस्टों के लिए एक पसंदीदा जगहों में से एक थी। आजादी से पहले ही सड़क के रास्ते यहां पहुंचा जा सकता था, इसलिए यहां यूरोपीय और भारतीय दोनों ही काफी प्रभावित हुए। 1943 में अपनी किताब कश्मीर: द प्लेग्राउंड ऑफ एशिया में, सच्चिदानंद सिन्हा ने पहलगाम की तारीफ करते हुए लिखा कि यह अपने मनमोहक दृश्य के लिए काफी फेमस है।

सिन्हा ने चीड़ के जंगलो से होकर गुजरने वाली दो मील लंबी बैसरन घाटी का भी जिक्र किया। जून 1963 में नेहरू का त्यागपत्र एक उथल-पुथल भरे समय में आया, क्योंकि प्रधानमंत्री बढ़ती राजनीतिक चुनौतियों, अपने बिगड़ते स्वास्थ्य और चीन के साथ 1962 के युद्ध के बाद की स्थिति से जूझ रहे थे। नेहरू 18 जून 1963 को श्रीनगर पहुंचे। उनके साथ इंदिरा और उनके दो पोते राजीव गांधी और संजय गांधी थे।

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परिवार श्रीनगर के चश्मे शाही गेस्ट हाउस में रुका

परिवार श्रीनगर के चश्मे शाही गेस्ट हाउस में रुका। जिस दिन वे श्रीनगर पहुंचे, उस दिन सुबह नेहरू ने गेस्ट हाउस में राज्य के मंत्रियों, राज्य विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष व विधान परिषद के अध्यक्ष के साथ चाय पर बैठक की। श्रीनगर में नेहरू ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि चीन-पाकिस्तान गठबंधन कश्मीर में पाकिस्तान के लिए मददगार नहीं होगा।

नेहरू पहलगाम गए

श्रीनगर से नेहरू लगभग 90 किलोमीटर दूर पहलगाम गए। वहां प्रधानमंत्री ज्यादातर राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहे। हालांकि, 21 जून को नेहरू ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री नीलम संजीव रेड्डी को पत्र लिखकर भरोसा दिया कि उस समय जो अफवाहें फैल रही थीं कि उन्हें (रेड्डी को) उनके पद से हटा दिया जाएगा, वे निराधार थीं। नेहरू ने रेड्डी को लिखा कि उन्हें इन अफवाहों के लिए खेद है।

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नेहरू ने पहलगाम में ओडिशा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के साथ भी मीटिंग की। जाहिर तौर पर मंत्रिमंडल में फेरबदल की योजना पर चर्चा करने के लिए उन्होंने मीटिंग की थी। 26 जून को नेहरू ने पहलगाम से करीब 12 किलोमीटर दूर अरु घाटी का दौरा किया। उन्होंने कोलाहोई ग्लेशियर का भी दौरा किया। नेहरू 28 जून को दिल्ली लौट आए।

नेहरू की बढ़ गई सियासी मुश्किलें

श्रीनगर में सदर-ए-रियासत डॉ करण सिंह और जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद ने उन्हें विदा किया। दिल्ली में प्रधानमंत्री का स्वागत एयरपोर्ट पर वित्त मंत्री मोरारजी देसाई, गृह मंत्री लाल बहादुर शास्त्री, एसके पाटिल, हुमायूं कबीर और कैबिनेट सचिव एसएस खेड़ा सहित गणमान्य लोगों ने किया। जवाहरलाल नेहरू जम्मू-कश्मीर में थे तब भी उनकी सियासी मुश्किलें बढ़ती ही जा रही थीं। उनके लौटने के बाद हालात और भी बदतर हो गए।

26 जून को जब वे जम्मू-कश्मीर में थे, तब उनके सिंचाई और बिजली मंत्री हाफिज मोहम्मद इब्राहिम और खान मंत्री केडी मालवीय ने इस्तीफा दे दिया था। दिल्ली के पालम एयरपोर्ट पर उतरने पर पत्रकारों ने नेहरू से इस्तीफों और उनके मंत्रिमंडल पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में पूछा। नेहरू ने जवाब देते हुए कहा, ‘इस्तीफा देने वाले मंत्रियों के विभागों के मैनेजमेंट के लिए कदम उठाए गए हैं। फिलहाल कोई भी मंत्रिमंडल के विस्तार की जल्दी में नहीं है।’

नेहरू का बिगड़ गया स्वास्थ्य

जनवरी-फरवरी 1962 में फिर से चुनाव होते हैं। इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा की 494 सीटों में से 361 सीटों पर जीत दर्ज की। नेहरू ने तीसरा कार्यकाल हासिल किया। हालांकि, नेहरू के लिए भारत-चीन युद्ध एक बहुत ही बड़ा झटका था। अगस्त 1963 में उनकी सरकार को पहली बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। इसे जेबी कृपलानी ने पेश किया था। नेहरू का स्वास्थ्य लगातार खराब होता जा रहा था और जनवरी 1964 में भुवनेश्वर में AICC अधिवेशन के दौरान प्रधानमंत्री गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। 27 मई 1964 को उनका निधन हो गया। भारतीय सेना के मेजर बोले – हमारे जवानों का जोश हाई

(पढ़ें श्यामलाल यादव की रिपोर्ट)