एक तो चैनलों के ‘सर्वेक्षणों’ ने मारा, दूसरे चंद्रयान तृतीय की ‘चंद्रविजय’ ने मारा! ओह! वे चंद्रविजय पर ‘इसरो’ वैज्ञानिकों के प्रसन्न क्षण। फिर आम जनता के लिए ढोल-नगाड़े, पटाखे, नाच-गाने और ‘भारतमाता की जय’ के नारे वाले मस्त क्षण! सस्ते में अपनी तकनीक से बने ‘विक्रम लैंडर’ का चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलता पूर्वक उतरना, इसरो द्वारा उतरने की पल-पल की खबर देना और ब्रिक्स सम्मेलन के बीच से वक्त निकाल कर प्रधानमंत्री का अपने हाथ में तिरंगा लेकर सब वैज्ञानकों और देशवासियों का संबोधन।

चैनलों के रिपोर्टर-एंकर चंद्रयान से पहले ही चंद्रमा पर उतर चुके थे!

चैनलों ने जैसी ‘कवरेज’ चंद्रयान तृतीय की ‘चंद्रविजय’ की दी, वह अभूतपूर्व थी। कई चैनलों के कई रिपोर्टर-एंकर चंद्रयान से पहले ही चंद्रमा पर उतर चुके थे। कई अंतरिक्ष विशेषज्ञ भी उतर चुके थे। वे चंद्रयान की उड़ान के रास्ते को, उसकी गति को समझाते और वह किस तरह से अपनी गति को धीमी करता हुआ उतरेगा, यह बताते रहे और अंतरिक्ष संबंधी हमारा ज्ञान बढ़ाते रहे! आखिरी दौर में ‘इसरो मुख्यालय’ ने चंद्रयान के उतरने की प्रक्रिया को हिंदी कमेंट्री के साथ सीधे दिखाना-बताना शुरू कर दिया और जब उसके उतरने का आखिरी पल आया और वह तयशुदा जगह पर तयशुदा वक्त पर उतर गया, तो सब खुशी से उछल पड़े और ताली बजाने लगे। सच! यह एक महान ऐतिहासिक क्षण था…।

एक तरफ पीएम के नेतृत्व की सराहना, दूसरी तरफ नेहरू को श्रेय

चैनलों ने इस ‘चंद्रविजय’ पर शहर-शहर जश्न मनाते, नाचते-गाते लोगों को दिखाया। उसके बाद चैनलों में ‘देशप्रेम’ और ‘राष्ट्रप्रेम’ इतना बरसा कि संभाले न संभला! इसके आगे श्रेय की लड़ाइयां। एक ओर प्रधानमंत्री के नेतृत्व और इसरो के वैज्ञानिकों को बधाइयां थीं, तो दूसरी ओर इसरो के वैज्ञानिकों को बधाइयां थीं या ‘इसरो’ के लिए नेहरू को श्रेय देना था।

श्रेय को लेकर बहुत ही उत्तेजित ‘फाइटें’ दो हिंदी चैनलों के दो ‘पब्लिक डिबेट शो’ में दिखीं। घेरे में खड़ी आम जनता यहां भी विभक्त नजर आई। कई वक्ता अपने-अपने पक्ष को श्रेय देने के लिए इतना जोर से चिल्लाते कि उनका गला ही खराब हो जाता। कई बार वे एक-दूसरे के गले-गले तक आ जाते। एंकरों को उनको अलग करना और उनसे पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता।

सत्ता पक्ष के प्रवक्ता इसका श्रेय प्रधानमंत्री और वैज्ञानिकों को देते, तो विपक्ष के प्रवक्ता पहले सत्ता की विफलता के दस बिंदु गिनाने लगते। एंकर कहते कि भैये, विषय पर रहो, तो कह देते कि मुझे बोलने दो और फिर शुरू हो जाते कि मणिुपर जल रहा है, महंगाई बढ़ रही है, बेरोजगारी बढ़ रही है, आपको चंद्रयान की पड़ी है। इसकी भूमिका भी नेहरू ने बनाई थी, आपने क्या किया? जवाब आता, आपने पैसा कम किया, हमने बढ़ाया। बिना ‘सपोर्ट’ के कैसे जाता?

कई अंग्रेजी चैनलों पर अंतरिक्ष विशेषज्ञ बताते रहे कि अब भारत ‘स्पेस के सुपर पावर क्लब’ में शामिल हो चुका है। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। अब ‘स्पेस डेटा’ का कारोबार बढ़ेगा। ‘स्पेस इकोनामी’ बढ़ेगी। वहां बेहद दुर्लभ खनिज संभव हैं। फिर अलिखित ‘स्पेस न्याय’ के अनुसार जिसके कदम जहां पहले पड़े, वह इलाका उसका। यानी अब हम चंद्रमा पर कालोनी बना सकते हैं। हम चंद्रमा पर घर बना सकते हैं। उसे अपना ‘उपनिवेश’ बना सकते हैं…।

एक ओर यह अनूठी चंद्रविजय और उसके अगले रोज एक चैनल पर देश का मिजाज, यानी ‘सी-वोटर’ का लोकसभा की 543 सीटों से तीस हजार के करीब मतदाताओं के बीच ‘देश का मिजाज’ बताने वाला ‘सर्वेक्षण’ और चैनल की फिर वही लाइन कि ‘मोदी वापस आ रहे हैं’! सर्वेक्षण कहता कि अगर आज चुनाव हों तो ‘एनडीए’ को ‘306’ और ‘आइएनडीआइए’ को ‘196’ सीटें मिल सकती हैं।

इसमें भी, अकेले भाजपा को 287 और कांग्रेस को 74 सीटें मिल सकती हैं। और यह भी बताया कि किस तरह ‘भाजपा’ की इस संभावित जीत का श्रेय चौवालीस फीसद लोगों के बीच मोदी की लोकप्रियता को, बाईस फीसद उनके विकास कार्याें को, चौदह फीसद हिंदुत्व के विचार को और आठ फीसद भाजपा सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को जाता है।

विशेषज्ञ मानते कि ‘भारत जोड़ो’ के बाद राहुल की लोकप्रियता बढ़ी है, लेकिन फिर भी ‘आइएनडीआइए’ गठबंधन को इकतालीस फीसद वोट मिल सकते हैं, लेकिन एनडीए को चौवालीस फीसद वोट मिल सकते हैं। यानी अगर आज चुनाव हों तो भाजपा फिर आ रही है… इससे पहले एक चैनल पर ईटीजी का सर्वेक्षण भी ऐसा ही कुछ बता चुका था कि भाजपा फिर आ रही है। तो फिर वही ‘टकसाली वाक्य’ दुहरे कि भाजपा नहीं आने वाली… चैनल-चर्चाओं में इन दिनों पक्ष-विपक्ष के प्रवक्ता ऐसे ही ‘दिमागी खेल’ खेलते हैं, ताकि उनके अपने पक्ष में वातावरण बना रहे।

मगर सर्वेक्षण ठीक इसका उलटा बताते हैं! और अगर किसी दिन ‘चंद्रयान’ के बाद के सर्वेक्षण ने प्रधानमंत्री की लोकप्रियता को और बढ़ते दिखाया, तो विपक्षी क्या कहेंगे? वे फिर कहेंगे कि सर्वेक्षण गलत हैं और वे हार रहे हैं। ऐसे ‘दिमागी खेल’ चुनाव तक चलते रहने हैं।

फिर एक दिन करगिल में ‘नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान’ खुली दिखी। ‘आरएसएस भाजपा देश में नफरत फैला रहे हैं…’ जैसे बोल सुनाई पड़े!