एटीएम उद्योग संगठन ‘कन्फेडरेशन आॅफ एटीएम इंडस्ट्रीज’ (कैटमी) के अनुसार एटीएम से किए जाने वाले लेनदेन के शुल्कों में बढ़ोतरी और हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर को अद्यतन करने वाले नए नियमों से बढ़ने वाली लागत के कारण लगभग एक लाख से ज्यादा एटीएम जल्द ही बंद हो सकते हैं। इसके अलावा पंद्रह हजार वाइट-लेवल एटीम पर भी यह खतरा है। यह संख्या देशभर में काम कर रहे कुल दो लाख अड़तीस हजार एटीएम की आधी से थोड़ी ही कम बैठती है। गौरतलब है कि नोटबंदी के बाद नए नोटों की बड़ी संख्या में छपाई की गई थी, जिनकी लंबाई, चौड़ाई और मोटाई मौजूदा एटीएम के अनुकूल नहीं होने की बात कही गई। ऐसे में एटीएम को नए नोटों के आकार के अनुकूल बनाने के लिए उनके हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में बदलाव लाने की जरूरत है, जिसकी लागत बहुत ज्यादा है।
एटीएम से किए जाने वाले हर लेनदेन पर पंद्रह रुपए शुल्क लगाने का भी प्रस्ताव है। कैटमी पिछले पांच साल से इस शुल्क में बढ़ोतरी करने की मांग कर रहा है। एक अनुमान के मुताबिक नए नियमन से एटीएम उद्योग पर करीब पैंतीस अरब रुपए का बोझ बढ़ेगा। सबसे ज्यादा नुकसान वाइट लेबल एटीएम सेवा प्रदाताओं को होने की संभावना है, क्योंकि एटीएम अंतर-शुल्क ही उनकी आय का मुख्य जरिया है। ऐसे हालात में इस तरह के एटीएम का बंद होना लगभग तय है।
हालांकि भारतीय बैंक संघ (आइबीए) ने भारतीय रिजर्व बैंक से नियमों में ढील देने का आग्रह किया है, लेकिन रिजर्व बैंक फिलहाल राहत देने के मूड में नहीं है। एटीएम लेनदेन पर शुल्क लगाने और एटीएम के लिए विविध अनुपालनाओं को आवश्यक बनाने का काम रिजर्व बैंक करता है। कैटमी के अनुसार एटीएम सेवा प्रदाताओं के पास इतने संसाधन नहीं हैं कि वे अतिरिक्त खर्च वहन कर सकें। बहरहाल, बदले परिवेश में देशभर में कई बैंकों और किराए पर एटीएम मशीन उपलब्ध कराने वाली कंपनियों ने एटीएम बंद करने शुरू कर दिए हैं। हालांकि इस बीच देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) का कहना है कि बैंकों को नई नियामकीय जरूरतों का पालन करना होगा। बैंकों के पास दो तरह के एटीएम हैं, एक तो उनके खुद के हैं, जिन्हें अद्यतन किया जाएगा और दूसरे, किराए पर लिए गए एटीएम हैं, जिन्हें अद्यतन कराने के प्रयास किए जाएंगे। इधर, पंजाब नेशनल बैंक की भी मार्च 2019 तक एटीएम घटाने की कोई योजना नहीं है। देश के इन दो बड़े बैंकों ने इस मामले में जो सकारात्मक रुख दिखाया है उससे स्थिति के ज्यादा खराब होने की आशंका नहीं है।
लेकिन बड़ी संख्या में एटीएम बंद होने का असर रोजगार पर पड़ेगा। इससे हजारों लोगों का रोजगार जुड़ा है। चूंकि एटीएम का प्रसार देश के दूरदराज इलाकों में है, इसलिए लगभग आधे एटीएम बंद होने से सरकार के शत-प्रतिशत वित्तीय समावेशन की योजना को झटका लग सकता है। एटीएम के जरिए ही ग्रामीण वित्तीय एवं गैर-वित्तीय लेनदेन करते हैं। आज कस्बाई और ग्रामीण इलाकों में लोग एटीएम से लेनदेन करने के आदी हो चुके हैं। इसलिए इनके बंद होने से नोटबंदी जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। इस संभावित संकट से प्रधानमंत्री जनधन योजना भी प्रभावित हो सकती है, क्योंकि ग्रामीणों को एटीएम से सबसिडी की राशि निकालने में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। शहरों में ज्यादातर समय दस फीसद एटीएम विविध कारणों से बंद पड़े रहते हैं। ऐसे में शहर में एटीएम बंद होने से लोगों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।
आॅटोमेटेड टेलर मशीन (एटीएम), जिसे आॅटोमेटेड बैकिंग मशीन (एबीएम), कैश मशीन, कैश पॉइंट, कैश लाइन आदि भी कहते हैं, एक ऐसी डिवाइस है, जिसकी मदद से नकदी जमा करने और निकालने के साथ-साथ बहुत सारे गैर-वित्तीय लेनदेन भी किए जाते हैं। अमेरिका में प्रचलित वाइट लेवल एटीएम का इस्तेमाल अब भारत में हो रहा है। इसमें एटीएम का मालिकाना हक बैंक की बजाय तीसरे पक्ष के पास होता है। देश के हर भाग में बैंकिंग सुविधा नहीं होने के कारण भारत में मोबाइल एटीएम वैन का भी उपयोग किया जाता है, ताकि जरूरतमंद एटीएम की सुविधा का लाभ उठा सकें।
भारत में हांगकांग एंड शंघाई बैंकिंग कॉरपोरेशन (एचएसबीसी) ने 1987 में पहला एटीएम कोलकाता में लगाया था। सरकारी क्षेत्र के बैंकों में इंडियन बैंक ने पहला एटीएम लगाया। भारतीय स्टेट बैंक ने अपना पहला एटीएम 1993 में जमशेदपुर में लगाया था। वर्ष 1997 में भारतीय बैंक संघ ने मुंबई में ‘स्वधन’ नाम से एटीएम नेटवर्क शुरू किया, जिसमें किसी भी सदस्य बैंक के एटीएम से नकदी निकाली जा सकती थी, लेकिन यह नेटवर्क केवल आॅफलाइन सेवा प्रदान करता था। लिहाजा, यह लोकप्रिय नहीं हो सका। उस वक्त विदेशी बैंक के नेटवर्क से जुड़े एटीएम द्वारा ग्राहकों को दी जा रही सुविधाएं बेहद लोकप्रिय थीं। एटीएम के जरिए ग्राहक रकम जमा करने, पैसा हस्तांतरण करने, बिलों का भुगतान करने, खाते की पूछताछ, मिनी स्टेटमेंट, मोबाइल रिचार्ज, संबंधित बैंकों द्वारा जारी क्रेडिट कार्ड के बिल का भुगतान आदि कर सकते हैं। ग्राहक को इससे और फायदे भी हैं। मसलन, 365 दिन और 24 घंटे बैंकिंग सुविधा मिलने की गारंटी, समय एवं पैसों की बचत, देश-विदेश में नकदी का विकल्प, खाते का प्रबंधन, सामाजिक अपराधों को कम करने में सहायक, संबंधित तकनीक के इस्तेमाल के प्रति रुचि बढ़ाने और उसे इस्तेमाल में लाने के लिए प्रेरित करने में मददगार, वित्तीय समावेशन को लागू कराने में सहायक, वित्तीय अनुशासन विकसित करने में मददगार आदि।
एटीएम का आविष्कार मूल रूप से ग्राहकों को बैंक परिसर के बाहर बैंकिंग सुविधा देने के मकसद से किया गया था, क्योंकि बैंक शाखा में लेनदेन करना बैंकों के लिए घाटे का सौदा था। कुछ साल पहले ग्राहक आमतौर पर रकम निकालने व ट्रांसफर करने, खाते संबंधी पूछताछ, स्टेटमेंट आदि के लिए बैंक जाते थे। ग्राहकों द्वारा बैंक परिसर में लेनदेन करने के कारण बैंक कर्मचारी कार्यालय अवधि में सिर्फ रोजाना के कार्य कर पाते थे, जिसके कारण बैंक के दूसरे महत्त्वपूर्ण कार्यों, जैसे बीमा व म्युचुअल फंड, शुल्क आधारित अन्य सेवा, कर्ज देने और उसकी वसूली आदि सुचारु रूप से नहीं हो पाते थे। एटीएम के आगाज को इन समस्याओं के समाधान के रूप में देखा गया।
लेकिन आज हकीकत यह है कि एटीएम बैंकों के लिए सफेद हाथी बनते जा रहे हैं। इनके रख-रखाव पर हर महीने औसतन पिचहत्तर हजार से एक लाख रुपए तक का खर्च आता है। इस खर्च की भरपाई तभी हो सकती है, जब एक एटीएम से रोजाना दो सौ लेनदेन हों, जबकि अभी प्रतिदिन औसतन एक सौ पच्चीस से एक सौ तीस लेनदेन ही हो रहे हैं। इससे बैंकों को नुकसान हो रहा है। ऐसे में एटीएम पर लगाए जाने वाले प्रस्तावित शुल्क का बोझ और हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर में बदलाव लाने की लागत का बोझ बैंकों के लिए वहन करना आसान नहीं है। बैंकों को पहले से ही फंसे कर्ज के लिए प्रावधान करने और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों जैसे बासेल-3 के मानकों को लागू करने के लिए भारी-भरकम पूंजी की दरकार है। ऐसे में बैंकों के लिए मौजूदा स्थिति में किसी और अतिरिक्त खर्च को वहन करना मुश्किल भरा काम होगा।
आज एटीएम जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। लोगों को इसके उपयोग की आदत पड़ चुकी है। ऐसे में एटीएम के बंद होने से बैंक शाखाओं में ग्राहकों की भीड़ फिर से बढ़ सकती है, और बैंकों के दूसरे काम ठप पड़ सकते हैं। इससे बैंकों केमुनाफे पर भी असर पड़ेगा। लिहाजा, बैंक को एटीएम की प्रस्तावित लागत के बोझ का विश्लेषण दूसरी मदों में होने वाले नुकसान के आलोक में करना चाहिए। रिजर्व बैंक को भी किसी नियम या कानून को अमलीजामा पहनाने से पहले उससे जुड़े तमाम पहलुओं पर गौर करना होगा, ताकि जनता को नई मुश्किलों का सामना न करना पड़े।