जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों में इजाफा देखने को मिला है। बड़ी बात यह है कि जो जम्मू कई सालों से शांत दिखाई दे रहा था, वहां पर अब तनाव ज्यादा बढ़ा है। पिछले कुछ समय में जवान भी शहीद हुए हैं और सुरक्षा में चूक भी सामने आई है। अब इन्हीं बढ़े हुए हमलों की असल कहानी समझने के लिए इंडियन एक्सप्रेस ने कई सेना के ही एक्सपर्ट्स से बात की है।
चीन पर फोकस, जम्मू से हटा ध्यान
असल में 2019 में अनुच्छेद 370 को खत्म किया गया था, उसके बाद से ही कश्मीर में तो सुरक्षा ज्यादा बढ़ाई गई, लेकिन जम्मू क्षेत्र में तैनानी उतनी ही कम होती चली गई। अब उस समय तक आंकड़े इस कदम की तस्दीक करते थे, हमले कम हो रहे थे, शांति बनी हुई थी, ऐसे में सारा फोकस चीन को कंट्रोल में लगा दिया गया। इसी वजह से LAC पर तो सेना की तैनाती ज्यादा दिखी, लेकिन जम्मू से उतनी ही कम होती चली गई।
यह गलती भी सेना भी मान रही
इस बारे में एक टॉप सैन्य अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस ने कहा कि यह एक चूक ही थी कि जम्मू में आर्मी कम करने के बाद उस वैक्यूम को CRPF या BSF से भरने की कोशिश नहीं की गई। शायद उसका खामियाजा आज हम भुगत रहे हैं, कई सालों की शांति को देखते हुए हमने तो सेना कम कर दी, लेकिन उस वजह से आतंकियों को फिर वहां अपना नेटवर्क मजबूत करने का मौका मिला, उनकी तरफ से जम्मू में एक सपोर्ट सिस्टम को एक्टिवेट कर दिया गया। अब सेना अपनी उस गलती को मानती है, लेकिन यह भी कहती है कि उस चूक से सबक लिया गया है।
क्या 90 का दौर वापस लौट आया है?
ऐसा बताया जा रहा है कि जम्मू में एक बार फिर सेना की तैनाती बढ़ चुकी है। इस समय जम्मू में 3000 सेना के जवान और 2000 बीएसएफ के कर्मी मौजूद हैं। अब असम राइफल्स की दो बटालियन्स को यहां तैनात करने का फैसला हुआ है। अगले तीन महीनों में उनकी उपस्थिति से भी जमीन पर सेना का नेटवर्क और ज्यादा मजबूत हो जाएगा। वैसे इन बढ़े हुए हमलों के बाद कुछ लोगों का कहना है कि 90 का दौर वापस लौट आया है, फिर आतंकियों की दहशत पूरी घाटी में देखने को मिल रही है।
कश्मीर में आतंकियों के पास से मिली Steyr AUG असॉल्ट राइफल
आतंकी हमलों में चीन की भूमिका
लेकिन सेना किसी भी कीमत पर इस नेरेटिव से सहमत होती नहीं दिख रही है। एक सैन्य अधिकारी का कहना है कि चिंता जरूर बढ़ी है, लेकिन यह कह देना कि 90 या 2000 का दौर वापस आ गया है, यह गलत है। हम मानते हैं कि सुरक्षाबलों को अब ऊंची पहाड़ियों पर फिर तैनाती बढ़ानी होगी। एक मजबूत ग्रिड बनने में जरूर समय लगेगा, लेकिन धैर्य रखने की जरूरत है। वैसे सेना का हर अधिकारी मानता है कि समय के साथ फिर स्थिति कंट्रोल में आ जाएगी, लेकिन दबी जुबान चीन की भूमिका को लेकर भी चर्चा चलती रहती है।
अब यह किसी से नहीं छिपा है कि चीन और पाकिस्तान पिछले कुछ सालों में काफी करीब आ चुके हैं। अब दोनों ही देश का मुकाबला भी क्योंकि भारत से ही चल रहा है, इस वजह से भी आपसी सहमति कई मुद्दों पर जरूरत से ज्यादा ही बनती दिख जाती है। इसी कड़ी में ऐसा भी माना जा रहा है कि जो आतंकी हमले बढ़े हैं, उसमें थोड़ा बहुत हाथ चीन का भी हो सकता है। अब वो सपोर्ट हथियारों से लेकर टेलीकम्युनिकेशन के क्षेत्र में देखने को मिल जाता है। अब वो सपोर्ट क्योंकि लगातार मिल रहा है, उसी वजह से आतंकियों की संख्या भी घाटी और जम्मू दोनों में ज्यादा है।
हिंसा को दिया जा रहा सांप्रदायिक रंग
वर्तमान में कश्मीर में 80 से 90 से आतंकी हैं, वहां भी 60-70 विदेशी आतंकी ऑपरेट कर रहे हैं। जम्मू की बात करें तो वहां पर 90 से 100 आतंकी एक्टिव है, उधर 55 से 60 विदेशी बताए जा रहे हैं। अब बड़ी बात यह है कि इन आतंकियों का मिशन सिर्फ हमला करना नहीं है। जब से अनुच्छेद 370 हटा है, पाकिस्तान बौखला चुका है, उसे सबसे पहले जम्मू-कश्मीर की उस जनता को फिर साथ जोड़ना है जिसके सहारे पहले हमले करने आसान रहते थे। हिंसा को सांप्रदायिक रंग देकर ऐसा करने की फिराक दिखाई दे रही है।
एक बात गौर करने वाली यह भी है कि पीर पंजाल की चोटियों पर आतंकियों की घुसपैठ की कई खबरें आने लगी हैं। यह वो इलाका है जहां पर सेना की अच्छी तैनाती देखने को मिलती थी। लेकिन लद्दाख में चीन की साजिशों को नाकाम करने के लिए सेना को पीर पांजाल से LAC पर तैनात कर दिया गया। अब सेना खुद मान रही है कि उस चूक का फायदा पाकिस्तान ने उठाया है, आतंकियों की घुसपैठ वहां बढ़ी है।
आतंकियों की नई तकनीक और बढ़ते हमले
अब जो आतंकी घुसपैठ कर रहे हैं, उनकी क्षमता भी पुराने दहशतगर्दों के मुकाबले में काफी ज्यादा है। अब पाकिस्तान जिन आतंकियों को जम्मू-कश्मीर में भेज रहा है, वो ज्यादा ट्रेनिंग ले चुके हैं, उन्हें अनुभव है, अलग-अलग हथियार चलाने में दक्षता है। इस बारे में एक सैन्य अधिकारी बताते हैं कि पहले तो ऐसा होता था कि आतंकी हमला करते थे और फिर वापस पाकिस्तान चले जाते थे। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। आतंकी वही रुक जाते हैं, जंगलों में छिपे रहते हैं, स्थानीय लोगों के साथ उनका ना के समान संपर्क चलता है। इस वजह से उन्हें ट्रेस करना ही एक बड़ी चुनौती रहती है।
लोकल लोग नहीं दे रहे इनपुट?
इसके ऊपर सेना को ऐसा भी लगने लगा है कि पहले लोकल लोग जिस तरह से इनपुट दिया करते थे, वो कॉन्टैक्ट अब टूट चुका है। असल में जम्मू में जो Gujjar-Bakarwals समुदाय है, उसकी तरफ से काफी मदद की जाती है। वो एक तरह से सेना के लिए आंख और कान का काम करता है। लेकिन अब सरकार के कुछ फैसले, अल्पसंख्यकों के खिलाफ बनता माहौल कुछ ऐसे कारण हैं जिस वजह से इस समयुदा का विश्वास कम हुआ है। दूसरी तरफ पहाड़ियों को आरक्षण देने का जो फैसला हुआ है, वो भी इस समुदाय को रास नहीं आया है।
कमजोर नेटवर्क, देर से मिल रही जानकारी
लेकिन डीजीपी स्वैन का ऐसा मानना है कि अगर कोई इनपुट शेयर भी किया जा रहा है, वो समय रहते सेना को नहीं मिल पाता है। उनकी नजरों में ज्यादा बड़ी समस्या यही है कि जरूरी इनपुट समय रहते नहीं मिल पा रहे हैं। वे कहते हैं कि चुनौती यह नहीं है कि हमे इनपुट नहीं मिल पा रहे हैं। प्रॉबलम यह है कि उन इनपुट्स पर समय रहते अमल नहीं हो रहा है। हर जगह मोबाइल नेटवर्क मौजूद नहीं है, अगर कोई जानकारी देना भी चाहता है, पुलिस को तीन से चार घंटे बाद पता चलता है। अब यह तीन से चार घंटे ही भारी पड़ जाते हैं।
Amrita Nayak Dutta, Arun Sharma, Deeptiman Tiwary और P Vaidyanathan Iyer की रिपोर्ट