सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 370 को लेकर गुरुवार को पांचवे दिन सुनवाई हुई। CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की पीठ ने कहा कि भारत में जम्मू कश्मीर का विलय परिपूर्ण था और भारत में कश्मीर का विलय बिना किसी शर्त के हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विलय परिपूर्ण था लेकिन यह कहना मुश्किल है कि आर्टिकल 370 को कभी निरस्त नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि आर्टिकल 370 के बाद भारत का संविधान जम्मू कश्मीर में संप्रभुता (Sovereignty) के कुछ तत्व बरकरार रखता है। जम्मू कश्मीर की संप्रभुता पूरी तरह से भारत को सौंप दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि अक्टूबर 1947 में पूर्व रियासत के विलय के साथ जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता का भारत को समर्पण परिपूर्ण था और यह कहना वास्तव में मुश्किल है कि संविधान के आर्टिकल 370 के तहत पूर्ववर्ती राज्य को मिला विशेष दर्जा स्थायी प्रकृति का था। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि एक बार संविधान के आर्टिकल 1 में कहा गया है कि भारत जम्मू और कश्मीर सहित राज्यों का एक संघ होगा और संप्रभुता का ट्रांसफर सभी मामलों में पूरा हो गया है।
भारत के साथ जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता का पूर्ण समर्पण
पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि आर्टिकल 370 के बाद जम्मू-कश्मीर में संप्रभुता के कुछ तत्व बरकरार रखे गए थे। चीफ जस्टिस ने कहा, “एक बात बिल्कुल साफ है कि भारत के साथ जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता का कोई सशर्त समर्पण नहीं हुआ है। संप्रभुता का समर्पण परिपूर्ण था। एक बार जब संप्रभुता पूरी तरह से भारत में निहित हो गई, तो राज्य के संबंध में एकमात्र प्रतिबंध कानून बनाने की संसद की शक्ति पर था।”
CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि हम आर्टिकल 370 के बाद के संविधान को एक दस्तावेज के रूप में नहीं पढ़ सकते हैं जो जम्मू-कश्मीर में संप्रभुता के कुछ तत्वों को बरकरार रखता है। वहीं, आर्टिकल 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं का तर्क यह है कि विलय पत्र के तहत, भारत सरकार को केवल रक्षा, संचार और बाहरी मामलों को संभालने का अधिकार था। याचिकाकर्ताओं में से एक, जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील जफर शाह ने कहा कि संवैधानिक रूप से पूर्ववर्ती राज्य के वास्ते कोई कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार या राष्ट्रपति के पास कोई शक्ति निहित नहीं है।
जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 स्थायी या अस्थायी?
मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान वकील शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के अलावा अन्य राज्यों के संबंध में कानून बनाने के लिए न तो परामर्श और न ही सहमति की जरूरत है। वहीं, जस्टिस कौल ने कहा कि असली मुद्दा यह है कि आर्टिकल 370 को निरस्त करने के लिए केंद्र द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया स्वीकार्य थी या नहीं। जिसके बाद जस्टिस कौल ने वकील शाह से पूछा, “यह कहना कि आर्टिकल 370 स्थायी है, वास्तव में कठिन है। मान लीजिए कि राज्य खुद कहता है कि हम चाहते हैं कि देश के सभी कानून लागू हों, तो आर्टिकल 370 कहां चला जाता है? वह प्रक्रिया जहां संसद आर्टिकल 370 को निरस्त कर सकती है क्या यह प्रक्रिया स्वीकार्य थी या नहीं?”
जिस पर वरिष्ठ वकील ने जवाब दिया कि इस मुद्दे पर अलग-अलग धारणाएं हो सकती हैं और सवाल यह होगा कि क्या आर्टिकल 370 अस्थायी था या स्थायी हो गया क्योंकि 5 अगस्त, 2019 को इसे हटाने के लिए संविधान सभा मौजूद नहीं थी। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सिर्फ जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ही अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की सिफारिश कर सकती थी और चूंकि 1957 में राज्य संविधान का ड्राफ्ट तैयार करने के बाद इसका अस्तित्व समाप्त हो गया, इसलिए इस प्रावधान ने स्थायी दर्जा हासिल कर लिया। उन्होंने कहा कि संसद ने संवैधानिक प्रावधान को निरस्त करने की शक्ति अपने पास रखी है, जो एक असंवैधानिक कार्य था। जिस पर जस्टिस कौल ने पूछा कि अगर संविधान सभा को दोबारा बनाया जाए, तो आर्टिकल 370 को हटाया जा सकता है? इस मामले पर अगली सुनवाई 16 अगस्त 2023 को होगी।
2019 में खत्म कर दिया गया था स्पेशल स्टेटस
केंद्र ने 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल -370 के प्रावधानों में बदलाव कर जम्मू कश्मीर के स्पेशल स्टेटस को खत्म कर दिया था। पहले केंद्र सरकार का कोई भी कानून यहां लागू नहीं होता था, लेकिन अब यहां केंद्र के कानून भी लागू होते हैं। जम्मू कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश है।