Jammu and Kashmir Pulwama’s Awantipora Terror Attack: गुरुवार को पुलवामा में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है। जैश-ए-मोहम्मद का सरगना कुख्यात आतंकी मसूद अजहर है, जिसे साल 1999 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने प्लेन IC-814 के क्रू और यात्रियों के एवज में रिहा किया था। बीते कुछ सालों में जैश-ए-मोहम्मद ने कश्मीर घाटी में अपनी सक्रियता काफी बढ़ायी है। घाटी में जैश-ए-मोहम्मद की सक्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आतंकी संगठन ने इसी साल कश्मीर में दर्जन भर आतंकी हमलों को अंजाम दिया है।

कई बड़े हमलों में रहा है हाथः जैश-ए-मोहम्मद भारत के लिए बड़ा सिरदर्द बन चुका है। जैश-ए-मोहम्मद के कारण ही साल 2001 में भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव काफी बढ़ गया था और युद्ध के हालात हो गए थे। दरअसल जैश-ए-मोहम्मद ने साल 2001 में संसद पर आतंकी हमले की घटना को अंजाम दिया था। इसके बाद पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले में भी जैश-ए-मोहम्मद का ही हाथ सामने आया था। इस हमले में सुरक्षाबलों के 7 जवान शहीद हो गए थे। इसके बाद साल 2016 में हुए उरी हमले में भी जैश-ए-मोहम्मद की संलिप्तता पायी गई थी। हालांकि उरी हमले के बाद भारतीय सेना ने पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक कर इस हमले का बदला ले लिया था।

अब पुलवामा में विस्फोट से भरी कार को सीआरपीएफ के काफिले से टकराकर जैश-ए-मोहम्मद ने एक बार फिर भारतीय सुरक्षाबलों को चुनौती दी है। हालांकि कार से विस्फोट जैसे हमलों को पहले भी अंजाम दे चुका है। साल 2000 में भी जैश ने घाटी में अपने पहले हमले में विस्फोटकों से भरी एक कार को सेना के 15 कोर्प्स मुख्यालय में घुसा दिया था। इस हमले को 17 साल के आत्मघाती हमलावर ने अंजाम दिया था। हालांकि यह विस्फोट मुख्यालय के गेट पर ही हो गया था। इस हमले के विफल रहने पर जैश ने एक बार फिर एक ब्रिटिश नागरिक को कार में विस्फोट भरकर सेना की 15 कॉर्प्स के मुख्यालय पर हमला करने भेजा। साल 2005 में जैश के एक आत्मघाती हमलावर ने खुद को अवंतीपोरा में उड़ा लिया था।

जम्मू कश्मीर विधानसभा पर हुए हमले में भी जैश ए मोहम्मद का हाथ सामने आया था। इस हमले में 23 लोगों की मौत हो गई थी। माना जाता है कि जैश सरगना मसूद अजहर की तालिबान के साथ और पाकिस्तानी खूफिया एजेंसी के साथ भी नजदीकी है। हालांकि परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में जैश और पाकिस्तान के रिश्तों में दरार आ गई थी। जिसके चलते कश्मीर घाटी में कुछ समय के लिए जैश की गतिविधियों में कमी आयी थी।

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कश्मीर घाटी में जैश की वापसीः साल 2004 के दौरान कश्मीर में जैश-ए-मोहम्मद के अधिकतर आतंकियों का सफाया हो चुका था। साल 2011 में कश्मीर में जैश का सरगना सजाद अघनी भी मारा गया। लेकिन कश्मीर के एक स्थानीय आतंकी नूर मोहम्मद तांतरे ने घाटी में जैश-ए-मोहम्मद को फिर से खड़ा करने में अहम योगदान दिया। 25 दिसंबर, 2017 को सुरक्षाबलों ने तांतरे को भी ढेर कर दिया था। तांतरे के बाद पाकिस्तानी आतंकी मुफ्ती वकास ने जैश की कमान संभाली और दिसंबर, 2017 में दो आत्मघाती हमलों से घाटी में अपनी मौजूदगी का सबूत दिया। इन आत्मघाती हमलों में सुरक्षाबलों के 5 जवान शहीद हो गए थे। मार्च, 2018 में मुफ्ती वकास भी एक एनकाउंटर में मारा गया। अब पुलवामा में सीआरपीएफ के 40 जवानों को शहीद कर जैश ने सुरक्षाबलों की चिंता बढ़ा दी है। बता दें कि भारत काफी समय से मसूद अजहर को अन्तर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करने की कोशिशों में जुटा है, लेकिन हर बार चीन इसमें अडंगा डाल रहा है।

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