जम्मू कश्मीर प्रशासन ने सोमवार को राज्य के प्रमुख अखबार कश्मीर टाइम्स का ऑफिस सील कर दिया है। कश्मीर टाइम्स का ऑफिस सरकार द्वारा आवंटित प्रेस एन्कलेव बिल्डिंग में चल रहा था। न्यूज पेपर की मालिक ने दावा किया है कि उनसे ऑफिस खाली कराने के लिए किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। उनका ये भी कहना है कि ऑफिस खाली कराने का उन्हें कोई कारण भी नहीं बताया गया है।
कश्मीर टाइम्स की मालिक अनुराधा भसीन का कहना है कि ‘उन्हें ऐसी खबरें मिल रहीं थी कि सरकारी बिल्डिंग से उनके ऑफिस को खाली कराया जा सकता है। लेकिन एस्टेट विभाग द्वारा इस संबंध में हमसे कोई बातचीत नहीं की। हमने एस्टेट विभाग से बिल्डिंग खाली कराने के आदेश दिखाने को कहा लेकिन हमें कुछ नहीं दिया गया। इसके बाद हमने कोर्ट की शरण ली लेकिन वहां से भी इस संबंध में कोई आदेश नहीं दिया गया है।’
वहीं एस्टेट विभाग के डिप्टी कमिश्नर मोहम्मद असलम का कहना है कि न्यूजपेपर ने सरकारी बिल्डिंग प्रेस एन्कलेव के दो क्वार्टर घेरे हुए थे, जिनमें से एक क्वार्टर विभाग द्वारा पहले ही ले लिया गया था। उन्होंने बताया कि यह क्वार्टर अनुराधा भसीन के पिता वेद भसीन को आवंटित हुआ था, जो कि कश्मीर टाइम्स पेपर के संस्थापक थे। उनकी मौत के बाद इस क्वार्टर का आवंटन रद्द हो गया था।
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, विभाग के अधिकारियों ने बताया कि यह क्वार्टर कश्मीर टाइम्स के नाम पर नहीं था और इसे अखबार के कर्मचारियों द्वारा रिहायश की तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा था। हमने दो तीन माह पहले इस खाली करने को कहा था। कल उन्होंने खुद ही इसे हमारे हवाले कर दिया।
बता दें कि जम्मू कश्मीर को विशेषाधिकार देने वाले आर्टिकल 370 हटाने के बाद जब सरकार ने वहां मीडिया पर पाबंदी लगायी थी, तब अनुराधा भसीन ने खुलकर सरकार के इस फैसले की आलोचना की थी। अनुराधा भसीन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मीडिया पर लगी पाबंदी हटाने की मांग की थी। भसीन की याचिका पर सुनवाई के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में प्रशासन को निर्देश दिए थे कि वह प्रतिबंधों की समीक्षा करें।
राज्य की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला ने भी कश्मीर टाइम्स के ऑफिस खाली कराने के फैसले पर सरकार की आलोचना की है। उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर लिखा कि ‘इससे पता चलता है कि क्यों हमारे ‘प्रतिष्ठित’ प्रकाशन सरकार के मुखपत्र बन गए हैं और सिर्फ सरकार द्वारा दिए गए प्रेस विज्ञप्ति को ही छाप रहे हैं। स्वतंत्र पत्रकारिता की कीमत ये है कि उसे बिना तय प्रक्रिया के निकाल बाहर किया जाता है। ‘
महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट में लिखा कि अनुराधा उन स्थानीय संपादकों में से थीं, जो जम्मू कश्मीर के लिए भारत सरकार की अवैध कार्रवाई के खिलाफ खड़े हुए। श्रीनगर में उनका दफ्तर बंद करना सीधे तौर पर भाजपा की बदले की कार्रवाई है, जो उनके खिलाफ खड़े होने की हिम्मत करते हैं।