72 साल के गुलाम कादिर दाइंग के घर को गुरुवार सुबह जम्मू विकास प्राधिकरण (जेडीए) के अफसरों की टीम ने गिरा दिया। गुलाम कादिर 1990 के दशक की शुरुआत में आतंकवादियों के डर से अपने सबसे बड़े बेटे के साथ डोडा के भलेसा से लगभग 200 किलोमीटर दूर जम्मू आ गए थे।
जब गुलाम कादिर का घर गिरा दिया गया तो उनके पड़ोसी कुलदीप शर्मा ने हिम्मत बंधाते हुए उन्हें अपनी पांच मरला जमीन देने की पेशकश की।
सोशल मीडिया पर जब गुलाम कादिर और उनके पत्रकार बेटे अरफाज की तस्वीर वायरल हुई तो जम्मू-कश्मीर बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष रविंद्र रैना उनसे मिलने पहुंचे। रैना ने गुलाम कादिर को प्रधानमंत्री आवास योजना के बारे में बताते हुए कहा, ‘हम वो लोग हैं जो गरीबों को घर देते हैं, उन्हें तोड़ते नहीं।’
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रैना बोले- मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रैना कहते हैं कि घर गिराए जाने का आदेश एलजी प्रशासन की ओर से नहीं बल्कि अब्दुल्ला सरकार की ओर से आया था। रैना ने कहा, ‘यह हमारा जम्मू-कश्मीर है, जहां अगर किसी मुस्लिम परिवार पर मुसीबत आती है, तो हिंदू पड़ोसी उसकी मदद के लिए आता है… मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना… यह हमारा हिंदुस्तान है।’ कांग्रेस के नेता नेता रमन भल्ला भी इस परिवार के पास पहुंचे।
गुलाम कादिर का परिवार और उनके पड़ोसी बताते हैं कि वे लगभग 35 सालों से इस जमीन पर रह रहे थे। उनका बड़ा बेटा जम्मू-कश्मीर पुलिस में ड्राइवर है।
बुलडोजर एक्शन पर उठाया सवाल
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘राजभवन में तैनात अधिकारी चुनी हुई सरकार की अनुमति के बिना और संबंधित मंत्री से बात किए बिना बुलडोजर चला देते हैं।’
अब्दुल्ला ने कहा, ‘क्या जम्मू में सिर्फ़ यही एक जगह है जहां अतिक्रमण होने के आरोप लगे हैं? मैंने विभाग से जेडीए की जमीन पर हुए अवैध अतिक्रमण की पूरी सूची मांगी है। मैं देखना चाहता हूं कि अधिकारियों ने सिर्फ इसी एक शख्स को क्यों निशाना बनाया और क्या इसकी वजह उसका धर्म है।’
आतंकवाद के डर से छोड़ा था डोडा
गुलाम कादिर बताते हैं कि जब उनका परिवार भलेसा में था तब 1991-92 में वहां आतंकवाद का काफी असर था। वहां के कई युवक पाकिस्तान से हथियार चलाने की ट्रेनिंग लेकर वापस आए थे। वे घरों में जाते थे और लोगों को उठा ले जाते थे। वह अपने बड़े बेटे को अपहरण कर लिए जाने के डर से 30 किलोमीटर से ज्यादा साइकिल चलाकर थाथरी पहुंचे थे और वहां से बस के जरिए जम्मू आए थे।
रेहड़ी खरीदी, स्टॉल लगाया और यहीं बस गए
गुलाम कादिर अपने संघर्षों के बारे में बताते हैं। वह बताते हैं कि उन्होंने पहले एक रेहड़ी खरीदी और उसके ऊपर लकड़ी का ढांचा बनाकर खाने का छोटा सा स्टॉल खोल लिया। कुछ समय बाद उनकी पत्नी और दूसरे बच्चे भी भलेसा से उनके साथ वहां आ गए। बाद में उन्होंने नरवाल में जमीन खरीदी, अपना मकान बनाया और कभी भी भलेसा नहीं गए।
गुलाम कादिर के बेटे अरफाज कहते हैं कि उन्होंने भटिंडी में जमीन खरीदी थी लेकिन उन्हें बाद में पता चला कि वह सरकारी जमीन है। भटिंडी में बने घर को सरकारी एजेंसियों ने गिरा दिया था। गुलाम कादिर के बेटे अरफाज कहते हैं कि उन्होंने भटिंडी में जमीन खरीदी थी लेकिन उन्हें बाद में पता चला कि वह सरकारी जमीन है। भटिंडी में बने घर को सरकारी एजेंसियों ने गिरा दिया था।
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क्या कहना है प्राधिकरण का?
जेडीए का कहना है कि गुलाम कादिर का घर जेडीए की जमीन पर बना था और इस संबंध में उन्हें 29 अक्टूबर को पहली बार नोटिस भी भेजा गया था। जेडीए का कहना है कि गुलाम कादिर के घर को गिराए जाने की कार्रवाई एक नियमित प्रक्रिया है। गुलाम कादिर ने पहले नोटिस का जवाब नहीं दिया था।
इसके बाद उन्हें 18 नवंबर को दूसरा नोटिस भेजा गया था और तब उन्होंने लिखित में कहा था कि नरवाल वाला घर उनका या उनके परिवार का नहीं है। उनके बेटे अरफाज एक स्थानीय न्यूज पोर्टल के लिए काम करते हैं। उनका एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें वह लोगों से मदद मांगते दिख रहे हैं।
कार्रवाई पर उठाया सवाल
नरवाल का घर गिराए जाने के बाद हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग वहां पहुंचे और उन्होंने इस कार्रवाई पर सवाल उठाया। लोगों ने कहा कि जब जम्मू शहर और इसके बाहरी इलाकों में सैकड़ों एकड़ जमीन पर रसूखदार और प्रभावशाली लोगों ने कब्जा किया हुआ है तो एक गरीब परिवार को निशाना क्यों बनाया जा रहा है।
