Jammu Kashmir: मारे गए आतंकियों के अंतिम संस्कार के दौरान नमाज पढ़े जाने को लेकर जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा है कि मारे गए आतंकियों के लिए नमाज पढ़ा जाना राष्ट्र विरोधी गतिविधि नहीं है। अदालत ने कहा कि यह इस तरह की गतिविधि नहीं है कि उन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई सुरक्षा के अनुसार उनकी निजी आजादी से वंचित किया जाए।

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट में जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे और जस्टिस एमडी अकरम चौधरी की पीठ विशेष न्यायाधीश अनंतनाग (गैरकानूनी गतिविधिया (रोकथाम) अधिनियम के लिए नामित न्यायालय) द्वारा 11 फरवरी, 2022 और 26 फरवरी, 2022 को पारित आदेशों के खिलाफ सरकार द्वारा दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

बता दें कि नवंबर 2021 में हिजबुल मुजाहिदीन संगठन का एक स्थानीय आतंकवादी सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ के दौरान मारा गया था। इस आतंकी के जनाजे के दौरान पढ़ी गई नमाज को लेकर मस्जिद शरीफ के इमाम जाविद अहमद शाह सहित देवसर, कुलगाम के कुछ ग्रामीणों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। इन लोगों को निचली अदालत से जमानत मिली हुई थी।

जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा दिए गए जमानत के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है। ऐसे में मारे गए आतंकवादी के अंतिम संस्कार में नमाज पढ़ा जाना राष्ट्रविरोधी गतिविधि नहीं है।

वहीं अदालत ने आरोपियों की जमानत बरकरार रखते हुए सरकार की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि मामले की जांच के दौरान आरोपी-प्रतिवादियों के खिलाफ ऐसा कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला, जिससे उन्हें जमानत न दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने प्रतिवादियों की जमानत सही तौर पर स्वीकार की।

बता दें कि अदालत ने कहा कि हम निचली अदालत द्वारा दिए आदेशों में दखल देने के लिए कोई आधार नहीं पाते हैं। इसलिए निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा जाता है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान जमानत के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया।