सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक के उन संशोधन कानूनों की वैधता बरकरार रखी, जिनके तहत क्रमश: सांडों पर काबू पाने से जुड़े खेल ‘जल्लीकट्टू’, बैलगाड़ी दौड़ और भैंसों की दौड़ से संबंधित खेल ‘कंबाला’ को मंजूरी दी गई थी। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 2018 में शीर्ष अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा संदर्भित पांच सवालों का निस्तारण करते हुए सर्वसम्मति से फैसला सुनाया।

इस पीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार भी शामिल थे। ‘जल्लीकट्टू’ तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में पोंगल के त्योहार के दौरान आयोजित किया जाने वाला एक पारंपरिक खेल है, जिसमें सांडों पर काबू पाना होता है।वहीं, कर्नाटक में नवंबर से मार्च के बीच आयोजित की जाने वाली ‘कंबाला’ दौड़ में हल से बंधी दो भैंसों और उनकी डोर थामने वाले व्यक्ति की अलग-अलग टीमें एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में शामिल होती हैं।

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संविधान पीठ ने कहा कि तमिलनाडु संशोधन अधिनियम के संबंध में हमारा फैसला महाराष्ट्र और कर्नाटक के संशोधित अधिनियमों पर भी लागू होगा। हम तीनों संशोधन अधिनियमों को वैध कानून पाते हैं। पीठ ने ‘जल्लीकट्टू’, बैलगाड़ी दौड़ और ‘कंबाला’ के आयोजन की अनुमति देने वाले तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक के कानूनों को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति बोस ने कहा कि इन अधिनियमों, नियमों और अधिसूचनाओं में निहित कानून को अधिकारियों द्वारा सख्ती से लागू किया जाएगा।

पीठ ने कहा कि हम विशेष रूप से निर्देश देते हैं कि जिला मजिस्ट्रेट/सक्षम प्राधिकारी नियमों/अधिसूचनाओं में संशोधन के बाद बनाए गए कानून का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होंगे। पीठ ने कहा कि चूंकि, विधायी अभ्यास पहले ही किया जा चुका है और ‘जल्लीकट्टू’ को तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा पाया गया है, इसलिए हम विधायिका के इस विचार के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे। कोर्ट ने कहा कि संशोधन को राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल चुकी है, लिहाजा हमें नहीं लगता कि राज्य के कानून में कोई खामी है।