Supreme Court Justice BV Nagarathna: सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने शनिवार को कहा कि यदि कानून के शासन को लोकतंत्र के सार के रूप में संरक्षित रखना है, तो अदालतों का कर्तव्य है कि वे इसे बिना किसी भय या पक्षपात के लागू करें।
राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के 12वें दीक्षांत समारोह में न्यायमूर्ति नागरत्ना ने इस बात पर जोर दिया के कानून केवल नियमों के बारे में नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के संबंध में है कि हर व्यक्ति धन, स्थिति, जाति, लिंग या आस्था की परवाह किए बिना कानून के समक्ष एक समान विषय के रूप में माना जाए।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि कानूनी पेशा बदलाव का एक माध्यम है। विशेष रूप से भारतीय समाज में जहां गहरी असमानताएं बनी हुई हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में, जहां कानून का शासन उसका सार है, उसे संरक्षित और लागू किया जाना चाहिए, विशेष रूप से न्यायालयों द्वारा। यदि कानून के शासन को लोकतंत्र के सार के रूप में संरक्षित किया जाना है, तो न्यायालयों का यह कर्तव्य है कि वे उसे बिना किसी भय या पक्षपात, स्नेह या द्वेष के लागू करें।
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उन्होंने कहा कि कानून का शासन सुशासन की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है, क्योंकि भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका है, जो अन्य बातों के अलावा, एक स्वतंत्र बार के समर्थन और सहायता के कारण कायम है।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि संविधान को उसकी पूरी उदारता के साथ लागू करने की जिम्मेदारी केवल सत्ता के गलियारों में बैठे लोगों की ही नहीं है, बल्कि यह जिम्मेदारी हर वकील की है, जिसे संविधान का समर्थक होना चाहिए। अक्सर, कानून को ऐसे किले के रूप में देखा जाता है जिस तक केवल ताकतवर लोग ही पहुंच सकते हैं। लेकिन आपके हाथों में, इसे एक सेतु बनना होगा अधिकारों और उपायों के बीच, संविधान और नागरिकों के बीच, न्याय और जनता के बीच एक सेतु। याद रखें, कानून सभी का है, लेकिन हर कोई इसका उपयोग नहीं कर सकता। आप वह अंतर पैदा कर सकते हैं जो यह सुनिश्चित करता है कि इस पहुंच से वंचित न रहा जाए।
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