अदालत की अवमानना कानून के तहत आरोपों से घिरे दो पुलिसकर्मियों की अर्जियों पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि इलाके के जजों को जानना पुलिस के लिए जरूरी है। अगर वो इसमें कोताही बरतते हैं तो इसे उनकी लापरवाही ही माना जाएगा।

दरअसल, पुलिस कर्मियों की तरफ से पेश वकील ने घटना का ब्योरा देते हुए कहा कि पुलिस एक चोर का पीछा कर रही थी और मजिस्ट्रेट की गाड़ी सड़क पर खड़ी थी। इसके कारण यातायात बाधित था। जब उन्होंने यह कहा कि याचिकाकर्ता को यह ज्ञात नहीं था कि संबंधित व्यक्ति न्यायिक मजिस्ट्रेट है, तब कोर्ट ने कहा कि जजों को जानना पुलिस के लिए जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट दो पुलिसकर्मियों की तरफ से मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 2018 के आदेश के विरूद्ध अलग-अलग दायर की गई अर्जियों पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि 2017 में एक न्यायिक अधिकारी से बदसलूकी करने को लेकर इन पुलिसकर्मियों के विरूद्ध अदालत की अवमानना का मामला बनता है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर एवं जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने इन अर्जियों पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

इन याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल ने इस मामले में हाईकोर्ट के सामने बिना शर्त माफी मांग ली है, लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया। इसके बाद कानून के प्रावधानों के तहत आरोप तय कर दिए गए। याचिकाकर्ता उस वक्त कांस्टेबल के पद पर था। उसके वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता कांस्टेबल था। उसे इस आरोप पर अदालत की अवमानना करने को लेकर आरोपित किया गया है कि उन्होंने न्यायिक अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार किया।

उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल अनजाने में हुआ। हमें पता नहीं था कि वह न्यायिक अधिकारी हैं। दूसरा याचिकाकर्ता उस समय संबंधित थाने का प्रभारी था। उसके वकील ने कहा कि ऐसा कोई आरोप नहीं है कि उनके मुवक्किल ने न्यायिक अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार किया।

बेंच ने कहा– यदि आपने न्यायिक अधिकारी से दुर्व्यवहार किया है, तो माफी स्वीकार करने का प्रश्न ही कहां है। वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता पुलिस वाहन के चालक था। मजिस्ट्रेट की गाड़ी सड़क पर खड़ी थी। इसके कारण यातायात बाधित था। मुजरिम को पकड़ने की जद्दोजहद में ये वाकया हो गया। बेंच ने कहा कि यह आपका बचाव है।