योगेश कुमार गोयल
वन्यजीव धरती के पारिस्थितिकी तंत्र का अभिन्न अंग हैं, जो जैव विविधता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मगर मानवीय गतिविधियों, जलवायु परिवर्तन और अवैध शिकार के कारण वन्यजीवों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। विश्व वन्यजीव कोष (डब्लूडब्लूएफ) की ‘लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट ’ में यह चौंकाने वाला, चिंताजनक खुलासा हो चुका है।
‘इंटरनेशनल यूनियन फार कन्जर्वेशन आफ नेचर’ (आइयूसीएन) की रिपोर्ट में भी बताया जा चुका है कि दुनिया भर में वन्यजीवों तथा वनस्पतियों की हजारों प्रजातियां संकट में हैं और आने वाले समय में इनके धरती से गायब होने में अप्रत्याशित वृद्धि हो सकती है। धरती पर वन्यजीवों के अस्तित्व पर मंडराते संकट को लेकर शोधकर्ताओं का कहना है कि अधिकतर प्रजातियां मानव शिकार के कारण लुप्त हुई हैं, जबकि कुछ अन्य कारणों में दूसरे जानवरों का हमला तथा बीमारी शामिल हैं।
डब्लूडब्लूएफ की रिपोर्ट में बताया गया है कि वन्यजीवों की आबादी में गिरावट के पीछे वनों की कटाई, आक्रामक नस्लों का उभार, प्रदूषण, जलवायु संकट तथा विभिन्न बीमारियां प्रमुख कारण हैं। वन्यजीवों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तस्करी रोकने के लिए हाल ही में भारत ने बांग्लादेश, मलेशिया, थाईलैंड तथा इंडोनेशिया के विशेषज्ञों के साथ मिलकर इस संकट पर गहन मंथन किया और वन्यजीवों की तस्करी पर अंकुश लगाने के लिए इन देशों द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साझा तंत्र विकसित करने की योजना भी बनाई है। पांच देशों की सामूहिक रणनीति के तहत काम करने वाला यह तंत्र इन देशों में वन्यजीवों की बरामदगी के प्रकरणों का विश्लेषण करने के साथ वन्यजीव तस्करों के संजाल की पहचान कर इंटरपोल की मदद से तस्करों के वित्तीय प्रवाह तंत्र को तोड़ने का भी काम करेगा।
वन्य जीवों की अनेक प्रजातियां जिस प्रकार दुनियाभर में धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं, उसी के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर, 2013 को 3 मार्च के दिन को ‘विश्व वन्यजीव दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी। विश्व वन्यजीव दिवस प्रतिवर्ष एक खास विषय के साथ मनाया जाता है।
इस वर्ष यह दिवस लोगों और ग्रह को जोड़ना: वन्यजीव संरक्षण में डिजिटल नवाचार की खोज (‘कनेक्टिंग पीपल एंड प्लैनेट: एक्सप्लोरिंग डिजिटल इनोवेशन इन वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन’) विषय के तहत डिजिटल नवाचार का पता लगाने और इस बात पर प्रकाश डालने के लिए आयोजित किया जा रहा है कि डिजिटल संरक्षण प्रौद्योगिकियां और सेवाएं वन्यजीव संरक्षण, टिकाऊ और कानूनी वन्यजीव व्यापार और मानव-वन्यजीव सह-अस्तित्व को कैसे चला सकती हैं।
यूएन का मानना है कि हम एक वैश्विक डिजिटल क्रांति के बीच में हैं, जो जन-केंद्रित डिजिटल शासन की बाधाओं को तोड़ और डिजिटल परिवर्तन की शक्ति को उजागर करने के लिए सभी के लिए समान अवसर प्रदान कर रही है। तकनीकी नवाचार ने अनुसंधान, संचार, ट्रैकिंग, डीएनए विश्लेषण और वन्यजीव संरक्षण के कई अन्य पहलुओं को आसान, अधिक कुशल और सटीक बना दिया है। फिर भी इन नए उपकरणों तक असमान पहुंच, पर्यावरण प्रदूषण और कुछ प्रौद्योगिकियों के अस्थिर अनुप्रयोग 2030 तक सार्वभौमिक डिजिटल समावेशन प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण मुद्दे बने हैं।
वन्यजीवों की विभिन्न प्रजातियों को शिकारियों से बचाने के लिए ‘डब्लूडब्लूएफ’ अब प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ साझेदारी से ड्रोन से लेकर इन्फ्रारेड कैमरों तक का उपयोग करके वन्यजीव अपराध से निपटने के लिए ऐसे अभिनव तरीके विकसित करने में जुटा है, जिससे रात के अंधेरे में भी आसानी से शिकारियों का पता लगाया जा सकेगा।
वेब-आधारित प्लेटफार्मों के माध्यम से अवैध वन्यजीव उत्पादों के व्यापार से निपटने के लिए डब्लूडब्लूएफ ने आनलाइन व्यापार के लिए एक मानकीकृत वन्यजीव नीति को अपनाने हेतु ई-कामर्स और सोशल मीडिया कंपनियों के साथ मिलकर काम किया है। डब्लूडब्लूएफ समृद्ध और विविध पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करने में पिछले करीब छह दशकों से जुटा है और कुछ जगहों पर इसके प्रयासों के कुछ सकारात्मक नतीजे भी सामने आए हैं, लेकिन फिर भी जिस तेजी से वन्यजीवों की अनेक प्रजतियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है, वह बेहद चिंतनीय है।
डब्लूडब्लूएफ का लक्ष्य दुनिया में जंगली बाघों की आबादी को दोगुना करना है। इस बारे में उसका कहना है कि बाघों को बचाना किसी एक प्रजाति को पुनर्स्थापित करने से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। जब एक बाघ की रक्षा की जाती है तो हम करीब पच्चीस हजार एकड़ जंगल की रक्षा करते हैं। वही जंगल वन्यजीवों और स्थानीय समुदायों को बनाए रखते और दुनिया भर के लोगों को स्वच्छ हवा, पानी, भोजन और उत्पाद प्रदान करते हैं। डब्लूडब्लूएफ की ही रिपोर्ट में बताया जा चुका है कि हाथी दांत के लिए हाथियों की अवैध हत्या से उनकी वैश्विक आबादी नष्ट हो रही है। अनुमान के मुताबिक शिकारी प्रतिवर्ष उनके दांतों के लिए करीब बीस हजार हाथियों की हत्या कर देते हैं।
वन्यजीवों की निगरानी, अवैध गतिविधियों पर नजर रखने तथा वन्य जीवों के संरक्षण में ड्रोन, जीपीएस ट्रैकिंग, कैमरा ट्रैपिंग, डीएनए विश्लेषण, कृत्रिम बुद्धिमता यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) जैसी विभिन्न तकनीकें अब महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। ड्रोन तकनीक जहां शिकारियों और अवैध गतिविधियों पर नजर रखने में बेहद प्रभावी है, वहींं वन्यजीवों की निगरानी, उनकी संख्या के वास्तविक अनुमान तथा उनके प्रवास मार्गों का पता लगाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।
इसी प्रकार जीपीएस ट्रैकिंग उपकरणों के जरिए अब वन्यजीवों की गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है, जिससे वैज्ञानिकों को उनके आवास, भोजन और प्रजनन व्यवहार को समझने में भी मदद मिल रही है। एक अन्य प्रभावी तकनीक है कैमरा ट्रैपिंग, जो उनकी सटीक संख्या, उनकी गतिविधियों और उनके व्यवहार का अध्ययन करने में सहायक है।
एआइ तकनीक तो वन्यजीव संरक्षण में बेहद उपयोगी मानी जा सकती है। इसके जरिए किया जाने वाला डेटा विश्लेषण अवैध गतिविधियों का पता लगाने के साथ, वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों को और बेहतर बनाने में सहायक हो सकता है। डीएनए विश्लेषण तकनीक वन्यजीवों की प्रजातियों की पहचान, उनकी आनुवंशिक विविधता और उनके संबंधों का अध्ययन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए वन्यजीव संरक्षण रणनीति बनाने में मददगार है।
पर्यावरण वैज्ञानिकों का मानना है कि वन्यजीवों के अस्तित्व पर मंडराते संकट का सीधा असर भविष्य में पैदावार, खाद्य उत्पादन आदि पर पड़ना तय है, जिससे पूरा पारिस्थितिकी तंत्र बुरी तरह प्रभावित होगा। जंगलों में अतिक्रमण, कटान, बढ़ते प्रदूषण तथा पर्यटन संबंधी गैरजरूरी गतिविधियों के कारण पूरी दुनिया में वन्यजीवों पर मंडराते संकट को रोकने के शीघ्र ठोस उपाय नहीं किए गए, तो आने वाले समय में बड़ा खमियाजा भुगतना पड़ सकता है।
हालांकि तकनीक के उपयोग से वन्यजीवों की निगरानी, उनकी सुरक्षा और उनके आवासों के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है, लेकिन प्रकृति का संतुलन और वन्यजीवों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण के लिए दुनिया के तमाम देशों को अपने-अपने स्तर पर गंभीर प्रयास करने की सख्त आवश्यकता है।