एक ऐसा देश जिसकी आबादी सिर्फ 95.6 लाख है, जिस देश के पास समय-समय पर सक्रिय सैनिकों की कमी भी देखने को मिली है, लेकिन फिर भी वो आज कई मोर्चों पर युद्ध लड़ रहा है। हम बात कर रहे हैं नेतनयाहू के देश इजरायल की, एक ऐसा देश जिसने समय के साथ, स्थिति के मुताबिक खुद को मजबूत किया, इतना ताकतवर बना लिया कि कम आबादी और संसाधनों के बीच भी उसने अपना लोहा बनवाया, दुश्मनों के मन में खौफ पैदा किया। इसी का असर है कि लेबनान में हिज्बुल्लाह की तबाही का कारण इसरायल बना हुआ है, हमास के लड़के इजरायल के सामने बौने साबित हो रहे हैं और ईरान अभी भी एक सीधे युद्ध से बचने की कोशिश कर रहा है।

इजरायल के विरोधी क्यों हो रहे पस्त?

यह सब बताने के लिए काफी है कि इजरायल जरूर कई मोर्चों पर युद्ध लड़ रहा है, लेकिन उसके विरोधी उस ताकत के साथ जवाबी कार्रवाई नहीं कर पा रहे। इसी वजह से सोशल मीडिया पर एक सवाल इस समय काफी चल रहा है- क्या हिंदुस्तान भी कभी इजरायल की तरह हमला कर सकता है? क्या भारत की सेना भी पाकिस्तान और चीन को इस तरह से करारा जवाब दे सकती है? क्या भारत के पास इतनी ताकत है कि वो दोनों चीन और पाकिस्तान से एक साथ लड़ाई लड़ सके? क्या भारत के पास इतने संसाधन मौजूद हैं कि वो दो मोर्चों पर एक बड़े युद्ध को अंजाम दे सके?

भारत को पता, पाकिस्तान-चीन साथ ही लड़ेंगे

इतने सारे सवाल इसलिए क्योंकि अभी तक भारत एक बार भी ऐसी स्थिति में नहीं आया है जहां उसे एक साथ कई मोर्चों पर युद्ध लड़ना पड़ा हो। लेकिन अब जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीति बदल रही है, जमीन पर समीकरण बदल चुके हैं, नियत और नीति भी कई देशों की बदली है। इस वजह से भारत चाहकर चीन पर भरोसा नहीं कर पाता है। मानकर चला जा रहा है कि चीन, पाकिस्तान की मदद करेगा और पाकिस्तान भी जरूरत पड़ने पर चीन के कंधे पर जरूर बैठेगा।

लेबनान के अंदर तक घुसी इजरायली सेना

युद्ध से पहले युद्ध लड़ने का जज्बा होना जरूरी

अब इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए हमने रक्षा मामलों के विशेषज्ञों से बात की। सर्विस में काम कर रहे ऑफिसर्स से उनकी राय जानने की कोशिश की। सुरक्षा कारणों से और गोपनीयता बनाए रखने के लिए उन्होंने अपने नाम उजागर नहीं किए, लेकिन वर्तमान स्थिति को लेकर अहम जानकारी दी। अब जब उन रक्षा विशेषज्ञ से हम बात कर रहे थे, हमें इस बात का एहसास हो गया कि युद्ध सिर्फ हथियारों से या सैनिकों के जरिए लड़ा नहीं जाता है। कहने को यह थोड़ी फिल्मी लाइन लग सकती है, लेकिन जब तक देश का जज्बा साथ ना हो, जब तक देशवासियों में राष्ट्रवाद का जोश ना भरा हो, किसी भी युद्ध को जीता नहीं जा सकता।

यूक्रेन कैसे 2 साल से रूस के सामने टिका?

असल में एक सैन्य अधिकारी ने हमे यूक्रेन का उदाहरण देते हुए कहा कि उस देश की आबादी कितनी है, वो रूस के सामने कहीं नहीं टिकता, उसकी सैन्य ताकत भी काफी कम है। लेकिन फिर भी पिछले दो साल से वो छोटा सा देश खुद को बचाने के लिए जमीन पर जी-जान से लगा हुआ है। पुतिन जरूर कहते थे कि 72 घंटे में वे यूक्रेन को सरेंडर करवा देंगे, लेकिन देख लीजिए आज यूक्रेन उल्टा रूस को पानी पिला रहा है। जब भी बात आपकी जान पर आ जाती है, आपका रिस्पॉन्स वैसे ही काम करता है, आप उसी तरह से खुद को तैयार करते हैं। भारत में भी अगर वैसी स्थिति बनेगी, अगर वहां भी बात सर्वाइवल की होगी, आप देखेंगे, हिंदू,मुस्लिम, हर जाति के लोग एक हो जाएंगे, नेताओं में पक्ष-विपक्ष खत्म हो जाएगा और तब किसी भी ताकतवर देश के सामने भी मजबूती से लड़ा जा सकेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की बेंजामिन नेतन्याहू से बात

डबल वॉर की कई सालों से तैयारी कर रहा भारत

यानी कि रक्षा विशेषज्ञ के मुताबिक सबसे पहले तो देश में वो जज्बा होना चाहिए कि वो अपने दुश्मन को धूल चटा सकता है, अगर ऐसा हो गया आधी जंग वही जीत ली जाएगी क्योंकि उससे सेना का हौसला भी बढ़ता है और संदेश जाता है कि देश मुश्किल स्थिति में पूरी तरह एकजुट है। अब अगर मान भी लिया जाए कि अगर हौसले बुलंद हों तो किसी भी युद्ध को जीता जा सकता है, लेकिन सवाल तो आता है कि अगर पाकिस्तान के साथ कभी चीन ने भी भारत पर हमला कर दिया, तब कैसे दो देशों से एकसाथ निपटा जाएगा?

इस पर भी रक्षा विशेषज्ञ की तरफ से दो टूक जवाब दिया गया है। वे मानते हैं कि सोशल मीडिया पर टीवी चैनलों पर त यह डिबेट अब शुरू हुई है, लेकिन देश तीनों ही सेनाएं कोई अभी से नहीं बल्कि कई सालों अपनी हर मिलिट्री एक्सरसाइज को इस तरह से करती है जिससे वो पाकिस्तान और चीन दोनों का साथ में मुकाबला कर सके। यह बोलना कि भारत इस चुनौती के लिए तैयार नहीं है, यह पूरी तरह गलत होगा क्योंकि देश अपनी रणनीति को कई सालों से इसी दिशा में आगे बढ़ा रहा है। मानकर चला जा रहा है कि अगर पाकिस्तान कभी हमला करेगा, चीन भी उसका साथ देगा।

डिफेंस के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाएगा ताकतवर

अब बातचीत के दौरान एक बात पर और काफी जोर दिया गया। बताया गया कि इजरायल जो आज इतने देशों से पंगे ले पा रहा है, आज जो वो अपनी संप्रभुता बचाने के लिए इतने मोर्चों पर युद्ध लड़ पा रहा है, उसका एक बड़ा कारण यह है कि वो पूरी तरह आत्मनिर्भर है। उसके पास इतने सारे अत्याधुनिक हथियार मौजूद हैं कि मुश्किल से मुश्किल जंग में भी वो खुद को मजबूत स्थिति में रख पाता है। इजरायल के डिफेंस सेंसर तो पूरी दुनिया में मशहूर हैं, भारत भी उससे लेता रहता है। लेकिन डिफेंस एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर भारत भी कभी कई मोर्चों पर युद्ध लड़ने का काम करेगा, उसे पूरी तरह आत्मनिर्भर बनना जरूरी है। कोई भी देश युद्ध में यह सोचकर नहीं कूद सकता कि जरूरत पड़ने पर कोई दूसरा मुल्क उनकी मदद कर देगा, उन्हें जरूरी हथियार दे देगा।

कितने दिन का गोला-बारूद भारत के पास?

उनकी तरफ से जोर देकर बोला गया है कि पीएम मोदी जो लगातार डिफेंस क्षेत्र में मेक इन इंडिया की बात करते हैं, उसके बहुत अहम मायने है। लंबे समय में यही रणनीति भारत के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है। आंकड़े भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि भारत ने डिफेंस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। पहले अगर 65-70 फीसदी तक रक्षा उपकरण बाहर से आयात किए जा रहे थे, अब वो आंकड़ा कम होकर 35 प्रतिशत पर पहुंच चुका है। इसके ऊपर भारत ने डिफेंस क्षेत्र में अपनी ताकत को इतना बढ़ा लिया है कि वो अब कई उपकरणों का दूसरे मुल्कों को एक्सपोर्ट कर रहा है, 2023-24 में तो निर्यात का आंकड़ा 21 हजार करोड़ के भी पार चला गया है।

अब डिफेंस एक्सपर्ट इसे एक बड़ी कामयाबी के रूप में जरूर देखते हैं, लेकिन वे यह भी मानते हैं कि भारत को अभी रिसर्च और डेवलपमेंट में और ज्यादा खर्च करने की जरूरत है। अगर अत्याधुनिक हथियार बनाने हैं तो उसके लिए रिसर्च जरूरी है और बड़े स्तर पर वो करने के लिए काफी पैसा चाहिए। ऐसे में इस क्षेत्र में सुधार की गुंजाइश देख रहे हैं। वैसे अगर इजरायल की तरह युद्ध करना है तो उसके लिए गोला-बारूद की पर्याप्त मात्रा होना भी बहुत जरूरी है। इसे तकनीकी भाषा में War Reserves कहा जाता है। इसका मतलब ही यह होता है कि कोई देश अगर लगातार युद्ध लड़े, तो कितने दिनों तक वो अपनी सेना को सपोर्ट कर पाएगा, कब तक गोली-बारूद मिलता रहेगा।

इजरायल के पास कितना गोला-बारूद?

इस बारे में रक्षा विशेषज्ञ ने हमे बताया कि पिछले कई सालों से भारत की यह एक बड़ी प्राथमिकता बनी हुई है। भारत अभी अपने पास इतना गोला-बारूद का इतना स्टॉक रखना चाहता है कि 15 दिनों तक वो एक इंटेंस वॉर लड़ सके। पहले यह आंकड़ा 10 दिन तक रहता था। ऐसे में समय के साथ और चीन और पाकिस्तान के साथ बदलते रिश्तों के बीच स्टॉक को भी बढ़ाने की कवायद हो रही है। वैसे अगर तुलना इजरायल से करनी है तो वो अभी भारत से काफी आगे है। ऐसा इसलिए क्योंकि इजरायल ने खुद को 30 दिनों तक की इंटेंस बैटल के लिए तैयार रखा है, उसके पास हथियारों से लेकर गोला-बारूद का स्टॉक एक महीने तक रहता है।

किसी भी युद्ध को लड़ने के तीन चरण

वैसे अगर भारत, पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध करता है, कुछ ऐसे प्रोटोकॉल हैं जो जरूर फॉलो होते दिख जाएंगे। डिफेंस एक्सपर्ट ने हमे इस बारे में इजरायल और रूस का उदाहरण देकर समझाने की कोशिश की है। उनके मुताबिक अगर कभी कोई भीषण युद्ध होता है तो सबसे पहले एयरफोर्स का इस्तेमाल होता है। उसका कारण यह है कि आप किसी के भी एयरस्पेस में जाकर मिसाइल गिराकर तबाही मचाते हैं। उसके जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके बाद दूसरा लक्ष्य ‘सी कंट्रोल’ का रहता है, यानी कि नेवी के जरिए समुद्र में भी अपने विरोधी को घेरना होता है। सबसे आखिर में लैंड इनवेजन यानी कि सेना का इस्तेमाल होता है। इजरायल भी लेबनान में जमीनी कार्रवाई पर तब उतरा है जब उसने एयरस्ट्राइक के जरिए हिजबुल्लाह के तमाम ठिकानों को तबाह कर दिया।

कैसे होती है इजरायली सैनिकों की ट्रेनिंग?

अब तुलना अगर इजरायल से हो रही है, तो यह समझना भी जरूरी हो जाता है कि वहां पर सैनिकों की ट्रेनिंग किस तरह से की जा रही है। भारत में तो एक तरफ अग्निवीर योजना को लेकर बवाल है, दूसरी तरफ इजरायल कई सालों से ऐसी ही एक स्कीम के साथ आगे बढ़ रहा है और उस वजह से उसकी रिजर्व सेना की ताकत कई गुना बढ़ चुकी है। असल में इजरायल में अनिवार्य सेना अधिनियम चलता है, इसकी वजह से सभी सक्षम नागरिकों के लिए कुछ समय सेना के लिए सेवा देना जरूरी होता है।

नियम कहता है कि इजरायली पुरुषों को 32 महीने और महिलाओं को 24 महीने के लिए सेना में काम करना होगा। इस वजह से IDF के पास अगर 1,69,500 सक्रिय सैन्यकर्मी हैं तो दूसरी तरफ रिजर्व की संख्या 4,65,000 तक पहुंच चुकी है। यह भी बताया गया है कि रिजर्व सेना में शामिल नागरिकों को साल में एक बार तो प्रशिक्षण के लिए जाना ही पड़ता है।