चुनाव आयोग ने सोमवार को 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अपने मतदाता सूची (इलेक्टोरल रोल) के गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर की घोषणा की है। इसके कुछ घंटों के बाद विपक्षी दलों ने अपना विरोध जताया है। डीएमके ने इसे राज्य के लोगों के मताधिकार को छीनने की साजिश करार दिया है। एमके स्टालिन सरकार ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए 2 नवंबर को एक सर्वदलीय बैठक बुलाई।

नवंबर और फरवरी के बीच एसआईआर आयोजित करने की चुनाव आयोग की घोषणा के बाद डीएमके और उसके सहयोगियों ने चेन्नई में एक बैठक की। उन्होंने केंद्र की बीजेपी सरकार पर लोकतंत्र को बदनाम और नष्ट करने की कोशिश करने का आरोप लगाया। डीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन ने कहा कि नवंबर और दिसंबर में उत्तर-पूर्वी मानसून के मौसम में इतनी बड़ी कवायद करना बेहद मुश्किल होगा।

हम मिलकर लड़ेंगे- डीएमके

पार्टियों ने एक बयान में कहा, “हम यह नहीं कह रहे हैं कि वोटर लिस्ट में संशोधन नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन इसे जल्दबाजी में नहीं किया जाना चाहिए। अप्रैल में होने वाले (तमिलनाडु विधानसभा) चुनावों के साथ ही ऐसा करना ठीक नहीं है।” उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार में इस कवायद में मुसलमानों, अनुसूचित जातियों और महिलाओं को निशाना बनाया गया। पार्टियों ने कहा, “तमिलनाडु ऐसी किसी भी साजिश को मंजूरी नहीं देगा। हम मिलकर लड़ेंगे।”

पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ टीएमसी और केरल में सीपीआई (एम) सरकार ने भी इस कदम की निंदा की है। वरिष्ठ टीएमसी नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया , “बिहार में एसआईआर एक ड्रेस रिहर्सल था। उनका मुख्य निशाना पश्चिम बंगाल है। बंगाल की जनता कुछ ही महीनों में चुनाव आयोग का मुंह बंद कर देगी, जो बेहद समझौतावादी है।” तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल में अगले साल अप्रैल-मई में चुनाव होने हैं।

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सीपीआईएम नेता ने चुनाव आयोग के फैसले को मनमाना बताया

सीपीआईएम महासचिव एमए बेबी ने चुनाव आयोग के फैसले को मनमाना और एकतरफा करार दिया। एमए बेबी ने कहा, “चुनाव आयोग द्वारा संशोधन की जल्दबाजी, जबकि सुप्रीम कोर्ट बिहार में इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, लोकतांत्रिक मानदंडों के प्रति उसकी घोर अवमानना ​​दर्शाता है। केरल विधानसभा ने सर्वसम्मति से ऐसे समय में ऐसी किसी भी कार्रवाई के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था जब राज्य स्थानीय निकायों और विधानसभा चुनावों की दहलीज पर है। जिस तरह से चुनाव आयोग ने पारदर्शिता की सभी मांगों को अनसुना कर दिया है, उससे यह संदेह और पुष्ट होता है कि वह सत्तारूढ़ दल के इशारे पर काम कर रहा है और वोटर लिस्ट में हेरफेर करने की उसकी नापाक साजिश रच रहा है।”

कांग्रेस पार्टी ने भी बोला हमला

कांग्रेस ने भी चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल उठाए। कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा, “बिहार में एसआईआर से जुड़े सवालों के जवाब हमें अभी तक नहीं मिले हैं। हालात ऐसे थे कि बिहार में इस प्रक्रिया को दुरुस्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को कई बार दखल देना पड़ा। बिहार के एसआईआर को लेकर चुनाव आयोग और चुनाव आयोग को अपनी कठपुतली बनाने वाली बीजेपी की मंशा पूरे देश के सामने आ चुकी है।” पवन खेड़ा ने एक वीडियो मैसेज में कहा, “SIR के नाम पर बिहार में लोकतंत्र की हत्या की साजिश रची गई? 12 राज्यों में जो SIR की घोषणा हुई है, उसकी दिशा निर्देश 2003 के SIR से अलग क्या होंगे। क्या एसआईआर का यह राउंड भी सिर्फ वोट काटने वाले के लिए है, बिहार में चुनाव आयोग ने डोर टू डोर बनाकर नए वोटर जोड़ने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जबकि 65 लाख वोट कटे।”