दामिनी नाथ
One Nation One Election: केंद्र सरकार ने पूरे देश में एक साथ चुनाव की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस पर विचार करने वाली समिति का प्रमुख नियुक्त किया है। मगर इसके लिए संविधान में व्यापक बदलाव करने के साथ ही नए कानून बनाने होंगे। इस मुद्दे को लेकर इंडियन एक्सप्रेस ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों से बात की। उनके अनुसार लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराना कोई बड़ी चुनौती नहीं थी, हालांकि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के तहत पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव कराना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द के नेतृत्व में केंद्रीय कानून मंत्रालय द्वारा 2 सितंबर को गठित उच्च स्तरीय समिति को लोकसभा, विधानसभा, पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ कराने के मुद्दे की जांच करने और यह देखने का काम सौंपा गया है कि क्या राज्य ऐसा करेंगे। ऐसा करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन का अनुमोदन करना होगा।
लोकसभा-विधानसभा का चुनाव एक साथ मुश्किल भरा नहीं: एन गोपालस्वामी
इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व सीईसी एन गोपालस्वामी ने कहा कि चुनाव आयोग के लिए लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना मुश्किल नहीं होना चाहिए, क्योंकि आवश्यकता का आकलन करने के बाद अतिरिक्त ईवीएम का आदेश दिया जा सकता है और प्रत्येक मतदान केंद्र को केवल दो या तीन अतिरिक्त कर्मचारियों की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा कि जिस मुद्दे का अध्ययन करने की जरूरत है वह यह है कि अगर कोई सरकार गिरती है तो क्या होगा।
एन गोपालस्वामी ने कहा, ‘यह केवल एक राष्ट्र, एक चुनाव‘ का एक मसला नहीं है। आपको यह सोचना होगा कि बाद में कोई विसंगति न आए। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि यदि एक सरकार गिर जाती है, तो वही विधायी निकाय शेष कार्यकाल के लिए नई सरकार का चुनाव करेगा। दलबदल विरोधी कानून बदलना होगा। यदि कोई विधायक किसी अलग पार्टी में शामिल होने के लिए इस्तीफा देता है, तो उसे दोबारा चुनाव लड़ने के लिए कार्यकाल पूरा होने तक इंतजार करना होगा। उन्होंने कहा कि मेरे विचार से यह चुनाव प्रबंधन का मुद्दा कम और राजनीतिक मुद्दा अधिक है।
दूसरी ओर, उन्होंने कहा कि पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों को अन्य चुनावों के साथ जोड़ना एक बड़ी चुनौती होगी। उदाहरण के लिए, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए नगरपालिका वार्ड और मतदान केंद्र विधानसभा और लोकसभा सीमाओं के अनुसार स्थित नहीं हैं।
वन नेशन, वन इलेक्शन में कई बाधाएं: नवीन चावला
2009 के आम चुनावों कराने वाले पूर्व सीईसी नवीन चावला ने कहा कि 1967 तक केंद्र और राज्यों में एक ही पार्टी सत्ता में थी, इसलिए एक साथ चुनाव कराना संभव था। 1967 में केरल विधानसभा गिरने के बाद जमीनी हालात पूरी तरह बदल गये।
चावला ने कहा, ‘हालांकि चुनाव आयोग के लिए एक साथ चुनाव कराना संभव है, लेकिन इसमें कई बाधाएं हैं। पहला यह कि संविधान के कम से कम पांच अनुच्छेदों में संशोधन करना होगा। उदाहरण के लिए, यदि कोई विधानसभा समय से पहले भंग हो जाती है तो राष्ट्रपति शासन का प्रावधान है, लेकिन केंद्र में नए आम चुनावों की आवश्यकता के अलावा कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें अटल बिहारी वाजपेई की 13 दिन की सरकार का मामला याद होगा।”
नवीन चावला ने कहा कि दूसरी बात यह है कि हर विपक्षी दल चुनाव के दौरान केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग करता है। उन्होंने कहा कि 2009 के आम चुनावों में हमारे पास लगभग 2,000 पर्यवेक्षक थे। जब आप संसद और सभी राज्य विधानसभाओं को शामिल करते हैं, तो पर्यवेक्षकों और केंद्रीय बलों की मांग काफी बढ़ने की संभावना है। तीसरा, ईवीएम और वीवीपैट भी एक मामला है जिसे संभाला जा सकता है, लेकिन उनके निर्माण के लिए आपको समय की आवश्यकता होती है।
उन्होंने कहा कि 2015 में ई एम सुदर्शन नचियप्पन की अध्यक्षता वाली संसदीय स्थायी समिति ने एक साथ चुनाव के मामले पर कई सिफारिशें की थीं, जिनकी जांच करने की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा कि जब मैं चुनाव आयोग के नजरिए से कहता हूं तो यह याद रखना चाहिए कि एक और संवैधानिक निकाय है जो राज्य चुनाव आयोग है। यह आयोग पंचायत और नगरपालिका चुनावों को संभालता है। इस बहस के दौरान उन चुनावों पर भी विचार करना चाहिए।
पूर्व सीईसी टी एस कृष्ण मूर्ति ने जानिए क्या कहा-
पूर्व सीईसी टी एस कृष्ण मूर्ति ने कहा कि सैद्धांतिक रूप से एक साथ चुनाव कराना एक अच्छा विचार है। उन्होंने कहा कि भारत एक विशाल देश है। अमेरिकी चुनाव भी हमारे चुनाव जितने कठिन नहीं हैं। सैद्धांतिक रूप से, यह एक अच्छा विचार है और कठिनाइयों पर काबू पाया जा सकता है।’ उन्होंने कहा कि 50% राज्यों को संवैधानिक संशोधनों पर सहमत होना होगा, और यदि ऐसा है, तो प्रशासनिक हिस्सा चुनाव आयोग द्वारा संभाला जा सकता है।
एक अन्य पूर्व सीईसी, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बात की। उन्होंने कहा कि समिति में ऐसे किसी भी सदस्य को शामिल नहीं किया गया है, जिनके पास देश भर में चुनाव कराने का अनुभव हो। पूर्व सीईसी ने कहा कि ऐसा मालूम पड़ता है कि समिति का एक राष्ट्र, एक चुनाव से कोई संबंध नहीं है। यह अभूतपूर्व है कि एक पूर्व राष्ट्रपति किसी समिति का अध्यक्ष है। उन्होंने कहा कि तो फिर उनके पूर्व सचिव संजय कोठारी समिति में क्यों हैं?
संजय कोठारी पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) हैं, जिन्होंने पहले 8 अगस्त 2017 से 24 अप्रैल 2020 तक पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के सचिव के रूप में काम किया था। संजय कोठारी ने सरकार के विभिन्न स्तरों पर काम किया है। रिटायर 1978-बैच के हरियाणा-कैडर के आईएएस अधिकारी संजय कोठारी ने 25 अप्रैल 2020 से 23 जून 2021 तक सीवीसी के रूप में कार्य किया है। संजय कोठारी ने अपने आईएएस करियर के दौरान केंद्र में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग में सचिव और अपने कैडर सहित अलग-अलग पदों पर काम किया है। संजय कोठारी ने केंद्र में पर्यटन मंत्रालय और हरियाणा सरकार के पर्यटन विभाग में भी काम किया है।
समिति के अन्य सदस्यों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आज़ाद हैं। वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी कश्यप और वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे शामिल हैं। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी को भी समिति में शामिल किया गया था, लेकिन उन्होंने शाह को पत्र लिखकर खुद इस कमेटी से अलग कर लिया।