भारतीय रेलवे की वित्त वर्ष 2019 में जितनी कमाई नहीं हुई उससे अधिक खर्च हो गया है। सीएजी की ताजा ऑडिट रिपोर्ट में ये जानकारी सामने आई है। पिछले पांच सालों में रेलवे की अनुमानित कमाई में भी लगातार कमी आई है। इसके चलते अतिरिक्त बजटीय संसाधनों जैसे एलआईसी से मिलने वाले फंडों पर रेलवे की निर्भरता काफी बढ़ गई है। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी के चलते लागू हुए लॉकडाउन के प्रभावों के कारण रेलवे की वित्तीय स्थिति और खराब हो सकती है।

आंकड़ों का खेल
वित्त वर्ष 2019 में रेलवे ने 100 रुपए कमाने के लिए 97.29 रुपए खर्च किए अर्थात ये इसका ऑपरेटिंग अनुपात (OR) है। मगर सीएजी को अपनी रिपोर्ट में पता चला है कि रेलवे ने वित्त वर्ष 2020 के लिए माल ढुलाई से जुड़े भुगतान को शामिल कर लाभ का डेटा तैयार किया। सीधे शब्दों में समझे तो रेलवे ने अगले साल के लिए किए भुगतान को इस साल की आमदानी में जोड़कर दिखा दिया। इस तरह बताया गया कि वित्त वर्ष 2019 में सौ रुपए कमाने के लिए रेलवे को 97.29 रुपए खर्च करने पड़े जबकि वास्तव में खर्च हुए 101.77 रुपए।

रिपोर्ट के मुताबिक रेलवे ने एनटीपीसी और कॉनकोर से मिली 8,351 करोड़ रुपए की एडवांस पेमेंट नहीं दिखाई होती तो ऑपरेटिंग रेशियो (OR) 97.29 फीसदी नहीं, बल्कि 101.77 फीसदी होता। रेलवे का खर्च असल में कंट्रोल में नहीं आ रहा और ऑपरेटिंग रेशियो का बढ़ना अच्छी बात नहीं है।

रिपोर्ट में ये भी पता चला है कि सभी रेलवे जोन घाटे में नहीं चल रहे हैं। 17 जोन में से 9 का औसत OR वित्त वर्ष 2015-19 के बीच 100 था जबकि 4 का 150 फीसदी था। इसका मतलब है कि रेलवे को 100 रुपए कमाने के लिए 150 रुपए से अधिक खर्च करने पड़े थे।

रेलवे टिकटों की बिक्री, माल ढुलाई आदि के जरिए आंतरिक कमाई करता है। मगर रेलवे के पिछले पांच बजट की अनुमानित कमाई में कमी आई है। इस दौरान रेलवे की कमाई 3.4 फीसदी की गति से ही बढ़ी।