क्या ईरान-इजराइल युद्ध के रूप में पूरे विश्व में नई मुसीबत सामने आ रही है? पहले से ही चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध और इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के बीच इस नए युद्ध ने सबकी चिंता बढ़ा दी है। इस संकट से भारत भी अछूता नहीं रहेगा। हाल ही में भारत के विदेश मंत्रालय ने परामर्श जारी कर ईरान और इजराइल जाने के प्रति नागरिकों को सचेत किया था। इजराइल से जुड़े एक कार्गो शिप पर भी ईरान ने कब्जा किया है।

ईरान-इजराइल युद्ध की आशंका को देखते हुए इसका नकारात्मक असर महंगाई पर भी पड़ सकता है। कच्चे तेल की कीमत 100 डालर तक पहुंचने की आशंका व्यक्त की जा रही है। पिछले कुछ दिनों में कच्चे तेल की तेजी के पीछे यही संकट अहम माना जा रहा है। इसका असर महंगाई पर पड़ सकता है। हालांकि चुनाव को देखते हुए अभी पेट्रोल-डीजल की कीमत में तुरंत वृद्धि की संभावना नहीं है। हालांकि वैश्विक आपूर्ति शृंखला भी इससे प्रभावित हो सकती है।

रक्षा आपूर्ति पर असर पड़ सकता है

रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल अशोक कुमार (रिटायर्ड) कहते हैं कि अगर इजराइल और ईरान का भी संघर्ष लंबा चला तो भारत के रक्षा आपूर्ति पर असर पड़ सकता है। रूस और यूक्रेन संघर्ष के बाद रूस से आने वाली आपूर्ति पर असर हुआ तो भारत ने विकल्प के तौर पर नाटो देशों को देखा। लेकिन अगर इजराइल-ईरान संघर्ष लंबा चलता है तो उसमें अमेरिका भी शामिल होगा। ऐसे में अमेरिका, इजराइल और नाटो देश इन संघर्षों में उलझ जाएंगे। इजराइल-हमास संघर्ष में इजराइल पहले ही उलझा है।

ऐसे में अगर एलएसी पर चीन कुछ हरकत करता है और चीन से विवाद बढ़ता है तो हमारे सहयोगी देश अपनी ही लड़ाई में व्यस्त होंगे, जिसका असर भारत पर पड़ सकता है। वैसे भी इजराइल और ईरान दोनों भारत के लिए अहम हैं। इजराइल भारत का राणनीति आपूर्तिकर्ता है तो सेंट्रल एशिया रिपब्लिक और ईस्ट यूरोपियन देशों तक गतिविधि के लिए ईरान अहम है। इसलिए भारत चाबहार बंदरगाह में ईरान के साथ मिलकर काम कर रहा है।

आर्थिक हालात पर असर

आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) में विदेश नीति अध्ययन केंद्र के उपाध्यक्ष प्रोफेसर हर्ष वी पंत कहते हैं कि अगर इजरायल और ईरान के बीच जंग होती है तो पूरा मिडिल ईस्ट ही इससे प्रभावित होगा और उसके बाद ऊर्जा सकंट से लेकर आर्थिक हालत पर असर होगा। उसमें यह भी देखना होगा कि हमारे लोग जो वहां है उसे कैसे बचाया जाए और वापस लाया जाए। यह देखना होगा कि हमारी ऊर्जा की जरूरतें कैसे पूरी होंगी।

ऊर्जा सुरक्षा से लेकर आर्थिक सुरक्षा तक पर असर पड़ेगा। हर्ष वी पंत कहते हैं कि इजराइल और ईरान दोनों ही भारत के लिए अहम हैं, अगर संघर्ष बढ़ता है तो भारत दोनों देशों को यही राय दे सकता है कि बातचीत से हल निकाला जाए। अमेरिका पहले ही कह चुका है कि इजराइल को समर्थन देगा। इस तरह से यह वैश्विक चुनौती के तौर पर बड़ा मसला हो सकता है।

भारत तो यही चाहेगा और यही कोशिश करेगा कि दोनों ही देशों को ये बात समझ आए कि मामला बढ़ाया न जाए। वैसे वे दोनों देश इस संकट को किस तरह देखते है ये उनके नजरिए पर निर्भर करता है। भारत यूरोपियन यूनियन और हिंद प्रशांत के देशों के साथ मिलकर जरूर इस बात को रेखांकित कर सकता है कि यह युद्ध बढ़े ना।

दोस्त बने दुश्मन

ईरान और इजराइल में कभी बहुत गहरी दोस्ती थी। ईरान से तेल खरीदने में इजराइल सबसे आगे था, लेकिन यह सिलसिला लंबा नहीं चल सका। ईरानी विद्रोह के बाद जैसे ही वहां के शासक शाह रजा पहलवी ने गद्दी छोड़ी और शिया नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई ईरान के प्रमुख बने तभी दोनों देशों की दोस्ती पर विराम लग गया। ईरान के नए राष्ट्र प्रमुख ने इसे पूर्ण रूप से इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर दिया और अमेरिका से दूरी बना ली।

इजराइल से रिश्ते को तोड़ने में कहीं न कहीं उसकी अमेरिका से दोस्ती भी एक प्रमुख कारण रही। सत्ता परिवर्तन के साथ ही ईरान ने चरमपंथी समूहों का साथ देना शुरू कर दिया जो इजराइल के खिलाफ काम कर रहे थे। हमास, हिजबुल्लाह, हूती जैसे चरमपंथी संगठनों को ट्रेनिंग, पैसा, हथियार की मदद लगातार ईरान करता रहा। हालांकि ईरान ने सार्वजनिक तौर पर इसे कभी नहीं स्वीकार किया लेकिन दुनिया भर की खुफिया एजंसियां इस काले सच से वाकिफ हैं।

अगर इजराइल और ईरान का भी संघर्ष लंबा चला तो भारत की रक्षा आपूर्ति पर असर पड़ सकता है। इजराइल भारत का रणनीतिक आपूर्तिकर्ता है तो सेंट्रल एशिया रिपब्लिक और ईस्ट यूरोपियन देशों तक गतिविधि के लिए ईरान अहम है।
– अशोक कुमार, मेजर जनरल (रिटायर्ड) और रक्षा विशेषज्ञ

अगर इजरायल और ईरान के बीच जंग जारी रही तो पूरा मिडिल ईस्ट ही इससे प्रभावित होगा और उसके बाद ऊर्जा सकंट से लेकर आर्थिक हालत पर असर होगा। यह दुनिया भर के लिए बहुत संकट होगा। वहीं, अमेरिका पहले ही कह चुका है कि वह इजराइल को समर्थन देगा।

  • हर्ष वी पंत, प्रोफेसर