ईरान ने भारत को बड़ा झटका देते हुए चाबहार रेल परियोजना से भारत को बाहर कर दिया है। ईरान ने भारत द्वारा प्रोजेक्ट की फंडिंग में देरी किए जाने को इसकी वजह बताया है। ईरान ने ऐलान किया है कि वह अब अकेले ही इस परियोजना को पूरा करेगा। भारत के लिए ईरान का यह फैसला सामरिक और रणनीतिक तौर पर बड़ा झटका माना जा रहा है। गौरतलब है कि ईरान और चीन के बीच 400 बिलियन डॉलर की एक महाडील होने वाली है। माना जा रहा है कि इस डील के चलते ही ईरान ने चाबहार परियोजना से भारत को बाहर कर दिया है।
क्या है चाबहार रेल परियोजनाः इस परियोजना के तहत ईरान के चाबहार पोर्ट से लेकर जहेदान इलाके तक रेल परियोजना बनायी जानी है। इस रेल परियोजना को अफगानिस्तान के जरांज सीमा तक बढ़ाए जाने की भी योजना है। द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस परियोजना को मार्च 2022 तक पूरा किया जाना है।
साल 2014 में पीएम मोदी के ईरान दौरे पर चाबहार समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। पूरी परियोजना पर 1.6 अरब डॉलर का निवेश होना था। खबर है कि अमेरिकी प्रतिबंधों के डर से भारत ने इस रेल परियोजना पर काम शुरू नहीं किया। भारत की सरकारी कंपनी इरकॉन इस परियोजना को पूरा करने वाली थी। यह परियोजना भारत के अफगानिस्तान और अन्य मध्य एशियाई देशों तक एक वैकल्पिक मार्ग मुहैया कराने की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए बनायी जानी थी, जिसका भविष्य में भारत को काफी फायदा हो सकता था, लेकिन अब ईरान के ऐलान के बाद भारत को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।
बता दें कि चीन और पाकिस्तान मिलकर सीपेक परियोजना पर काम कर रहे हैं। इस परियोजना से चीन और पाकिस्तान को भारत पर रणनीतिक बढ़त मिलने की उम्मीद है। इसी योजना के जवाब में भारत ने ईरान के साथ चाबहार परियोजना का समझौता किया था, जिसे भारत की बड़ी सफलत के तौर पर देखा गया था। अब भारत के इस योजना से बाहर हो जाने से यकीनन चीन और पाकिस्तान को इसका फायदा मिलेगा।
पर्दे के पीछे चीन की साजिश की आशंकाः माना जा रहा है कि चाबहार परियोजना से भारत को बाहर करवाने में चीन की भूमिका हो सकती है। दरअसल चीन के सीपेक के जवाब में भारत ने चाबहार के लिए ईरान से समझौता किया था। लेकिन लगता है कि चीन ने ईरान के साथ जो 400 अरब डॉलर की जो महाडील की है। उसी में पर्दे के पीछे भारत को चाबहार से बाहर करने की साजिश रची गई हो सकती है। बता दें कि 400 अरब डॉलर की इस डील के तहत चीन ईरान से सस्ती दरों पर तेल खरीदेगा। इसके बदले में चीन ईरान में 400 अरब डॉलर का निवेश करेगा।