चिरकालिक प्रदूषण परियोजना की जांच में यह पता चलता है। ये विषैले रसायन हमारे शरीर में भी जमा हो जाते हैं। ‘चिरकालिक प्रदूषण परियोजना’ (फारएवर पाल्युशन प्रोजेक्ट) ने यूरोप के 17 हजार से ज्यादा ठिकानों को ‘परफ्लोरीनेटड अल्काइलेटड सब्सटैनसेस’ (पीएफएएस) से दूषित पाया है। इनमें से दो हजार जगहें तो अत्यधिक प्रदूषित मानी जा रही हैं।
जानकारों ने इन रसायनों को चिरकालिक यानी हमेशा के लिए मौजूद रसायन कहा है जो इंसानी सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र में पर्यावरण परामर्शदाता रोलां वेबर, उन्हें अब तक मिले सबसे खतरनाक रसायनों में से मानते हैं। करीब 4500 मानव निर्मित पदार्थ, पीएफएएस के दायरे में आते हैं। इन रसायनों के अवशेष पूरी दुनिया में मिलने लगे हैं- मिट्टी में, पीने के पानी में, जानवरों में और यहां तक कि मानव शरीरों में भी।
लगभग 98 फीसद अमेरिकियों के खून में पीएफएएस मिले हैं। भारत, इंडोनेशिया और फिलीपीन्स में हुए अध्ययनों में स्तन के दूध के कमोबेश सभी परीक्षण नमूनों में विषैले पदार्थ पाए गए हैं। जर्मनी में हर बच्चे के शरीर में ये चिरकालिक रसायन मौजूद हैं और हर पांचवें बच्चे में खतरनाक स्तरों पर उनकी उपस्थिति पाई गई है।
इनकी वजह से लीवर और किडनी खराब हो सकती है, यौनशक्ति कम हो सकती है, नवजात शिशुओं का वजन प्रभावित हो सकता है और टीकों की ताकत भी। उच्च मात्रा में ये विषैले तत्व कैंसर का कारण भी बन सकते हैं। नए अध्ययनों में भी इन रसायनों और कोविड-19 के गंभीर मामलों के बीच संबंध की ओर इंगित किया गया है।
इस शोध से जुड़े अमेरिकी प्राध्यापक थोमास ग्योएन के मुताबिक, ऐसे रसायन किसी भी खुराक में जमा हो सकते हैं। चिरकालिक रसायन प्रकृति में विघटित नहीं होते और मनुष्य शरीर उन्हें बहुत धीरे धीरे बाहर निकालता है। वैज्ञानिक उन्हें विखंडित करने के तरीके खोज रहे हैं। यह काम अभी शुरुआती दौर में है।
पीएफएएस पर पानी और वसा (फैट) का असर नहीं पड़ता, धूल- गंदगी उन पर नहीं जमती। हर उद्योग में उनका इस्तेमाल किया जाता है और विभिन्न किस्म के उत्पादों में वे पाए जाते हैं- कृत्रिम चमड़ा, फोटोग्राफिक पेपर, खाद, अग्निशमन उपकरणों के झाग, डाई और विमान- हर कहीं। मानवों में सबसे ज्यादा पीएफएएस, उनके भोजन से जाता है।
दूषित इलाकों की मछली, मांस, दूध, अंडों और सब्जियों में ये रसायन खासतौर पर बड़ी मात्रा में हो सकते हैं। पैटागोनिया के दूरस्थ पहाड़ों, अंटार्कटिका की बर्फ और मध्य, दक्षिण और पूर्व एशिया के पहाड़ों और यहां तक कि ध्रुवीय भालुओं, परिंदों और डाल्फिन के भीतर भी पीएफएएस पाए गए हैं। पीएफएएस की उच्च दर वाले कुछ पशुओं में हार्मोन के स्तरों मे बदलाव देखा गया है और उनके लीवर और थायराइड पर भी असर पड़ा है।
नीदरलैंड्स, बेल्जियम और इटली समेत दूसरे देशों में भी पीने के पानी और पर्यावरण को दूषित करने वाले पीएएफएएस के मामले मिले हैं। इनमें से कुछ विषैले रसायन यूरोपीय संघ, अमेरिका और जापान में अब हटाए जा रहे हैं।
वैश्विक स्तर पर, पीएफएएस को हटाने का दबाव बढ़ने लगा है। ग्रीनपीस की एक मुहिम के बाद, कपड़ा निर्माता कंपनियों वाउडे, परामो और रोटाउफ ने अपने माल को जहरमुक्त (डिटाक्स) करने की प्रतिबद्धता जताई है। स्वीडन की फर्नीचर निर्माता कंपनी आइकिया ने कहा है कि उसने भी उन विषैले पदार्थों पर बैन लगा दिया है। जर्मनी, डेनमार्क, नार्वे और स्वीडन जैसे देश, 2030 तक यूरोपीय संघ में पीएफएएस पर समग्र रूप से प्रतिबंध लगाने पर जोर दे रहे हैं।