कुछ ही दशकों में इंटरनेट का माध्यम दुनिया के अरबों लोगों के समसामयिक जीवन का अटूट हिस्सा बन गया है। इंटरनेट नेटवर्क ने कारोबारों, व्यक्तियों और सरकारों के बीच के संवादों का स्वरूप बदलकर रख दिया है। प्राथमिक तौर पर इसका विचार ‘लोकतंत्र’ और ‘उदारवाद’ की शक्ति के रूप में सामने रखा गया था। आज डेटा को एक संसाधन के तौर पर देखा जाने लगा है। इनमें विज्ञापन, राजनीतिक अभियान और सीमा-पार टोह लगाने की कवायद भी शामिल हैं।
राष्ट्रीय सरहदों से परे आइएसपी के उभार से संकेत साफ हैं कि महाशक्ति बनने की राजनीति धीरे-धीरे इस दायरे में प्रवेश कर चुकी है। ‘टोही राज्यसत्ता’ की धारणा इंटरनेट के आगाज से काफी पहले ही हमारे सामने आ चुकी थी। आधुनिक जमाने में डेटा का कई मकसद से इस्तेमाल किया जा रहा है। इनमें विज्ञापन, राजनीतिक अभियान और सीमा-पार टोह लगाने की कवायद शामिल हैं। इस वजह से दुनिया के देश वैश्विक डेटा-संग्रह तंत्र तैयार करने की कोशिश में जुट गए हैं। टोह लगाने की प्रक्रिया ने बड़े स्तर पर निगरानी रखे जाने की व्यवस्था का रूप ले लिया है।
अमेरिकी सरकार लंबे समय से निगरानी रखने से जुड़ी ऐसी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (आइएसपी) का इस्तेमाल करती आ रही है। यूएस फेडरल ट्रेड कमीशन की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक, इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के पास विशाल आकार में और बेहद बारीक उपयोक्ता डेटा इकट्ठा करने की क्षमता है। इससे उन्हें तमाम वेबसाइट और उपकरणों के इस्तेमाल करने वालों की गतिविधियों पर निगरानी रखने की ताकत मिल जाती है।
कुछ साल पहले भारत और अमेरिका जैसे देशों ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं का हवाला देते हुए चीन के ऐप्स और नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर को प्रतिबंधित कर दिया था। इस तरह की सेवाओं और उत्पादों के जरिए बड़े पैमाने पर उपयोगकर्ताओं का डेटा संग्रह किया रहा था। इसके अलावा वो वैश्विक स्तर पर चीन की सेंसरशिप से जुड़ी हरकतों को भी बाकियों पर थोप रहे थे। जवाब में चीन ने भी राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के बहाने अपनी सरजमीं पर अमेरिका की बची-खुची टेक सेवाओं पर पाबंदी लगा दी।
अमेरिका ने 2019 में अपने यहां चीनी मोबाइल की गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी। चीनी स्वामित्व वाले इंटरनेट सेवा प्रदाता चीन के राष्ट्रीय खुफिया कानून से बंधे हुए हैं। इस कानून के तहत चीनी कंपनियों पर सीमा पार खुफिया गतिविधियों को अंजाम दे रहे चीनी अधिकारियों को मदद पहुंचाने की कानूनी जिम्मेदारी थोपी गई है।
अमेरिका ने भी ऐसे ही काम किए हैं। मिसाल के तौर पर वहां की राष्ट्रीय सुरक्षा एजंसी के प्रिज्म कार्यक्रम के भागीदार भी अमेरिकी सरकार के साथ इसी तरह से वैश्विक उपयोक्ता का डेटा साझा करते हैं। अमेरिका के पास भी नेशनल सिक्योरिटी लेटर्स जैसे औजार मौजूद हैं। इसके जरिए अमेरिकी सरजमीं पर उपयोक्ता डेटा इकट्ठा करने वाली कंपनियों को अमेरिकी सरकार के साथ डेटा साझा करने के लिए मजबूर किया जा सकता है। अब बात उपग्रह आधारित ब्राडबैंड के उभार की।
इसके चलते ऐसी सेवाएं मुहैया कराने वाले चीनी और अमेरिकी इंटरनेट सेवा प्रदाता अपनी सरजमीं के बाहर सुदूर रह रही आबादी तक भी ऐसी सेवाएं मुहैया करा सकते हैं। गैलेक्सी स्पेस और जीडब्लू जैसे पृथ्वी की निचली कक्षा (लियो) वाले निजी 5जी सैटेलाइटों के जाल या गुच्छों की योजना क्रमश: 140 और 13,000 सैटेलाइट तैयार करने की है। दोनों के पास कक्षा में अपने-अपने 150 लियो उपग्रह मौजूद हैं। इस तरह के गठजोड़ अमेरिका और चीन दोनों को अपनी सरहदों से बाहर जबरदस्त तुलनात्मक ताकत मुहैया कराते हैं। अब उनके पास निगरानी से जुड़ी हरकतों के लिए जरूरी मौके हाथ आ गए हैं।