IMF Loan to Pakistan: क्या ऐसा हो सकता है कि भारत गेहूं और चावल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य Minimum Support Price (MSP) पर आधारित अपनी खरीद व्यवस्था को खत्म कर दे या फिर Food Corporation of India (FCI) को ही बंद कर दे। शायद नहीं क्योंकि इसके पीछे ठोस राजनीतिक और आर्थिक वजह हैं। ऐसा करने से किसानों की नाराजगी का जोखिम हो सकता है, साथ ही खुले बाजार में कीमतों की ज्यादा अस्थिरता को रोकना, इन वजहों से ऐसा करना आसान नहीं है लेकिन पाकिस्तान की सरकार को ऐसा करना पड़ा। पाकिस्तान को ऐसा International Monetary Fund (IMF) के दबाव में करना पड़ा।
एक भी टन गेहूं नहीं खरीदा
पाकिस्तान ने 2024-25 की गेहूं की फसल के लिए कोई MSP घोषित नहीं की, यह फसल इस साल अप्रैल में बाजार में आई थी। Pakistan Agricultural Storage & Services Corporation Ltd (PASSCO) जो भारत में FCI जैसा ही है, ने इस बार एक भी टन गेहूं नहीं खरीदा। जबकि पिछले साल यानी 2023-24 की फसल के लिए MSP 3,900 पाकिस्तानी रुपये प्रति मन (40 किलो) तय की गई थी, यानी 9,750 रुपये प्रति क्विंटल और तब PASSCO ने 1.79 लाख टन गेहूं खरीदा था।
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अब सवाल यह उठता है कि पाकिस्तान ने आखिर ऐसा क्यों किया? इसका जवाब यह है कि पाकिस्तान ने गेहूं की फसल को MSP पर नहीं खरीदने का फैसला दबाव में लिया है। यह IMF से मिले 7,113 मिलियन डॉलर के लोन की शर्तों का हिस्सा है, जो 2024-25 से लेकर 2027-28 तक के वक्त में मिलेगा।
पाकिस्तान की हुकूमत के द्वारा IMF को दिए गए आर्थिक और वित्तीय नीतियों के ज्ञापन (Memorandum of Economic and Financial Policies) में सरकार की ओर से साफ तौर पर लिखा गया है कि 2025 की रबी फसल के लिए समर्थन मूल्य की घोषणा नहीं की गई है और न ही इसकी खरीद की जा रही है। सरकार ने कहा है कि वह इस नीति को आगे भी जारी रखेगी।
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PASSCO को बंद करने की योजना
पाकिस्तान की सरकार ने इससे एक और कदम आगे बढ़ते हुए PASSCO को बंद करने की योजना के बारे में भी IMF को लिखा है। इस योजना के अनुसार, 2026 तक केंद्र और राज्यों द्वारा कृषि उत्पादों की कीमतों को नियंत्रित करने की सभी व्यवस्थाओं को खत्म कर दिया जाएगा।
पाकिस्तान के संसदीय मामलों के मंत्री तारिक फजल चौधरी ने इस महीने की शुरुआत में नेशनल असेंबली में कहा था कि PASSCO को “बंद किया जा रहा है” क्योंकि सरकार अब गेहूं की खरीद नहीं कर रही है और ना ही इसकी कीमत को नियंत्रित कर रही है। लेकिन ऐसा सिर्फ MSP, खरीद और PASSCO तक ही नहीं है।
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कानूनों की समीक्षा भी करेगी सरकार
IMF को दिए गए ज्ञापन में पाकिस्तान की सरकार की ओर से यह भी वादा किया गया है कि दिसंबर 2025 के अंत तक कमोडिटी बाजारों में सरकारी दखल करने वाले सभी कानूनों की समीक्षा की जाएगी। इनमें 1977 का मूल्य नियंत्रण और जमाखोरी रोकथाम कानून आदि शामिल हैं।
इसके अलावा, पाकिस्तान के चारों प्रांतों – पंजाब, सिंध, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान की सरकारों ने कृषि आयकर कानून में संशोधन किया है और 1 जनवरी, 2025 से किसानों की आय पर टैक्स वसूली शुरू हो गयी है।
भारत ने 1993 के बाद से नहीं लिया कर्ज
ये तो हुई पाकिस्तान की बात। अब अगर इसकी तुलना भारत के साथ करें तो भारत जून, 1993 के बाद से अब तक IMF के निर्देश वाले किसी भी कार्यक्रम को मानने के लिए मजबूर नहीं हुआ है और तब से अब तक भारत ने IMF से किसी तरह का कर्ज भी नहीं लिया है। भारत ने IMF से अप्रैल 1991 से जून 93 के बीच 2,207.925 लाख SDR का कर्ज लिया था जिसे 31 मई, 2000 तक चुका दिया गया था। भारत में किसी भी तरह के सुधार को थोपा नहीं जा सकता।
भारत में सरकारी एजेंसियों ने 2024-25 में गेहूं की फसल का लगभग 30 मीट्रिक टन 2,425 रुपये प्रति क्विंटल की MSP पर खरीदा है (भारतीय रुपया पाकिस्तानी रुपये से 3.3 गुना ज्यादा है)। इसके अलावा भारत ने 85.5 मीट्रिक टन धान (57.3 मीट्रिक टन मिल्ड चावल के बराबर) 2,300-2,320 रुपये प्रति क्विंटल की MSP पर खरीदा है।
MSP पर खरीद और FCI के द्वारा अनाज के भंडारण के अलावा, भारत में किसानों को खाद, बिजली, सिंचाई जल, फसल बीमा, ऋण आदि पर भारी सब्सिडी मिलती है। कृषि से होने वाली आय पर कोई टैक्स भी नहीं लगाया जाता। भारत में अगर आपको कृषि के क्षेत्र में सुधार करने हैं तो इसे लेकर राजनीतिक दबाव बहुत होता है। केंद्र सरकार द्वारा 2020 में लाए गए तीनों कृषि कानूनों को किसानों के भारी विरोध के कारण वापस लेना पड़ा था।
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