केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री विजय सांपला ने विश्व में शांति बनाए रखने के लिए बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का अनुसरण करने की जरूरत बताई है। सांपला शुक्रवार को नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय सभागार में ‘आचार्य बोधिधर्म और पूर्वी एशिया में ध्यान संप्रदाय की उत्पत्ति’ विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति शांति और परस्पर सद्भाव की प्रतीक है। बौद्ध धर्म भी भारतीय संस्कृति की उत्पत्ति है। उन्होंने कहा कि यदि बौद्ध धर्म का अनुसरण किया होता तो शायद परुमाणु बम बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। इस अवसर पर भारत में कोरिया के राजदूत चो ह्यून ने कहा की आचार्य बोधिधर्म पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में इस बात पर विचार किया जाएगा कि आज जबकि पूरा विश्व आतंकवाद से जूझ रहा है, ऐसे में हम विश्व में किस तरह शांति कायम रख सकते हैं।
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर लोकेश चंद्रा ने कहा की अशोक के बाद पूर्वी एशियाई देशों में आचार्य बोधिधर्म को सर्वाधिक जाना जाता है। उन्होंने कहा कि भारत में आचार्य बोधिधर्म को कम लोग जानते हैं लेकिन पूर्वी एशियाई देशों -चीन, कोरिया और जापान में दिन में तीन बार सुबह, दोपहर और सायंकाल बोधिधर्म का नाम लिया जाता है।
सम्मेलन में बुद्धिस्ट कल्चरल फाउंडेशन (भारत) के अध्यक्ष भंते डी. सुमेधो ने कहा कि आचार्य बोधिधर्म तमिलनाडु में राज करने वाले एक राजा के तीसरे राजकुमार थे। उनका जन्म कांचिपुरम में छठी शताब्दी में हुआ। उस समय के प्रख्यात भिक्षु प्रज्ञाधर से प्रभावित होकर उन्होंने राजसी सुख-वैभव को त्याग कर भिक्षु जीवन ग्रहण किया।
उस समय की प्रचलित सभी शास्त्र विद्याओं में पारंगता हासिल करने के पश्चात वे समुद्री मार्ग से चीन के ग्वांगजाऊ शहर के हुआलिन बौद्ध मठ में पहुंचे। उनकी शिक्षाओं का चीन, कोरिया, जापान, वियतनाम, हांगकांग और ताइवान के लोगों की जीवन शैली और संस्कृति पर गहरा प्रभाव है। इसलिए पूर्वी एशिया के लोग आचार्य बोधिधर्म को भगवान बुद्ध के समान ही पूजते हैं।
केंद्रीय राज्य मंत्री विजय सांपला ने राष्ट्रीय संग्रहालय के प्रथम तल पर बौद्ध धर्म के ध्यान संप्रदाय से संबंधित एक चित्र प्रदशर्नी का उद्घाटन किया। प्रदर्शनी पांच दिसंबर तक चलेगी।

