Corona pandemic: कोरोना वायरस के चलते लोगों का आम जनजीवन काफी प्रभावित हुआ है। इसका असर बीमा पॉलिसियों के प्रीमियम भुगतान पर भी देखने को मिला है। बता दें कि 2021-22 में बीमा पॉलिसियों के मैच्योरिटी से पहले ही सरेंडर करने के मामलों में तेज वृद्धि देखी गई। आंकड़ों के मुताबिक कि 2021-22 के दौरान 2.3 करोड़ से अधिक जीवन बीमा पॉलिसियों को छोड़ा गया।

गौरतलब है कि 2020-21 में छोड़ी गईं पॉलिसियों की संख्या (69.78 लाख) से तीन गुना से अधिक हैं। यह विडंबना ही है कि जब लोगों को मुश्किल समय में अपने पैसे की सख्त जरूरत होती है तब पॉलिसी बंद करने अधिकांश मामलों में पॉलिसी लेने वाले ग्राहकों को वो रकम मिल पाती है जोकि भुगतान किए गए प्रीमियम से भी कम होती है। ऐसे में ग्राहकों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।

आमतौर पर पॉलिसी छोड़ने के चलते बीमा कवर खोने सहित कई नुकसान हैं। समय से पहले पॉलिसी छोड़ने का सबसे बड़ा असर आपको पॉलिसी से मिलने वाले रिटर्न पर पड़ता है, क्योंकि मैच्योरिटी पर मिलने वाली रकम सरेंडर वैल्यू से काफी कम होती है। इस मामले में वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि मनी-बैक, एंडोमेंट और पूरे जीवन की योजनाओं के मामले में पॉलिसी धारक सरेंडर करने पर भुगतान किए गए प्रीमियम का लगभग 50 प्रतिशत खो सकता है।

हालांकि पॉलिसी सरेंडर करने के दौरान मिलने वाली रकम क्या हो सकती है, इसका कोई सटीक जवाब नहीं है। इसमें यह देखना होगा कि आखिर पॉलिसी किस तरह की है। इसके अलावा यह भुगतान किए गए प्रीमियम के सालों और पॉलिसी की अवधि पर भी यह तय करता है।

एएम यूनिकॉर्न प्रोफेशनल के संस्थापक सूर्य भाटिया का कहना है, “अक्सर, लोग सरेंडर वैल्यू की जांच नहीं करते हैं, और यह मान लेते हैं कि पॉलिसी का वर्तमान मूल्य वही है जो उन्हें सरेंडर करने पर मिलेगा। हालांकि बाद में ही उन्हें पता चलता है कि जो राशि उन्हें मिली है, वो वर्तमान मूल्य से काफी कम है। इसलिए सरेंडर करने का फैसला लेने से पहले सरेंडर मूल्य का पता लगा लेना चाहिए।”

वहीं प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के संस्थापक विशाल का कहना है कि प्रीमियम भुगतान की न्यूनतम अवधि पूरी करने के बाद, आपके पास या तो सरेंडर करने या फिर पॉलिसी में आगे प्रीमियम का भुगतान बंद करने का विकल्प होता है। बहुत बार इसे पेड-अप जैसी स्थिति के रूप में जाना जाता है, जहां आप प्रीमियम का भुगतान करना बंद कर देते हैं और आपकी पॉलिसी के लाभ कम भुगतान अवधि के चलते आनुपातिक रूप से कम हो जाते हैं।