परमजीत सिंह वोहरा
पिछले दिनों जब रूस के केंद्रीय बैंक के गवर्नर और राष्ट्रपति पुतिन के आर्थिक सलाहकार के बीच विवाद देखने को मिला, तो यह चर्चा आम हो गई कि शायद अब वहां आर्थिक स्थिति पिछले पांच सौ से अधिक दिनों से चल रहे यूक्रेन युद्ध के कारण प्रभावित होने लगी है। दोनों के बीच विवाद का मुख्य कारण केंद्रीय बैंक के गवर्नर द्वारा एक ही दिन में बैंक की ब्याज दर में 350 आधार अंक की बढ़ोतरी करना था। तीन हफ्ते पहले 21 जुलाई को भी वहां के केंद्रीय बैंक ने 100 अंक के बराबर ब्याज दरें बढ़ाई थीं।
रूस के आर्थिक हालात चर्चा का विषय बन गए हैं
इस तरह अब रूस में ब्याज दर 8.5 से बढ़कर 12 फीसद तक पहुंच गई है। इसके चलते रूस के आर्थिक हालात चर्चा का विषय बन गए हैं। फिर भी इस बात के पुख्ता सबूत रूसी अर्थव्यवस्था के विश्लेषण से सामने नहीं आते हैं। दूसरी बात यह भी है कि राष्ट्रपति पुतिन के व्यक्तित्व को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि रूस आर्थिक अनिश्चितताओं के दौर में इतनी जल्दी चला जाएगा। हालांकि अमेरिका तथा उसके नाटो देशों के मित्र, यूरोपीय संघ के विभिन्न देशों ने रूस पर बहुत सारे आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं, जिनके अंतर्गत रूस से खरीदी जाने वाली गैस तथा कच्चे तेल की खरीद पर रोक मुख्य है।
रूस में महंगाई की दर 7.6 फीसद के आसपास है
रूस के केंद्रीय बैंक के गवर्नर ने घोषणा भी की है कि बैंक की आगामी बैठक 15 सितंबर को होगी, जिसमें ब्याज दरें बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा। गवर्नर के अनुसार ब्याज दरों को बढ़ाने का मुख्य मकसद रूस में इन दिनों लगातार बढ़ रही महंगाई को नियंत्रित करना है। इस वक्त रूस में महंगाई की दर 7.6 फीसद के आसपास है। इस संबंध में यह भी गौरतलब है कि रूस में महंगाई की दर पर सहन क्षमता चार फीसद तक रहती है तथा उसके ऊपर जाने पर आवश्यक कदम उठाए ही जाते हैं। सवाल है कि यह महंगाई की दर आखिर क्यों बढ़ रही है? पिछले डेढ़ वर्ष से रूस के तकरीबन सभी कारखाने रूसी सेना की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही उत्पादन कर रहे हैं, जिससे समाज में विभिन्न पदार्थों की उपलब्धता कम हो गई है। इसके चलते पदार्थों के मूल्यों में वृद्धि देखने को मिल रही है।
विदेशी मुद्रा भंडारण में रूस की स्थिति बहुत मजबूत है
हालांकि यह बहुत हल्का विश्लेषण होगा कि रूस विदेशी मुद्रा भंडारण की कमी के चलते आवश्यक पदार्थों का आयात नहीं कर पा रहा है। विदेशी मुद्रा भंडारण के आंकड़े बताते हैं कि रूस की स्थिति बहुत मजबूत है। जब यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू हुआ तब रूस के पास 640 अरब अमेरिकी डालर का संग्रह था, जो आज तकरीबन 586 अरब डालर के बराबर है। इतना ही संग्रह आज भारत का भी है।
पिछले दस वर्षों में सबसे कम विदेशी मुद्रा भंडार वर्ष 2016 में था
रूस का पिछले दस वर्षों में सबसे कम विदेशी मुद्रा भंडार (350 अरब अमेरिकन डालर) वर्ष 2016 में था। इसमें दो राय नहीं कि घरेलू बाजार में महंगाई का स्तर जब लगातार बढ़ रहा हो तो केंद्रीय बैंक को वित्तीय तरलता को नियंत्रित करना ही पड़ता है तथा उसके लिए एकमात्र उपाय ब्याज दरों में बढ़ोतरी है। फिर क्यों राष्ट्रपति पुतिन के आर्थिक सलाहकार द्वारा रूस के केंद्रीय बैंक के गवर्नर पर हमला किया गया कि ब्याज दरों में बढ़ोतरी गलत आर्थिक नीति है।
इसमें यह तथ्य सामने आया है कि रूस की मुद्रा रूबल में इन दिनों बहुत गिरावट दर्ज हो रही है। दो वर्ष पूर्व अगस्त के महीने में रूबल 70 अमेरिकी डालर के बराबर था, जो यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद 136 अमेरिकी डालर पर पहुंच गया। मगर उसके बाद बड़ी शानदार मजबूती करते हुए रूबल 54 अमेरिकी डालर के बराबर तक वापस आया। मगर इस वर्ष के पिछले आठ महीनों में एक बार फिर से रूबल में 25 से 30 फीसद गिरावट दर्ज हुई है, जिससे अब यह 100 अमेरिकी डालर के बराबर पहुंच गया है।
दरअसल, यूक्रेन से युद्ध के शुरुआती दिनों में लोगों ने बड़ी तेजी से अपना निवेश निकाला, जिसके चलते डालर की एकाएक मांग बढ़ी और रूबल कमजोर होकर 136 के स्तर पर पहुंचा था। इन दिनों फिर से रूबल डालर की तुलना में कमजोर हो रहा है, तो इस बात को समझना होगा कि ब्याज की नीतियों में एकाएक हो रही बढ़ोतरी रूबल को कमजोर कर रही है।
इसी के चलते पुतिन के मुख्य आर्थिक सलाहकार तथा केंद्रीय बैंक के गवर्नर में पारस्परिक विरोध देखने को मिला। विश्व में रूसी अर्थव्यवस्था की पहचान मुख्य तौर पर गैस, कच्चा तेल तथा विभिन्न खाद्य उत्पादों के निर्यातक देश के रूप में है। अप्रैल 2022 से ही भारत रूस से तेल खरीद रहा है और इसमें तेजी आती जा रही है। मार्च 2023 तक भारत ने औसतन 10.2 लाख बैरल कच्चा तेल रूस से खरीदा था। रूस अब भारत को तेल आपूर्ति करने वाला शीर्ष देश बन गया है, जो पिछले साल तक दसवें स्थान पर था। यूक्रेन युद्ध के बाद वर्ष 2022 में रूसी अर्थव्यवस्था की विकास दर पूर्णतया नकारात्मक रही, पर 2023 में उसने बड़ी मजबूती के साथ वापसी की है तथा औसतन चार फीसद से अधिक की विकास दर दर्ज की जा रही है।
इन सबके बीच पिछले कुछ महीनों से जब महंगाई का स्तर एकाएक बढ़ा है, तो यकीनन पुतिन उसे नियंत्रित करना चाहते होंगे, पर उस पर कुछ इस तरह के प्रभाव नहीं छोड़ना चाहेंगे, जिनसे एक आम रूसी नागरिक के आर्थिक हितों को नुकसान न हो। शायद इसी कारण बैंक की ब्याज दरों में की गई बढ़ोतरी का पुतिन के मुख्य सलाहकार द्वारा विरोध किया गया। रूस में जनसंख्या लगातार घट रही है तथा वह भारत की कुल आबादी के दसवें हिस्से के बराबर है। इससे कुशल कर्मचारियों की संख्या बहुत कम हो रही है। देखने को मिल रहा है कि एक कर्मचारी तीन-तीन पालियों में काम कर रहा है।
इसलिए यकीनन पुतिन के लिए अब देश के आंतरिक आर्थिक मोर्चे पर निश्चितता और स्थायित्व लाना जरूरी हो गया है। फरवरी 2022 में रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देशों ने न सिर्फ कड़े प्रतिबंध लगाए, बल्कि अन्य देशों को भी रूस से व्यापार न करने को कहा। जिन उत्पादों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, उनमें रूसी तेल, गैस, वोदका और तंबाकू आदि शामिल हैं। मगर पश्चिमी देश रूस के परमाणु उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने से बचते रहे हैं, क्योंकि ये उत्पाद उनके यहां बिजली पैदा करने के लिए जरूरी हैं।
‘यूएस एनर्जी इन्फार्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन’ के मुताबिक रूस ने पिछले साल अपने कुल यूरेनियम निर्यात का 12 फीसद अमेरिका को भेजा है। 2022 में रूस का 17 फीसद यूरेनियम यूरोप को मिला। रूस का अलगाव पश्चिम से नए और सख्त आर्थिक प्रतिबंधों को लागू करने के कारण बढ़ गया है। इस कारण अफ्रीका के साथ घनिष्ठ संबंधों का अनुसरण करना इस दृष्टिकोण का एक आंतरिक हिस्सा है। अफ्रीकी देशों के साथ रूस के परवान चढ़ते व्यापारिक संबंधों ने नए रास्ते तैयार किए हैं और एक प्रकार से रूस की अर्थव्यवस्था की मदद की है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि अमेरिका तथा अन्य विकसित देश रूस को आर्थिक मोर्चे पर बहुत अधिक भयभीत नहीं कर पाए हैं। रूस अब भारत, चीन तथा अन्य कई देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के नए दौर में प्रवेश कर रहा है और कच्चे तेल, गैस आदि का व्यापारिक लेनदेन इन देशों की घरेलू मुद्रा के साथ कर रहा है।