पर्यावरणीय सामाजिक शासन यानी ईएसजी, ऐसे मानकों का समूह है, जो कंपनियों में बेहतर शासन, नैतिक प्रथाओं और परंपराओं का पालन, पर्यावरण के अनुकूल उपाय करने और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों से बचने को बाध्य करता है। पर्यावरणीय मानदंड इस बात पर विचार करते हैं कि एक कंपनी के प्रबंधन से जुड़े लोग प्रकृति के संरक्षण की दृष्टि से क्या कार्य करते हैं।
पर्यावरण प्रदूषण विश्व की विकराल और ज्वलंत समस्या है। माना जाता है कि पर्यावरण प्रदूषण में सर्वाधिक योगदान औद्योगिक इकाइयों का होता है। ये वायु, जल, थल और ध्वनि प्रदूषण की सबसे बड़ी कारक हैं। औद्योगिक इकाइयों द्वारा पर्यावरण संरक्षण के उपाय करने पर विशेष बल दिया जाता है। इस दृष्टि से कंपनियों के लिए ‘एनवायरनमेंटल सोशल गवर्नेंस’ (ईएसजी) यानी पर्यावरणीय सामाजिक शासन की अवधारणा विकसित हो रही है।
विश्वभर की कंपनियां इस अवधारणा को स्वीकार कर रही हैं। इस अवधारणा की मान्यता है कि व्यवसाय को अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाह करते समय पर्यावरण संरक्षण की गतिविधियों पर विशेष ध्यान देना चाहिए और व्यवसाय अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह किस प्रकार कर रहा है, इसको पर्यावरण संरक्षण में योगदान के पैमाने पर मापा जाना चाहिए। हालांकि भारत के व्यावसायिक क्षेत्र के लिए यह अवधारणा नई है और इसके लिए बनाए गए कानून और दिशा-निर्देश भी अभी एकदम प्रारंभिक अवस्था में हैं।
पर्यावरणीय सामाजिक शासन यानी ईएसजी, ऐसे मानकों का समूह है, जो कंपनियों में बेहतर शासन, नैतिक प्रथाओं और परंपराओं का पालन, पर्यावरण के अनुकूल उपाय करने और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों से बचने को बाध्य करता है। पर्यावरणीय मानदंड इस बात पर विचार करते हैं कि एक कंपनी के प्रबंध से जुड़े व्यक्ति प्रकृति के संरक्षण की दृष्टि से क्या कार्य करते हैं। कंपनी में निवेश करने वाले भी अपने निर्णय में कंपनी द्वारा की जाने वाली पर्यावरण संरक्षण संबंधी गतिविधियों को मद्देनजर रखते हैं।
भारत में कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 135 के अंतर्गत निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व की व्यवस्था को अनिवार्य किया गया है। अधिनियम की आठवीं अनुसूची में यह कहा गया है कि प्रत्येक कंपनी, जिसकी पिछले वर्ष कुल संपत्ति पांच सौ करोड़ या कारोबार एक हजार करोड़ या शुद्ध लाभ पांच करोड़ या इससे अधिक है, उसमें कंपनी को अपने शुद्ध लाभ की दो फीसद राशि निगमित सामाजिक उत्तरदायित्वों की गतिविधियों में खर्च करना अनिवार्य है।
इसमें पर्यावरण संरक्षण की गतिविधियां भी शामिल हैं। भारत में ईएसजी की आवश्यकता सर्वाधिक है, क्योंकि हमारे देश में वायु और जल प्रदूषण, वनों की कटाई तथा जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों के साथ ही हमें गरीबी, असमानता, भेदभाव तथा मानवाधिकारों के उल्लंघन जैसी सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
देश भर में उद्योगों में चिमनियों द्वारा विषैली गैसों का उत्सर्जन निरंतर होता रहता है। कई बार इस प्रकार का गैस उत्सर्जन भारी जान-माल के नुकसान का कारण बन जाता है। भोपाल गैस कांड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कंपनी के कारखाने से जहरीली गैस का रिसाव हुआ, जिससे लगभग पंद्रह हजार से अधिक लोगों की जान चली गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता के शिकार हुए।
भोपाल गैस कांड में मिथाइलआइसोसाइनेट नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। इस गैस का उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था। इसके पीड़ितों को वर्षों तक न्याय नहीं मिला। सन 2006 में सरकार ने दाखिल एक शपथ-पत्र में माना था कि इस रिसाव से करीब 5,58,125 लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए और आंशिक तौर पर प्रभावित होने वालों की संख्या लगभग 38,478 थी। इनमें 3900 लोग बुरी तरह प्रभावित हुए और पूरी अपंगता के शिकार हो गए। इसे मानव समाज को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली औद्योगिक दुर्घटनाओं में गिना जाता है।
कारखानों की चिमनियों में गैस के अलावा बहुत से विषैले सूक्ष्म कण भी एकत्रित होते रहते हैं। वे भी वातावरण को प्रदूषित करते हैं। उद्योगों में उत्पादन के बाद राख, गंदा पानी और अन्य प्रकार के कचरे के रूप में बहुत से अपशिष्ट बच जाते हैं, जिनका सही ढंग से निपटारा न होने के कारण भी वातावरण प्रदूषित होता रहता है।
उत्पादन के बाद काम में आए जल का बहिर्स्राव जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। सबसे पवित्र मानी जाने वाली गंगा नदी इस विकराल समस्या से सबसे जयादा प्रभावित हुई है। गंगा के साथ-साथ दूसरी नदियां, झरने, तालाब और अन्य जल स्रोत भी इसी कारण प्रदूषित होते जा रहे हैं। इन सबके चलते यह और भी जरूरी हो जाता है कि कंपनियां ईएसजी के प्रति गंभीरता दिखाएं।
इस विकराल होती समस्या के समाधान हेतु सरकारी स्तर पर प्रयास भी किए गए। इन्हीं प्रयासों के अंतर्गत सरकार ने ‘सेबी’ के माध्यम से कंपनियों में वर्ष 2012 से व्यावसायिक उत्तरदायित्त्व रपट को संचालकों की रपट का भाग बनाने की व्यवस्था की। इस व्यवस्था के अंतर्गत निर्धारित श्रेणियों की कंपनियों के लिए इस रपट को अनिवार्य किया गया था। 2015 में इस श्रेणी में आने वाली शीर्ष पांच सौ सूचीबद्ध संस्थाओं को सम्मिलित किया गया।
2021 में ‘सेबी’ ने विद्यमान रिपोर्टिंग की व्यवस्था को एक व्यापक एकीकृत तंत्र, व्यावसायिक उत्तरदायित्व और स्थिरता रपट के रूप में परिवर्तित किया। वित्तवर्ष 2022-23 से बाजार पूंजीकरण के आधार पर शीर्ष एक हजार सूचीबद्ध संस्थाओं के लिए यह रिपोर्टिंग व्यवस्था अनिवार्य करने की व्यवस्था की गई है। इसमें ईएसजी की गतिविधियों को अधिक प्रभावी ढंग से संचालित करने पर बल दिया गया है। इसके क्रियान्वयन में त्रुटि की दशा में कंपनी के संचालकों को उत्तरदायी ठहराने और दंडित करने की भी व्यवस्था की गई है।
अब जरूरत इस बात की है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए ईएसजी व्यवस्था को कानूनी बाध्यता समझने के स्थान पर कंपनियां स्वयं अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझें और इसके लिए सभी आवश्यक उपाय करें। कंपनियां अपने उत्पाद के निर्माण की प्रक्रिया में कम से कम पानी का उपयोग करने की तकनीकों का विकास करें और गंदे पानी की शोधन प्रक्रिया अपना कर उसको दुबारा उपयोग लायक बनाएं। निर्माण और पैकिंग की प्रक्रिया में पोलिथीन के प्रयोग को कम से कम करें। निर्माण प्रक्रिया में जो कचरा निकलता है, उसके पुनर्चक्रण की समुचित व्यवस्था करें।
पेट्रोल, डीजल, कोयला आदि इंधनों पर आधारित उपकरणों और वाहनों के लिए हरित ऊर्जा साधनों और सौर ऊर्जा पर आधारित संसाधनों के प्रयोग को बढ़ाएं। अगर कंपनी द्वारा संचालित औद्योगिक संयंत्र के पास खाली स्थान है, तो वहां वृक्षारोपण करके परिसर के पर्यावरण को स्वच्छ रखने का प्रयास करना चाहिए।
कंपनियों को अपने निगमित सामाजिक दायित्व पर कानूनी रूप से जितनी राशि खर्च करनी है, उसका कम से कम पच्चीस फीसद पर्यावरण संरक्षण पर होने वाले शोधों और पर्यावरण संरक्षण के अन्य उपायों में खर्च करने का संकल्प लेना चाहिए। कंपनी के प्रभावी संचालन और नियम पालन में कंपनी सचिव और चार्टर्ड अकाउंटेंट जैसे पेशेवर व्यक्तियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
ये दोनों पेशेवर व्यक्ति कंपनी के क्रियाकलापों में पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने के लिए पर्यावरण आडिट कर सकते हैं। इसमें ऊर्जा खपत, अपशिष्ट प्रबंधन, जल उपयोग और कार्बन उत्सर्जन आदि का मूल्यांकन शामिल है। ये इस संबंध में नियम पालन और किए जाने वाले व्यय की विस्तृत रपट तैयार करके कंपनी के प्रबंधन से जुड़े लोगों को अपनी सिफरिशों के साथ प्रस्तुत कर सकते हैं। इससे कंपनी को पर्यावरणीय सामाजिक शासन को प्रभावी ढंग से लागू करने में सहायता मिल सकती है।
जो कंपनियां स्वयं अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन न करें, उनके प्रति सरकार कंपनी अधिनियम और पर्यावरण सरंक्षण से जुड़े कानूनों के अंतर्गत दायित्व निर्वाह हेतु बाध्य करे। ‘ईज आफ डूइंग बिजनेस’ के नाम पर सरकारें कंपनियों को पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम के उपाय न करने की कोई छूट न दें। कोई भी व्यावसायिक या आर्थिक गतिविधि मानव जीवन से बड़ी नहीं हो सकती, इसलिए पर्यावरण संरक्षण के लिए हर संभव प्रयास होते रहना जरूरी है।