राजकुमार जैन

बड़े सस्थानों के दबाव में अगर हम कृत्रिम मेधा के साथ एक ऐसे भविष्य का रास्ता चुनते हैं, जिसकी मंजिल कम उत्पादकता, अधिक आय असमानता और गहन औद्योगिक सघनता है, तो मार्ग में अवरोध कम आएंगे। मगर मकसद एक बेहतर भविष्य है, जिसकी मंजिल वैश्विक खुशहाली है, तो वह मार्ग कठिन होगा और इस रास्ते में कई ऐसी चुनौतियां आएंगी, जो कठिन हो सकती हैं।

वैश्विक परिदृश्य में कृत्रिम बुद्धिमता का चौतरफा विकास हो रहा है और समाज को उसके साथ लयबद्ध होने के लिए अधिक लचीला होना पड़ेगा। एक काल्पनिक विज्ञान कथा से आगे निकलकर वास्तविक दुनिया में एआइ स्वयं रचनात्मकता और वैज्ञानिक खोज के बूते समाज को न केवल ज्ञात चीजों को बेहतर बनाने, बल्कि कल्पनातीत चीजों को भी करने में सक्षम बनाता है।

कृत्रिम बुद्धिमता का भविष्य पूर्व नियोजित न होकर कई चीजों का मिलाजुला परिणाम होगा, जिसमें आज किए गए तकनीकी और नीतिगत निर्णय भी शामिल होंगे। समाज को आर्थिक और नीतिगत समझ में नवाचारों की आवश्यकता है, जो एआइ में सफलताओं के पैमाने और दायरे से मेल खाते हों। मानवता के हित में बेहतर भविष्य तलाशने के लिए बेहतर नीतियों की आवश्यकता होगी।

हालांकि किसी भी बड़ी तकनीक के अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में की गई भविष्यवाणी कभी संदेह से परे नहीं होती, फिर भी, पिछले वर्ष की चमत्कृत कर देने वाली तकनीकी प्रगति के मद्देनजर अर्थव्यवस्था पर सीखने, तर्क करने और समस्या-समाधान प्रस्तुत करने जैसे बुद्धिमान व्यवहार से संपन्न एआइ के आशाजनक प्रभाव की अपेक्षा की जा सकती है।

अभिनव प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग से श्रमबल के साथ अधिक कुशल समय प्रबंधन दक्षता संभव होगी, जिसके कारण श्रम उत्पादकता में आशातीत वृद्धि होगी। एआइ को श्रमिकों द्वारा किए जाने वाले कार्यों के एक बड़े हिस्से पर लागू कर उत्पादकता को बढ़ावा दिया जा सकता है। कामगारों को नौकरी से हटाने के बजाय एआइ मानव संसाधनों की एक बड़ी संख्या को गैर-नियमित, रचनात्मक और आविष्कारशील कार्यों पर अधिक समय बिताने के लिए मुक्त करेगा। परिणामस्वरूप, पहले से उपलब्ध मानव संसाधन नवीन समस्याओं के निपटान पर वांछित समय व्यतीत कर पाएंगे। इसके नतीजे में अर्थव्यवस्था न केवल उत्पादकता के उच्च स्तर पर पहुंचती है, बल्कि स्थायी रूप से उच्च विकास दर भी हासिल की जा सकती है।

बीते दशकों में आय असमानता में वृद्धि वैश्विक स्तर पर नीति नियोजकों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है। कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी के विभिन्न अवतारों ने मध्यम-आय वाली नियमित नौकरियों को स्वचालित करके श्रम बल को उच्च-आय और निम्न-आय वाले कामगारों में ध्रुवीकृत कर आय असमानता में बड़ा योगदान दिया है। मगर संतोषप्रद बात यह है कि यह बड़े पैमाने पर बेरोजगारी की आहट नहीं है।

इसके उलट कार्यबल पर एआइ का मुख्य प्रभाव कम अनुभवी या कम जानकार कर्मचारियों को उनकी नौकरियों में बेहतर बनाने में मदद करना है। काल सेंटर में उपभोक्ता सहायता जैसा जटिल कार्य करने वाले एजंटों के एक अध्ययन में पाया गया कि जिन एजंटों के साथ एआइ सहायक को लगाया गया था, उनमें से सबसे कम कुशल या प्रशिक्षु एजंटों ने सबसे अधिक उत्पादक प्रदर्शन किया।

बेहतर आय-समानता का सुखद माहौल बनाने के अलावा, संस्थानों में एआइ का उपयोग श्रमबल की वास्तविक अर्थों में जमीनी मदद भी कर सकता है। कार्यस्थल पर नियमित और सूत्रबद्ध किस्म के कार्यों के एक बेहतरीन विकल्प के रूप में उबाऊ, श्रमसाध्य और थकाऊ काम मानव हाथों से अपने हाथों में लेकर, एआइ काम के बुनियादी मनोवैज्ञानिक अनुभव में दिलचस्प सुधार ला सकता है। दरअसल, काल सेंटर अध्ययन में पाया गया कि एजंटों को एआइ सहायक का साथ मिलने से न केवल उनकी उत्पादकता बढ़ी, बल्कि नौकरी छोड़ने वालों की संख्या में भी उल्लेखनीय कमी आई, जिससे ग्राहक संतुष्टि में वृद्धि हुई।

औद्योगिक सघनता बढ़ने से केवल बड़ी कंपनियां अपने मुख्य व्यवसाय में आवश्यक ‘एआइ टूल्स’ का गहन उपयोग कर पाती हैं। एआइ इन कंपनियों को अपने प्रतिस्पर्धियों की तुलना में अधिक उत्पादक, लाभदायक और बड़ा बनने में सहायता करता है। उच्च ‘कम्यूटेशनल’ क्षमता की दिनोंदिन बढ़ती मांग के चलते सटीक और लाभदायक एआइ माडल विकसित करना और भी महंगा होता जा रहा है। जिसकी लागत केवल बड़ी कंपनियां ही वहन कर पाती हैं।

इसके अलावा, एआइ माडल को संचालित करना भी महंगा हो सकता है। मसलन, जीपीटी-4 माडल को इसके प्रारंभिक विकास के दौरान प्रशिक्षित करने के लिए दस करोड़ डालर से अधिक की लागत आई और इसे चलाने के लिए प्रति दिन लगभग सात लाख डालर की आवश्यकता होती है। एक विशिष्ट और वृहद एआइ माडल को विकसित करने की लागत अरबों डालर तक पहुंच सकती है।

दूसरी तरफ, छोटे व्यवसायों को उद्योग-अग्रणी उत्पादन प्रौद्योगिकियों तक पहुंच उपलब्ध कराने के लिए गैर-लाभकारी संस्थाओं, शिक्षाविदों और व्यक्तिगत कोडर्स का जमवाड़ा, एक ऐसा ‘ओपन-सोर्स’ एआइ पारिस्थितिकी तंत्र बना रहा है, जो विकसित एआइ माडल तक व्यापक पहुंच को सुगम बनाता है।

मई 2023 में गूगल से ‘लीक’ हुए एक आंतरिक परिपत्र में इस सर्वजन हितकारी प्रयास का पूर्वाभास मिला था, जिसमें एक शोधकर्ता ने कहा था कि ‘ओपन-सोर्स माडल’ मालिकाना माडल की तुलना में कम खर्चीला, अनुकूलन योग्य, तीव्र, सुरक्षित और अधिक सक्षम हैं। शोधकर्ता ने यह भी कहा कि एक सीमित सदस्य संख्या के चलते एक विशिष्ट टीम द्वारा संचालित किए जाने वाले बड़े निजी माडल परीक्षण के विभिन्न चरणों से गुजरने में अधिक समय लेते हैं, लेकिन उनकी तुलना में ओपन-सोर्स माडल में विभिन्न दोहरावपूर्ण प्रक्रियाओं को कई लोगों द्वारा शीघ्रता से संचालित किया जा सकता है, जिससे परिणाम बेहतर और जल्दी मिलते हैं। लोगों के स्वप्रेरित जुड़ाव से ओपन सोर्स माडल को कम खर्च में प्रशिक्षित किया जा सकता है।

अगर नीति निर्माता यह स्वीकार करते हैं कि एआइ को विभिन्न दिशाओं में विकसित करने की स्वतंत्रता प्रदान की जानी चाहिए, तो कुछ प्रश्नों के सटीक जवाब अनिवार्य रूप से खोजने होंगे। नीतियां एआइ के उन प्रकारों को कैसे प्रोत्साहित कर सकती हैं, जो मानव श्रम की नकल करने और उसे प्रतिस्थापित करने के बजाय पूरक हैं।

कौन से विकल्प एआइ के विकास को प्रोत्साहित करेंगे, जिसका उपयोग केवल सबसे बड़ी कंपनियों के बजाय सभी आकार की कंपनियां कर सकती हैं। इसके लिए किस प्रकार के ओपन-सोर्स पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता हो सकती है, और नीति निर्माता इसका समर्थन कैसे करते हैं। एआइ प्रयोगशालाओं को माडल विकास के लिए कैसे दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, और कंपनियों को एआइ क्रियान्वयन के लिए कैसे दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

बड़े सस्थानों के दबाव में अगर हम कृत्रिम मेधा के साथ एक ऐसे भविष्य का रास्ता चुनते हैं, जिसकी मंजिल कम उत्पादकता, अधिक आय असमानता और गहन औद्योगिक सघनता है, तो मार्ग में अवरोध कम आएंगे। मगर मकसद एक बेहतर भविष्य है, जिसकी मंजिल वैश्विक खुशहाली है, तो वह मार्ग कठिन होगा और इस रास्ते में कई ऐसी चुनौतियां आएंगी, जो कठिन हो सकती हैं।

एक बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए अग्रणी बड़े व्यावसायिक घरानों को इस बारे में महत्त्वपूर्ण निर्णय लेना होगा कि वे अपने कार्यबल के साथ कृत्रिम मेधा को कैसे एकीकृत करना चाहते हैं। इनमें से सबसे बड़ी कंपनियां अपने निजी एआइ माडल विकसित करेंगी। विश्वविद्यालयों में कंप्यूटर विज्ञान प्रयोगशालाएं भी एआइ माडल विकसित करेंगी, जिनमें से कुछ वे ओपन-सोर्स के रूप में बनाएंगी। इस प्रक्रिया पर विधायिका और नियामकों का भी व्यापक प्रभाव होगा जो यह निश्चित करेंगे कि मौजूदा वस्तुओं, सेवाओं और प्रणालियों में मामूली बदलावों के बजाय, समाज को ऐसा एआइ कैसे हासिल होगा, जो क्रांतिकारी नवाचार को बढ़ावा देता है।

समाज पर एआइ के आर्थिक प्रभावों का आकलन खरबों डालर में होने की संभावना है। अनुसंधान प्राथमिकताओं को पुन: परिभाषित करने और एक व्यावहारिक नीति विकसित करने से समाज को निरंतर और समावेशी आर्थिक विकास के भविष्य की ओर बढ़ने में मदद मिल सकती है।