प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई दफा यह बात बोल चुके हैं। इंडोनेशिया में बाली शिखर सम्मेलन के मंच से जो एजंडा तय किया गया, भारत उसे आगे बढ़ाएगा। भारत का मानना है कि विकास के रास्ते पर लौटने के लिए विश्व को सुरक्षित बनाना होगा। इसके लिए जी20 के अंदर और बाहर अंतरराष्ट्रीय आम सहमति बनाने की कवायद तेज करने के संकेत प्रधानमंत्री ने दिए हैं।

बाली सम्मेलन से हासिल

इससे पहले बाली शिखर सम्मेलन में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने पश्चिमी देशों के दबाव में आकर रूस को जी20 से बाहर निकालने से इनकार कर दिया। साथ ही, इंडोनेशिया ने अपने नेतृत्व में जी20 का ध्यान दोबारा उसके मुख्य मकसद, यानी विश्व की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने की ओर मोड़ा।

साथ ही विडोडो की अगुवाई में स्वीकृत घोषणापत्र में ईमानदारी से कहा गया, ‘जी20 सुरक्षा के मसले हल करने का मंच नहीं है।’ इस घोषणा में ‘रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने की कड़े शब्दों में निंदा’ वाली बात सामान्य तौर पर शामिल थी और इस तरह से दो मार्च 2022 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित प्रस्ताव को ही दोहराया गया।

सुरक्षा का सवाल कैसे उठा

जी20 के इंडोनेशिया घोषणापत्र में भले ही अर्थव्यवस्था का मुद्दा जोर-शोर से उठाया गया, लेकिन यह स्वीकार करना होगा कि दुनिया की सुरक्षा से जुड़े मसलों पर चर्चा के मंच संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद बंधकर रह गए हैं। पांच स्थायी सदस्यों (पी5) के दबदबे के कारण वैश्विक सुरक्षा के मुद्दों पर परिषद बार-बार नाकाम साबित हुई है। इराक से लेकर लीबिया, सीरिया और अब यूक्रेन तक के उदाहरण सामने हैं।

ऐसे में संयुक्त राष्ट्र महासभा के सदस्य देशों की हैसियत महज एक तमाशबीन की रह गई है। ऐसे में भारत ने जी20 को अधिक समावेशी और समानता वाली विश्व व्यवस्था का झंडाबरदार बनाने का संकल्प व्यक्त किया है। इसके दूरगामी परिणाम सामने आएंगे। जी20 को दुनिया को एक बहुपक्षीय विकल्प देने का मंच बनाने की तैयारी है, जहां पर अधिक उपयोगी वार्ताएं हो पाती हैं, और दुनिया को लगने वाले बड़े झटकों से बचने की राह निकलती है। इस लिहाज से सुरक्षा का अहम मुद्दा इस मंच से उठाना जरूरी समझा जा रहा है।

भारत का रुख

भारत के अध्यक्ष बनने के बाद जी20 के ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा का ठिकाना भारत हो गया है। भारत को चाहिए कि वह जोको विडोडो के आर्थिक मुद्दे पर जोर देने का फायदा उठाए और जी20 के भीतर ध्यान भटकाने से बचे। घरेलू स्तर पर भारत ने दुनिया से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है। इसके बावजूद, विश्व अर्थव्यवस्था के सामने खड़े खतरे दूर नहीं हुए हैं। र्इंधन और खाने पीने के सामान में बढ़ोत्तरी, बढ़ती ब्याज दरें और दुनिया की धीमी होती विकास दर की ये मुश्किलें अगले 12 महीने तक जारी रहेंगी।

अर्थव्यवस्था में भू-राजनीतिक मुद्दों की घुसपैठ और इसके चलते दुनिया के समीकरणों में बदलाव की स्थिति सामने है। ऐसे में भारत के नेतृत्व में जी20 को इन दोनों मुद्दों को अलग करने के रास्ते तलाशने होंगे। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आम सहमति की दरकार होगी। जी20 को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक ट्वीट में कहा, ‘हमारा एजंडा समावेशी, महत्त्वाकांक्षी, निर्णायक और काम पर केंद्रित होगा।’

जी20 की स्थिति

जी20 वैश्विक मुद्दे उठाने में कितना भी कुशल क्यों न हो, जिस तरह इसके मंच पर द्विपक्षीय वार्ताएं होती हैं और दुनिया के 19 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश और यूरोपीय संघ को मंच मिलता है, वह बातचीत के लिए बस जरूरी माहौल बनाने वाला भर है। बाकी दुनिया के द्वारा इसके नतीजों पर मुहर न लगाने और इसके फैसलों को लागू कराने की कोई रूप-रेखा न होने के चलते, जी20 के पास सुरक्षा उपलब्ध कराने के संस्थागत ढांचे का अभाव है।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जी20 की ताकत का विस्तार करके इसे संयुक्त राष्ट्र के मुकाबले में खड़ा किया जा सकता है? निकट भविष्य में तो ऐसा होता नहीं दिखता। अन्य एक सवाल यह है कि क्या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों का अहंकार अनंतकाल तक जारी रह सकता है? कतई नहीं।

एक संस्था के तौर पर जी20 पुल का काम कर रहा है। यह एक ऐसा मंच है, जो सरकारों के बीच संवाद की राह निकाल सकता है। यहीं सुरक्षा की बात आती है। आज अमेरिका और यूरोप अनुभव कर रहे हैं कि आर्थिक संवाद के लिए सुरक्षा बेहद अहम है। आज पश्चिमी देश, रूस को ‘आतंकवादी देश’ घोषित कर रहे हैं।

लेकिन, वो आतंकवाद के असली गढ़ पाकिस्तान की करतूतों की हमेशा से अनदेखी करते आए हैं, जिसे चीन से भी लगातार समर्थन मिलता रहा है। भारत का एजंडा यही है कि जी20 को केवल कोरी बयानबाजी से आगे बढ़कर ‘आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों पर असली दंड लगाने’ के लिए राजी किया जाए।

भटकाव के बिंदु

आज जी20 भटकाव की भुलभुलैया में फंस गया है। अप्रैल 2009 में लंदन में हुए शिखर सम्मेलन में जी20 ने दुनिया में हरित परिवर्तन लाने का बीड़ा उठा लिया। सितंबर 2010 में हुए पिट्सबर्ग सम्मेलन में जी20 ने जलवायु परिवर्तन से निपटने की जिम्मेदारी भी अपने सिर ले ली और नवंबर 2015 में हुए अनातालिया सम्मेलन में इसने आतंकवाद को हराने की बात कही। यह मानना गलत होगा कि ध्यान भटकाने वाले मुद्दे अब नहीं रहे।

ऐसे मुद्दों की तो भरमार है। जलवायु परिवर्तन के संकट को बाली घोषणा के पांच पैराग्राफ में जगह मिली है। ये मुद्दा एक विडंबना के साथ जोड़ा गया है: ‘हम दुनिया की ऊर्जा संबंधी जÞरूरतों को सस्ती ऊर्जा आपूर्ति से पूरी करने की अहमियत को दोहराते हैं।’पश्चिमी देशों द्वारा, रूस पर लगाए गए ऊर्जा संबंधी प्रतिबंधों को देखते हुए सस्ते दाम पर ऊर्जा संसाधनों की आपूर्ति पर सवाल बना हुआ है।

क्या कहते हैं जानकार

बाली शिखर सम्मेलन में आतंक के वित्त पोषण पर अंकुश का मुद्दा उठा। विडंबना यह है कि यह बात तब हो रही है, जब पाकिस्तान को एफएटीएफ की संदिग्ध सूची से बाहर करने लायक समझा गया। जबकि पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को बढ़ावा देने और भारत के लिए चुनौतियां खड़ी करना आम है।

  • विष्णु प्रकाश, पूर्व राजनयिक

संयुक्त राष्ट्र अपनी जिम्मेदारी निभा पाने और शांति स्थापित करने में नाकाम रहा है। इसीलिए सुरक्षा का एक मुद्दा, आर्थिक चुनौती बन गया है। सभी देशों में महंगाई अभूतपूर्व रफ्तार से बढ़ रही है। नतीजा यह कि पूरी दुनिया में ब्याज दरों में उछाल आया है।

  • टी सुरेश बाबू, पूर्व राजनयिक