अंतरिक्ष यात्रा में लगे भारत के लिए यह केवल राष्ट्रीय गौरव की बात नहीं है। चंद्रयान-3 की सफलता का भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी असर पडेगा। दुनिया ने पहले ही अंतरिक्ष संबंधी प्रयासों से रोजमर्रा की जिंदगी में मिले फायदे देखे हैं जैसे कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर जल पुनर्चक्रण के साथ स्वच्छ पेयजल तक पहुंच, स्टारलिंक द्वारा विश्वभर में इंटरनेट का प्रसार, सौर ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि और स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियां आदि। उपग्रह से मिलने वाली तस्वीरों और नौवहन के वैश्विक आंकड़ों की बढ़ती मांग के साथ कई रिपोर्ट दिखाती हैं कि दुनिया पहले ही अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था की तेजी से वृद्धि के चरण में है।

‘स्पेस फाउंडेशन’ ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2023 की दूसरी तिमाही में 546 अरब डालर के मूल्य पर पहुंच चुकी है। यह आंकड़ा पिछले दशक में इस मूल्य में 91 फीसद की वृद्धि को दिखाता है। भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2025 तक 13 अरब डालर तक पहुंचने की उम्मीद है। चंद्रमा पर सफल लैंडिंग भारत की तकनीकी क्षमता को भी बयां कर रही है।

अमेरिकी अंतरिक्ष एजंसी नासा ने 50 साल पहले अपोलो अभियान के दौरान मनुष्यों को सफलतापूर्वक चांद पर पहुंचाया था लेकिन ऐसा लगता है कि कई लोग वहां पहुंचने के लिए उठाए कदमों और भारी मात्रा में लगाए धन को भूल गए हैं। भारत की चंद्रयान-1 के साथ चंद्रमा पर पहुंचने की पहली कोशिश अपने लगभग हर उद्देश्य और वैज्ञानिक लक्ष्यों में कामयाब थी जिसमें पहली बार चांद की सतह पर पानी के सबूत मिले थे।

लेकिन इसरो का, दो साल के लिए निर्धारित इस मिशन के 312 दिन पूरे होने के बाद ही अंतरिक्षयान से संपर्क टूट गया था। भारत ने छह सितंबर, 2019 को चंद्रयान-2 मिशन के तहत प्रज्ञान रोवर लेकर जा रहे विक्रम लैंडर के साथ चांद की सतह पर पहुंचने का फिर से प्रयास किया। हालांकि, चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर लैंडर से संपर्क टूट गया और नासा द्वारा ली गई तस्वीरों ने बाद में पुष्टि की कि यह चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।

चंद्रयान-2 से सबक लेकर चंद्रयान-3 में कई सुधार किए गए थे। लक्षित लैंडिंग क्षेत्र को 4.2 किलोमीटर लंबाई और 2.5 किलोमीटर चौड़ाई तक बढ़ा दिया गया था। चंद्रयान-3 में लेजर डापलर वेलोसिमीटर के साथ चार इंजन भी हैं जिसका मतलब है कि वह चंद्रमा पर उतरने के सभी चरणों में अपनी ऊंचाई और अभिविन्यास को नियंत्रित कर सकता है।

चंद्रयान-3 की कामयाबी दिखाती है कि कैसे अंतरिक्ष अधिक सुलभ होता जा रहा है और यह कठिन मिशन को हासिल करने में भारत की निरंतर दृढ़ता को दर्शाता है। प्रत्येक सफल मिशन के साथ मानवता का चंद्रमा की सतह और उसके पर्यावरण के बारे में ज्ञान बढ़ता जा रहा है जिसका मतलब है कि चंद्रमा तक जाने और वहां ठहरने के जोखिम कम हो रहे हैं।