भारतीय रेलवे ने यात्रियों की सुरक्षा के लिए एक शानदार तकनीक विकसीत की है। जिसे आईआरसीटी ने ‘कवच’ का नाम दिया है। यह तकनीक भारतीय रेल और उसमें सफर कर रहे यात्रियों को पूरी सुरक्षा देती है। यह पूरी तरह से स्वदेशी और सस्ती ऑटोमैटिक तकनीक है। यह तकनीक दो हाई स्पीड ट्रेनों के एक ही पटरी पर चलने पर आपको रेड लाइट से अलर्ट करती है और फिर ऑटोमैटिक ही ब्रेक लगाकर रोक देती है। जिस कारण हादसा होने का खतरा टल जाता है।
रेलमंत्री अश्विनि वैष्णव की मौजूदगी में स्वदेशी तकनीक ‘कवच’ का सफल परीक्षण किया है। सिकंदराबाद के पास तेज गति से दो ट्रेनें एक-दूसरे की ओर बढ़ीं, जिनमें से एक रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और दूसरी रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष को ले जा रही थी। स्वदेशी ‘कवच’ तकनीक के कारण दोनों ही गाड़ियां टकराने से पहले ही रुक गईं।
दुर्घटना की स्थिति में स्वत: रुक जाएगी ट्रेन
कवच रेलवे को “शून्य दुर्घटनाओं” के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करने के लिए बनाया गया है। यह एक ट्रेन को स्वचालित रूप से रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है जब वह निर्धारित दूरी के भीतर उसी लाइन पर दूसरी ट्रेन को नोटिस करता है। अगर गलती से ड्राइवर रेड सिंग्लन को क्रॉस करने की भी कोशिश करता तो भी यह ट्रेन सिंगनल से पहले ही स्वयं रुक जाती है।
कैसे काम करता है ‘कवच’
- सिग्नल जंप करने पर स्वत ही रुक जाएगी यह ट्रेन।
- एक बार लागू होने के बाद इस पूरे देश में लगाने के लिए प्रति किलोमीटर 50 लाख रुपये खर्च होंगे।
- सिस्टम तीन स्थितियों में काम करता है – हेड-ऑन टकराव, रियर-एंड टकराव, और सिग्नल खतरा है।
- ब्रेक विफल रहने की स्थिति में ‘कवच’ ब्रेक के स्वचालित अनुप्रयोग द्वारा ट्रेन की गति को नियंत्रित करता है।
- यह उच्च आवृत्ति वाले रेडियो संचार का उपयोग करके गति की जानकारी देता रहता है।
- यह एसआईएल -4 (सुरक्षा अखंडता स्तर – 4) के अनुरूप भी है जो सुरक्षा प्रमाणन का उच्चतम स्तर है।
- प्रत्येक ट्रैक के लिए ट्रैक और स्टेशन यार्ड पर आरएफआईडी टैग दिए जाते हैं और ट्रैक की पहचान, ट्रेनों के स्थान और ट्रेन की दिशा की पहचान के लिए सिग्नल देता है।
- ‘ऑन बोर्ड डिस्प्ले ऑफ सिग्नल एस्पेक्ट’ (OBDSA) लोको पायलटों को कम दिखने पर भी यह संकेत देता है।
- एक बार सिस्टम सक्रिय हो जाने के बाद, 5 किमी की सीमा के भीतर ये ट्रेनें रुक जाएंगी।
- वर्तमान में संकेत देने का कार्य सहायक लोको पायलट करता है, खिड़की से गर्दन निकालकर संकेत देता है।
बता दें कि यात्री ट्रेनों पर पहला फील्ड परीक्षण फरवरी 2016 में शुरू किया गया था और कवच के शुरुआती विनिर्देशों को मई 2017 में अंतिम रूप दिया गया था। इसके बाद, तीसरे पक्ष आईएसए द्वारा प्रणाली का स्वतंत्र सुरक्षा मूल्यांकन किया गया। इसके बाद 110 किमी प्रति घंटे की ट्रेन गति तक काम करने के लिए परीक्षण किया गया।
इसके बाद आगे के परीक्षणों के आधार पर कवच को 160 किमी प्रति घंटे तक की गति के लिए किया गया है। रेलवे इस तकनीक के अधिक पर इसकी क्षमता का आंकलन कर रहा है। 2022 के बजट में स्वदेशी विश्व स्तरीय तकनीक ‘कवच’ के तहत 2,000 किमी रेल नेटवर्क को जोड़ने की योजना है। अब तक दक्षिण मध्य रेलवे की चल रही परियोजनाओं में कवच को 1098 किमी से अधिक और 65 इंजनों पर तैनात किया गया है।